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मुंबई। मानवी को अपना स्वभाव हमेशा ठंडा रखना चाहिए। सामने वाला कितना भी गरम क्यूं न हो जाए, अपने मन पर काबू हमें लाना है। कहते हैं व्यक्ति शान्त हो, यदि उसे कोई निमित्त मिले तो वह तुरन्त आग बबूला होकर अग्नि की बौझार करता है। दूसरों पर गुस्सा करना कोई अच्छी बात नहीं। भले व्यक्ति को अपने जीवन में कैसा भी निमित्त मिले उसे अपने आप पर कंट्रोल रखना है। संत अथवा महापुरुष वहीं बन सकता है जो हर पर्ििस्थति में समभाव लाकर मुख पर प्रसन्नता की झलक दिखाता है।मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। हर परिस्थिति में प्रसन्नता स्वस्थता एवं शांति रखेंगे तो प्रसंग कैसा भी होगा उसका परिमाण अच्छा आएगा। 'टीट फॉर टैटÓ यानी 'जैसे को तैसाÓ इस फार्मूला को यदि आप अपने जीवन में अपनाएगें तो परिस्थिति विचित्र बन जाएगी। मामला कुछ और बन जाएगा। फिर बिगड़े हुए उस मामले को, सुधारना कठिन हो जाएगा। प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है परिस्थिति को बिगडऩे से बचाना वह हम पर निर्भर है। आप यदि परिििस्थति को बढ़ावा देने के बजाय उसका कुछ न कुछ रास्ता खोज निकालेंगे तो परिस्थिति बिगडऩे से बचेगी। परिणाम सुन्दर मिलेगा। जयेश ने मोना से कहा, मोना! आज खाना जल्दी बनाकर रखना क्योंकि मुझे कुछ जरूरी काम से व्यस्त हो गई थी इसलिए यह बात उसके दिमाग से निकल गई। जयेश की आवाज सुनते ही वह कंपने लगी। अरे! जयेश घर आ गया है मैंने तो अब तक खाना ही नहीं बनाया। अब क्या होगा? मोना कॉप रही थी। जयेश ने परिस्थिति जान ली। तुरंत कहा, मोना! कोई बात नहीं। तुं चिंता मत कर। आज मैं नीता बेन के यहां खा लूंगा। शाम को जल्दी जा जाऊंग इस प्रकार कहकर जयेश चला गया पूज्यश्री फरमाते है मान लो! आपकी श्राविका ने आपके साथ इस प्रकार से व्यवहार किया होता तो आपका दिमाग सातवें आसमान पहुंच जाता। आप उसको जैसा तैसा सुनाते। दिमाग आपका काबू नहीं रहता। परिस्थिति बिगड़ जाती। नोबत यहां तक आ जाती कि वह आपसे या तो डायवोर्स मांगती या तो आपको छोड़कर पीहर चली जाती। पूज्यश्री फरमाते परंतु यहां तो परिस्थिति कुछ अलग सी बनी। जयेश के जाते ही मोना को अफसोस हुआ उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। जयेश ने मोना की भूल को सीरियस न लिया तो बात बिगड़ते हुए सुधर गई। जीवन में हमेशा शान्त बनने का फार्मूला अपनाओ। एक ऐसा ही दृष्टांत है रवि की सादी हो चुकी थी। उसे पता नहीं था कि उसकी पत्नी आलसी है तथा कड़वे वचन भी बोलती है। बात ऐसी है कि रवि को शंखेश्वर से महेसाणा की ट्रेन पकडऩी थी क्योंकि उसकी नौकरी महेसाणा की मील में लगी थी। जरा सी देरी हो जाए तो उसकी ट्रेन चली जाती। नौकरी उसकी आजाविका का आधार था। इसलिए उसे रोज चाय नास्ता करके टाईम पर पहुंचना था तो एक दिन रवि ने अपनी पत्नी से बात की कि तुम चाय नास्ता सुबह जल्दी तैयार करके रखना। उसकी पत्नी ने हां कहने के बजाय गरम होकर मन में आए इस प्रकार से उल्टा सुल्टा जवाब देने लगी। रवि समझ गया। उसने अपनी पत्नी को कुछ कहे बगैर दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर चाय नास्ता तैयार करके नौकरी के लिए निकल गया। पूज्यश्री फरमाते है जब तक हम सामने वाले व्यक्ति के आगे कुछ रिस्पांस नहीं देते हैं, तब तक वह व्यक्ति भी बोलते हुए थक जाता है। आप कुछ बोलेंगे। तो सामने वाला भी आपको कुछ जवाब देगा। यदि झगड़े के मूल को वहीं अटकाना है तो आपको शान्त रहना होगा। रवि ने अपनी पत्नी जहां सो रही थी उसके बाजू में एक चिट्ठी रख दी जिसमें लिका था चाय बनाकर पी लेना शाम को लौटते समय फलाहार ले आऊंगा। दो दिन तक इसी प्रकार से चलता रहा तीसरे दिन रवि की पत्नी रवि उठने के पहले ही जल्दी से चाय नास्ता तैयार कर दिया फिर जाकर उसने रवि को उठाया। परिस्थिति शान्त एवं प्रसन्नमय बन गई। उसका जीवन सुधर गया। पूज्यश्री फरमाते है आपको यदि किसी को कड़वा करेला परोसना पड़े तो साथ में आम का मीठा रस भी जरूर परोसना। कड़वाहट मिठास में बदल जाएगी। महापुरूष ऐसे ही नहीं बने हैं। उन्होंने बहुत कुछ सहन किया है। हमें भी अपने जीवन को शान्त-प्रसन्न बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनना है।