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विवेक वाधवा, फेलो, हार्वर्ड लॉ स्कूल

अभी जैसे ही वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग एप ‘जियोमीट’ का ऐलान किया गया, सोशल मीडिया में नकल करने के आरोप उछलने लगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह एप ‘जूम’ से मिलता-जुलता है। एक व्यक्ति ने ट्वीट करते हुए लिखा, इसका नाम ‘झूम’ रखा जाना चाहिए था, क्योंकि अपने यहां इसे यही कहकर बुलाया जाएगा। ऐसा नहीं है कि ‘जियोमीट’ लाने वाली कंपनी प्रौद्योगिकी उद्योग के काम-काज से अनजान है, नावाकिफ तो आलोचक हैं। वे दरअसल नहीं जानते कि प्रौद्योगिकी जगत में इनोवेशन, यानी नवाचार कैसे होता है?
यह कहना अजीब लग सकता है, लेकिन सच यही है कि इनोवेशन के लिए नकल अच्छी बात है। चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों ने इसी बूते अपनी शुरुआत की थी। उन्होंने सबसे पहले अपने लोगों के लिए सिलिकॉन वैली की तकनीकें अपनाईं और फिर खुद को निखारती चली गईं। वे आज भी दुनिया भर पर नजरें रखती हैं कि कौन-सा एप कहां सफल हो रहा है और उसमें नए फीचर जोड़ने और इनोवेशन से पहले उसकी नकल तैयार कर लेती हैं। हालांकि, सिलिकॉन वैली भी इसी तरह काम करता है। यहां तक कि जूम भी उन एप की नकल करके तैयार किया गया है, जिनसे वह मुकाबिल है, जैसे- वेबएक्स, स्काइपी और ब्लूबींस।
स्टीव जॉब्स ने भी पालो ऑल्टो रिसर्च सेंटर से विंडोविंग इंटरफेस की नकल करके मैकिन्टोश तैयार किया था। 1994 में उन्होंने इसे कुबूल करते हुए कहा था, ‘पिकासो कहते हैं- अच्छे कलाकार नकल करते हैं और महान कलाकार चोरी। और हम महान विचारों को चुराने को लेकर हमेशा बेशर्म रहे हैं’। एप्पल की अधिकतर विशेषताएं किसी दूसरे ने तैयार की है। शायद ही कोई तकनीक कंपनी ने खुद अपने यहां विकसित की है। जैसे, आईपॉड ब्रिटिश आविष्कारक केन क्रैमर ने बनाया है, जबकि आईट्यून्स साउंडजाम से खरीदी गई तकनीक पर तैयार हुआ। आईफोन तो अक्सर सैमसंग की मोबाइल तकनीकों की नकल करता है, जबकि सैमसंग एप्पल की।
मार्क जकरबर्ग ने भी माइस्पेस और फ्रेंडस्टर की नकल करके फेसबुक परोसा था। वह आज भी तमाम उत्पादों की नकल किया करते हैं। जैसे फोरस्क्वॉयर से फेसबुक प्लेसेज बना, और स्काइपी से मैसेंजर वीडियो। स्नैपचैट की नकल फेसबुक स्टोरीज है, तो मीरकट और पेरिस्कोप की अच्छी-अच्छी फीचरों का मिश्रण फेसबुक लाइव। अब जकरबर्ग प्राइवेट मैसेजिंग ग्रुप और पेमेंट को एक करके वीचैट की कॉपी तैयार करने में जुटे हैं। यही वजह है कि भारतीय नीति-नियंताओं द्वारा वाट्सएप पेमेंट्स को मंजूरी दिए जाने पर उनका पूरा जोर है। वाट्सएप को खरीदने से पहले, उन्होंने उसकी नकल बनाने की पूरी कोशिश की थी, पर वह लगातार विफल रहे। इसीलिए अंत में उन्होंने इस कंपनी को ही खरीद लिया, वह भी आश्चर्यजनक रूप से 20 अरब डॉलर में, जो फेसबुक के बाजार मूल्य का 10 फीसदी था। सिलिकॉन वैली का एक राज यह भी है कि यदि चोरी नहीं कर पा रहे, तो कंपनी को ही खरीद लें।
हालांकि, वे लोग इसे नकल या चोरी नहीं कहते, इसे ‘नॉलेज शेर्यंरग’ यानी ‘ज्ञान का साझाकरण’ कहा जाता है। दरअसल, सिलिकॉन वैली में एक कंपनी को छोड़कर दूसरी कंपनी में काम करने का चलन काफी अधिक है। यहां अच्छे इंजीनियर शायद ही किसी एक कंपनी में तीन साल से अधिक काम करते हैं। वे या तो प्रतिस्पद्र्धी कंपनियों को नियमित तौर पर ज्वॉइन करते रहते हैं या फिर खुद की कंपनी बना लेते हैं। जब तक इंजीनियर कंप्यूटर कोड या डिजाइन नहीं हासिल कर लेते, तब तक वे उस पर काम कर सकते हैं, जो उन्होंने पूर्व की कंपनी में किया होता है। सिलिकॉन वैली की कंपनियां भी बखूबी समझती हैं कि एक ही वक्त में सहयोग व प्रतिस्पद्र्धा से ही सफलता संभव है। कैलिफोर्निया के कई कानूनों में भी इसकी झलक दिखती है, जो नियोक्ता व कर्मचारियों के बीच उन समझौतों की वकालत करते हैं, जिनमें कर्मचारी रोजगार के दौरान या उसके बाद नियोक्ता के साथ किसी तरह की प्रतिस्पद्र्धा न करने पर सहमति जताता है।
ज्यादातर जगहों पर, उद्यमी दूसरों को यह बताने में कतराते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। मगर, सिलिकॉन वैली में उद्यमियों को पता है कि अपने विचार साझा करने पर ही उन्हें जरूरी फीडबैक (प्रतिक्रिया) मिलेंगे। दोनों पक्ष विचारों के इस आदान-प्रदान से सीखते हैं और नए आइडिया का जन्म होता है। इसलिए जब आप पालो ऑल्टो में किसी कॉफी शॉप में जाएंगे और सामने वाले इंसान से उसके उत्पाद के बारे में पूछेंगे, तो वह यह बताने में कतई संकोच नहीं करेगा कि उसने किस तरह और कैसे इसे तैयार किया है।
हालांकि, महज नकल करके न तो कंपनियां सफल हो सकती हैं, और न देश। उन्हें न सिर्फ बहुत तेजी से आगे बढ़ना होगा, बल्कि खुद को सुधारना भी होगा। बदलते बाजार और प्रौद्योगिकियों के अनुकूल भी उन्हें ढलना होगा। एप्पल इसलिए दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी बन पाई, क्योंकि इसने अपनी तकनीक को अपने हाथों खत्म करने से कभी परहेज नहीं किया। स्टीव जॉब्स को इस बात की कतई चिंता नहीं थी कि आईपैड उनके लैपटॉप की बिक्री को नुकसान पहुंचाएगा या आईफोन का म्यूजिक प्लेयर आईपॉड की जरूरत को खत्म कर देगा। प्रतिस्पद्र्धी कंपनियां इसकी डिजाइन की जैसे ही नकल करतीं, यह कंपनी अगली तकनीक को अपना लेती। मुझे उम्मीद है कि जियो भी ऐसा करेगी। भारतीय बाजार में जो सबसे अच्छा काम कर रही है, उससे वह सीखे और बेहतर तकनीक के साथ सामने आए।
हालांकि, यहां एक महीन रेखा भी है, जिसे कभी पार नहीं किया जाना चाहिए। यह है, बौद्धिक संपदा की चोरी। जैसे, चीन की हुआवेई पर सिस्को ने बौद्धिक संपदा के उल्लंघन का मुकदमा दायर किया था। उसकी 5जी तकनीक नोकिया और अन्य से संभवत: चुराई हुई थी। चीन की कई उन्नत प्रौद्योगिकियों की बुनियाद इसी तरह की चोरी है। यह चलन नवाचार के लिए कतई सुखद नहीं है, और कहीं अधिक विनाशकारी आदतों को जन्म दे सकता है। इसका एक नुकसान और है, जो अभी हुआवेई भुगत रहा है। उसकी तकनीक पर अब कई देश पाबंदी लगा रहे हैं। लिहाजा, भारतीय उद्यमी इनोवेशन से पहले बेशक नकल करें, लेकिन किसी नैतिक रेखा को कतई पार न करें।
(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं)