0 राज्यसभा में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ पर मंगलवार को भी चर्चा हुई
नई दिल्ली। राज्यसभा में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ पर मंगलवार को भी चर्चा हुई। इस दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने 1937 में वंदे मातरम् के केवल दो अंतरों को मान्यता दी थी। यहीं से देश में तुष्टीकरण की राजनीति शुरू हुई। शाह ने कहा कि इस तरह के फैसलों ने आगे चलकर देश के विभाजन का रास्ता तैयार किया। अगर उस समय पूरा वंदे मातरम् स्वीकार किया जाता तो शायद भारत का विभाजन न होता।
गृह मंत्री शाह ने संबोधन में कहा कि जब वंदे मातरम् 100 साल का हुआ, पूरे देश को बंदी बना दिया गया। जब 150 साल पर कल सदन (लोकसभा) में चर्चा शुरू हुई, गांधी परिवार के दोनों सदस्य (राहुल-प्रियंका) नदारद थे। वंदे मातरम् का विरोध नेहरू से लेकर आज तक गांधी परिवार के खून में है।
दरअसल राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने के मौके पर भारत सरकार की ओर से सालभर का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस क्रम में 8 दिसंबर को लोकसभा और 8 दिसंबर को राज्यसभा में चर्चा की गई।
तिरंगा फहराते वक्त वंदे मातरम् का कहना भूलना नहीं
अमित शाह ने कहा कि जिस गान को गांधी ने राष्ट्र की शुद्धतम आत्मा से जुड़ा गीत कहा, वो वंदे मातरम् का टुकड़ा करने का काम कांग्रेस ने किया। वंदे मातरम् ने आजादी के आंदोलन को गति दी। श्यामजी कृष्ण वर्मा, मैडम भीखाजी कामा और वीर सावरकर ने भारत का त्रिवर्ण ध्वज निर्मित किया था, उस पर भी स्वर्णिम अक्षर में एक ही नाम लिखा था- वंदे मातरम् । भारतीय जनता पार्टी का एक भी सदस्य वंदे मातरम् गान के समय सम्मान के साथ कड़ा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। कांग्रेस के जिस जिस सांसद ने वंदे मातरम् नहीं गाने पर बयान दिया। सदन से बाहर चले गए, मैं इसकी लिस्ट आज शाम तक सदन के पटल पर रख दूंगा। इस सदन के चर्चा के रिकॉर्ड में रहना चाहिए कि कांग्रेस के सांसद वंदे मातरम् का विरोध करते हैं बंकिम चंद्र की 130वीं जयंती पर हमारी सरकार ने एक स्टांप जारी किया। आजादी के 75वीं वर्षगांठ पर हर घर तिरंगा अभियान भी हमने शुरू किया। और आह्वान किया था तिरंगा फहराते वक्त वंदे मातरम् का कहना भूलना नहीं है।
वंदे मातरम् का विरोध नेहरू से आज तक कांग्रेस नेतृत्व के खून में
अमित शाह ने कहा कि गुलामी के कालखंड में वंदे मातरम् गीत ने घनघोर अंधेरे के बीच लोगों के मन में आजादी के खिलाफ लड़ने का जोश जगाया। जब वंदे मातरम 100 साल का हुआ, पूरे देश को बंदी बना दिया गया। जब 150 साल पर कल सदन (लोकसभा) में चर्चा शुरू हुई, गांधी परिवार के दोनों सदस्य (राहुल-प्रियंका) नदारद थे। वंदे मातरम का विरोध नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस नेतृत्व के खून में है। कांग्रेस पार्टी की एक नेत्री ने लोकसभा में कहा कि वंदे मातरम पर अभी चर्चा की कोई जरूरत नहीं है।
वंदे मातरम् पर चर्चा चुनाव से जुड़ी नहीं
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- जो लोग वंदे मातरम् के महत्व को नहीं जानते वे इसे चुनाव से जोड़ रहे हैं। शाह के बयान को प्रियंका गांधी के बयान से जोड़ कर देखा जा रहा है। दरअसल एक दिन पहले लोकसभा में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा था- वंदे मातरम् गीत 150 साल से देश की आत्मा का हिस्सा है। आज इस पर बहस क्यों हो रही है? मैं बताती हूं- क्योंकि बंगाल का चुनाव आ रहा। मोदी जी उसमें अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सिर्फ नेहरू को क्यों निशाना बनाते हैंः खरगे
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि नेहरू जी, महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र, सरदार पटेल, गोविंद वल्लभ पंत सहित कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें सिफारिश की गई थी कि राष्ट्रीय समारोहों में जहां भी वंदे मातरम गाया जाता है, केवल पहले दो स्टैंजा ही गाए जाने चाहिए। क्या कांग्रेस कार्यसमिति में नेहरू जी अकेले थे? आप उन सभी बड़े नेताओं का अपमान कर रहे हैं जिन्होंने सामूहिक फैसला लिया था। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री नेहरू जी को क्यों निशाना बनाते हैं?
मैं 60 सालों से यही गीत गा रहाः खरगे
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने वंदे मातरम् पर अपनी स्पीच शुरू की। वंदे मातरम्, वंदे मातरम् के नारे लगाए। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री के बोलने के बाद मुझे समय दिया, सभापति का इसके लिए धन्यवाद। मैं सौभाग्यशाली हूं। मैं 60 सालों से यही गाना गा रहा हूं। वंदे मातरम् नहीं गाने वालों ने अभी शुरूआत की है। कांग्रेस की तरह से बंकिमजी को नमन करता हूं।
आजादी के आंदोलन में जिन लोगों ने बलिदान दिया, उनको भी नमन है। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रविन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार वंदे मातरम् गाया था।