Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

रुसेन कुमार
किताबों की दुकानों पर केवल इसलिए ही नहीं जाता कि मुझे कोई किताब खरीदनी है, बल्कि इसलिए जाता हूँ क्योंकि मुझे किताबें प्रिय हैं। मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि किताबें मुझे आखिर में प्रिय क्यों लगती हैं। किताबों का प्रिय लगना कोई मानसिक दोष तो नहीं है? असंख्य किताबों को देखकर बड़ा अच्छा लगता है। किसी लाइब्रेरी में जाकर या किताब की दुकान में जाकर मुझे यह अनुभव गहराता है कि ज्ञान के महासागर के किनारे पर खड़ा हूँ। किताबों की किसी दुकान पर जाकर ही पता चलता है कि हम कितने अल्पज्ञ हैं। हमारी बुद्धि में कितना कुछ अभाव है। हमारे मन और बुद्धि को अभी बहुत पोषकतत्वों की आवश्यकता है। 
हम किताबों को नहीं, किताबें हमें चुनती हैं
वास्तव में हम किताबों को नहीं चुनते, बल्कि किताबें हमें चुनती हैं। हमारे लिए क्या भला है और क्या बुरा – यह बात केवल किताबें ही जानती हैं।  किताबें हमारी वृत्तियों को अच्छी तरह जानती हैं। हमारी वृत्ति के अनुसार ही किताब हमें यह आदेशित करती है - मुझे उठाओ, मुझे पढ़ो, मुझे समझो, मुझे जानो। किताबें जीवित देवता हैं। किताबों के शब्द जिंदा होते हैं। शब्द जीवित रहते हैं अनंतकाल तक। शब्द अक्षर हैं। महान विचार कभी मरते नहीं, अर्थात अमर होते हैं।
राघव को उपन्यास लिखने में महारत हासिल थे
रांगेय राघव को जीवन आधारित उपन्यास लिखने में विशेषज्ञता और दक्षता प्राप्त थी। अगर विश्वास न हो तो इन उपन्यासों के शीर्षक पर दृष्टि डालिए- मेरी भव बाधा हरो - कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित उपन्यास, रत्ना की बात – संत महाकवि तुलसीदास जी के जीवन पर आधारित उपन्यास, लोई का ताना -कबीरदास जी के जीवन पर आधारित उपन्यास, लखिमा की आंखें - कवि विद्यापति के जीवन पर आधारित उपन्यास, देवकी का बेटा -श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित उपन्यास, भारती का सपूत- भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित उपन्यास, यशोधरा जीत गई – गौतम बुद्ध के जीवन पर केंद्रित उपन्यास।
कवि होना एक संयोगजन्य अलौकिक घटना है
इन सातों उपन्यास में दो रचनाएँ बहुत ही अनोखी हैं। ये हैं कवि बिहारीलाल और कवि विद्यापति। पढ़कर मुझे अनुभव हुआ कि कवि होना एक संयोगजन्य अलौकिक घटना है। कवि होने की एक पूरी प्रक्रिया होती है। सभ्य समाज के लोगों को अपने निज साहित्य को पढऩा बहुत आवश्यक है। भारतीयों ने अगर रांगेय राघव के साहित्य नहीं पढ़ा तो उसके लिए एक महान दुर्भाग्य की बात है। भारत के स्वतंत्रता काल के दौरान हिंदी में अनेक महानतम रचनाओं का सृजन हुआ है। यह रचना भी उसी कालखंड की है।
राघव ने विपरीत समय में साहित्य साधना की
रांगेय राघव ने विपरीत राजनीतिक समय में साहित्य साधना की। उनके लेखन काल में पूरे देश में आजादी के लिए संघर्ष जारी था। उनकी रचनाओं में पत्रकारिता, रिपोर्ट, विचार, आदर्श, यथार्थ के समीप कल्पना, प्रगतिशीलता, प्रमाण, तथ्य, संदर्भ आदि का भरपूर समन्वय मिलता है। रांगेय राघव ने 39 वर्षों के जीवनकाल में 150 कृतियों की रचना की, जो हिन्दी साहित्य के अमूल्य रत्न हैं।  मुगलकालीन कविओं के जीवन पर कुछ लिख पाना दुष्कर कार्य माना गया, क्योंकि उनके जीवन के बारे में लिखित सामग्री अधिक मात्रा उपलब्ध नहीं रहती थीं। रांगेय राघव ने "मेरी भव बाधा हरोÓÓ लिखने के लिए कितना अधिक श्रम किया होगा, इसकी कल्पना करना बहुत सुखद है। रांगेय राघव अत्यंत मेहनती रचनाकार हैं। 
बिहारीलाल जैसी काव्य प्रतिभा अत्यंत दुर्लभ है
कविवर बिहारीलाल को कवित्व अपने कविहृदय पिता से विरासत में मिला था। बिहारीलाल जैसी काव्य प्रतिभा अत्यंत दुर्लभ है। मेरे दृष्टिकोण से कवि बिहारीलाल के जीवन के अंतरंग पहलुओं को उजागर करने वाले रांगेय राघव हिंदी की आकाश गंगा के सूर्य हैं। इस कवि को कम शब्दों में अधिक अर्थ देने वाली बातों को कहने की महान प्रतिभा थी। उनका समय मुगल बादशाह जहाँगीर तथा खास तौर पर उनके बाद हुए शाहजहाँ का राज्यकाल है, जिनके दरबार में रहे। बिहारीलाल के पिता केशवराय महाकवि केशवदास के घनिष्ट सम्बन्ध रखते थे। बिहारी बचपन में ही कवि केशवदास के शिष्य बन गए थे।
कवि बिहारी ने अपार वैभव का सुख लिया
कवि बिहारी नरहरिदास के समीप ही रहकर ही रचना सुनाया करते थे। राजाओं के विशेष कृपापात्र थे, इस कारण उनके पास धनसंपदा की कमी नहीं थी। इस कवि ने अपार वैभव का सुख लिया। ब्राह्मण कुल में जन्मे कवि बिहारीलाल के कालखण्ड को रीतिकाल कहा गया है। उनका जन्म 1595 और निधन 1673 में हुआ। रांगेय राघव कला, संस्कृति, काव्य के कितने बड़े प्रवक्ता थे, उपन्यासकार एक पात्र के माध्यम से कहते हैं, "आचार्य! संगीत और काव्य लोक के लिए नहीं, मर्मज्ञों के लिए होते हैं। लोक गाता है, अपने गीत स्वयं रचता है। किन्तु उनका सूक्ष्म सौन्दर्य केवल रसज्ञ ही जान सकते हैं।ÓÓ आगे लिखते हैं, आचार्य! काव्य और संगीत मनुष्य की उस अवस्था के द्योतक है, जो साधारण के लिए नहीं है। साधारीकरण में भी सब एक-से नहीं समझते।ÓÓ
कविवर की साहित्यिक रुचि बचपन से ही थी। बचपन में ही विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करके रचना करने लगे थे। बिहारीलाल के पिता को एक दिन वैराग्य उत्पन्न हुआ और वे सन्यासी होकर गृह त्याग करके कहीं अदृश्य हो गए। जाते समय पिता केवशराय ने स्वामी नरहरिदास को अशर्फियाँ देते हुए कुछ इस तरह कहा, "वह आएगा। यह दे दें उसे। आज मैं स्वतंत्र हुआ। अब बिहारी की मुझे चिंता नहीं रही। बुद्धिमान अपना मार्ग स्वयं खोज लेता है।ÓÓ हिन्दी के रीति युग के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि की कृति ''बिहारीलाल सतसईÓÓ है।
बिहारीलाल के जीवन का अंतिम समय
बिहारीलाल के जीवन का अंतिम समय कैसा रहा, उसके सम्पूर्ण जीवन के सार को रांगेय राघव इस उपन्यास के अंत में कुछ इस तरह लिखते हैं - महाराज ने कहा, यदुराई? कविराई को ले चले।ÓÓ बिहारी उतरने लगा। महलों में हल्ला मच गया। खबर बिजली की तरह दौड़ चली। महाकवि वैराग्य लेकर जा रहे हैं। आमेर के जैन साधु भी यह देखने को बाहर आ गए। एक बार मुड़कर देखा बिहारी ने। सबको हाथ जोड़े। भागा आया निरंजन कृष्ण (उनका गोद लिया हुआ पुत्र)। पुकार उठा, 'दद्दा!Ó बिहारी हंसा। कहा, 'बहुत पापी हूँ बेटा, बहुत पापी हूँ। अब जाने दे।ÓÓ निरंजन रोने लगा। बिहारी नहीं रुका। उसने सिर झुकाया सब देखते रहे। और वह सब छोड़कर बाहर चला आया। प्रजाजन देखते रहे। कोई व्यक्ति इतने वैभव को छोड़कर भी जा सकता है। रानियाँ रो पड़ीं। महाराज देखते रहे। बिहारी आज मस्त-सा चला जा रहा था पैदल। बूढ़ा किताना मुक्त था। उसे गोपाल बुला रहे थे।
  (लेखक चिंतक, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)