रुसेन कुमार
शराब पीने की वृत्ति पहले व्यक्ति की बुद्धि की सोचने-समझने की शक्ति को छीन लेती है उसके शरीर को कमजोर करके उसके नैसर्गिक मानसिक एवं आध्यात्मिक बल को कुचल देती है। शराब पीने की वृत्ति से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है, बच्चे अनाथ हो जाते हैं, माता-बहनें विधवा हो जाती हैं, गरीबी घेर लेती है, कलह बढ़ता है, प्रेम क्षीण हो जाता है, वैमनस्य पनपता है, विवेक-बुद्धि का नाश होता है और अंतत: समाज में कुरीतियाँ ही फैलती है। शराब एक व्यापारिक उत्पाद है। भारत में शराब का व्यापार अत्यंत संगठित है। उपभोक्ता प्रवृत्ति बढऩे के कारण यह प्रमुख उपभोक्ता उत्पाद का दर्जा भी प्राप्त कर चुका है।
शराब का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव : शराब सेवन से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता ही है। शराब में ऐसे तत्व ही नहीं है जो उसे अच्छे पेय पदार्थ साबित कर सके। हमारे शरीर का नियंत्रक है मस्तिष्क। शराब पीने से मस्तिष्क के उस भाग पर असर शीघ्र होता है, जो हमारे बोलने, चलने और हृदय की गति को नियंत्रित करते हैं। शराब के असर से जुबान लडख़ड़ाती है, चाल बिगड़ जाती है और हृदय गति अनियंत्रित होकर तेज धड़कने लगती है। शराब पीने से मन में भ्रम उत्पन्न हो जाता है, स्मृति का लोप हो जाता है। इन सबके परिणाम स्वरूप व्यक्ति कोई रचनात्मक शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने के योग्य नहीं रह जाता। अधिक शराब के सेवन से मृत्यु भी हो जाती है। जो मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वे स्वत: ही शराब की ओर आकर्षित हो जाते हैं। जो लोग अत्यधिक शारीरिक श्रम करते हैं, भारी सामान उठाते हैं, वे शराब इसलिए पीते हैं ताकि उन्हें असह्य शारीरिक कष्टों और पीड़ा से कुछ समय के लिए राहत मिल जाय। युवाओं में बढ़ती शराब की लत विकृत मानसिकता और बुरी संगति के कारण है। उच्च कोटि की महत्वाकांक्षा नहीं रखने और सज्जनों के सानिध्य के अभाव में युवाओं की ऊर्जा अकारण ही नष्ट हो रही है।
कोई कुछ भी कहे, शराब जहरीला पदार्थ ही है। नियमित रूप से सेवन करने से यह नसों में फैल जाता है और शरीर शराब का आदी हो जाता है। कुछ समय तक व्यक्ति शराब को पीता है, बाद में शराब व्यक्ति को पी जाती है। महुआ आदि से निर्मित शराब दुर्गम जंगलों में रहने वाले आदिवासियों का पारंपरिक पेय है। यह उनके जीवन पद्धति का अभिन्न अंग है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी शराब पीना उनके लिए लोक व्यवहार है।
शराब का संगठित दुरुपयोग : राजनीतिक लाभ के लिए शराब का दुरुपयोग करने की वृत्ति पुरानी है। नशे के आदी बनाकर पहले लोगों को गुलाम बनाया जाता था और उनसे श्रम कराया जाता था। चुनाव प्रक्रिया का समय आने पर शराब के उत्पादन और खपत बढ़ जाती है। आपराधिक किस्म के लोग राजनीतिक और सरकारी तंत्रों से साठगांठ करके मतदाताओं को शराब पिला कर और प्रलोभन दिखा कर मतदान करने के लिए दबाव डालते हैं। जाहिर है जो लोग आपराधिक वृत्ति के होंगे वे नकली या निम्न गुणवत्ता वाली शराब पिलाएँगे, अत: ये कृत्य आपराधिक श्रेणी के हैं। वैसे तो किसी भी व्यक्ति को शराब परोसना या शराब पीने के लिए मजबूर करना, प्रेरित करना, शराब उपलब्ध कराने का संगठित कृत्य करना, आदि दुराचार की श्रेणी के हैं। शराब सेवन व्यक्ति को मानसिक रूप से गुलाम बनाता है।
नशे का कारोबार एवं छत्तीसगढ़ सरकार : छत्तीसगढ़ में नशे का कारोबार सरकार के नियंत्रण में है, या यूँ कहें कि सरकार के संरक्षण में है। राज्य सरकार का एक स्वतंत्र विभाग है – आबकारी विभाग जो नशे के कारोबार की निगरानी करता है और उससे अधिक राजस्व किस विधि से मिले, इसका उपाय भी करता है। शराब कारोबारियों और सरकार का गठजोड़ है। छत्तीसगढ़ में शराब का संगठित व्यापार सरकार की निगरानी में होता है। सरकार स्वयं शराब खरीदती है, उसे अपनी दुकानों के माध्यम से बेचती और खपत को बढ़ावा देती है। भोली-भाली, निरक्षर, मेहनतकश जनता की नसों पर शराब दौड़ती है तो उसका पूरा श्रेय सरकारों को ही जाता है। सरकार के अतिरिक्त शराब की आपूर्ति, भंडारण और निर्माण करने वालों को अवैध माना जाता है। अवैध शराब बेचने के नाम पर हजारों लोगों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध हैं।
शराब व्यापार असंवैधानिक कृत्य : भारतीय संविधान के अनुसार, शराब का उपयोग औषधि और जीवन रक्षक दवाओं के अतिरिक्त नहीं करना चाहिए। संविधान की दृष्टि में शराब का संगठित कारोबार स्वयं में अवैधानिक है और संविधान की मूल भावनाओं के विरुद्ध है। सरकारों द्वारा शराब का विक्रय करना, विपणन करना, उत्पादन करना कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना के प्रतिकूल है। शराब के सेवन से होने वाली मौतों के लिए सरकार को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाता, यह देश के नागरिकों के मध्य विचार-विमर्श के विषय अवश्य होने चाहिए। छत्तीसगढ़, मध्य भारत में कृषि प्रधान राज्य है, यहाँ अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत में सबसे बड़ा 10 वां राज्य है। ढाई करोड़ की आबादी के साथ, यह राज्य 16वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। आबकारी विभाग यह स्वीकार करता है, छत्तीसगढ़ राज्य के राजस्व अर्जित करने वाले विभागों में आबकारी विभाग महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस विभाग द्वारा मुख्यत: निम्नलिखित मदों से राजस्व प्राप्त होता है: आबकारी एवं मनोरंजनकर। छत्तीसगढ़ में आबकारी विभाग राजस्व बढ़ाने के लिए किसी दूधारू गाय की तरह है।
छत्तीसगढ़ को कितना राजस्व : मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, श्री भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने शराब बिक्री करके 4700 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा था। विडम्बना यह है कि सरकार शराब के कारोबार से कितनी वार्षिक आय होती है, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती। राज्य सरकार को शराब तथा नशे के कारोबार से मिलने वाली आय के बारे में पूरी पारदर्शिता रखते हुए आंकड़े नियमित रूप से जारी करना चाहिए।
भूपेश बघेल के समक्ष चुनौतियां : पिछली भारतीय जनता पार्टी की सरकार की आबकारी नीति की आलोचना करते हुए कांग्रेस ने अपने जन घोषणा-पत्र में छत्तीसगढ़ में शराबबंदी का वादा किया था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल अभी तक शराबबंदी लागू नहीं कर पाए। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और विपक्ष के नेतागण नियमित रूप से शराबबंदी पर नियमित वक्तव्य दे रहे हैं और वादा पूरा नहीं करने की बात करके सरकार को लगातार घेरने का प्रयास करते रहते हैं। छत्तीसगढ़ में संत गुरु घासीदास (सतनाम पंथ), कबीरदास (कबीरपंथ), जैन आदि मतालंबियों की बहुलता है। संतों ने शराब तथा नशाखोरी के दुष्परिणामों के बारे में समाज को जागरूक करते हुए नशे से दूर रहने का उपदेश दिया है। धार्मिक स्वभाव के लोग अपने ढंग से समाज में शराबखोरी के विपरीत परिणामों के बारे में जनमानस में जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
(लेखक चिंतक, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
भारत में शराब का बढ़ता कारोबार
वैसे तो शराब एक अंतरराष्ट्रीय कारोबार है। भारत अंतरराष्ट्रीय शराब कारोबार का प्रमुख हिस्सेदार है। विश्व के लगभग सभी अग्रणी अंतरराष्ट्रीय शराब ब्रांड न केवल भारत में उपलब्ध हैं, बल्कि उन्होंने उत्पादन संयंत्र भी स्थापित किए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में 1.58 ट्रिलियन डालर के वैश्विक शराब कारोबार होने का अनुमान लगाया गया था। यह भी अनुमान लगाया गया था कि अगले तीन वर्षों में शराब का वैश्विक कारोबार 3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि से आगे बढ़ेगा। शराब के कारोबार के लिए भारत एक तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है। वर्ष 2020 में भारत में शराब का संगठित कारोबार 5200 करोड़ डालर से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था जबकि अगले तीन वर्षों में 6.8 प्रतिशत वार्षिक दर से बढऩे का अनुमान लगाया गया था। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के अनुसार, शराब संबंधी उत्पादों के उत्पादन की वृद्धि दर 2015-16 और 2018-19 के बीच में 23.8 प्रतिशत थी। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में शराब के संगठित क्षेत्र में 15 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। भारत के संगठित शराब कारोबार का विक्रय राशि वर्ष 2019 में 4800 करोड़ डालर से अधिक का रहा।
शराब कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश
भारत का शराब कारोबार प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के लिए खुला है। कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार अपने राज्यों में शराब उत्पादन इकाई लगाने पर कर आदि पर छूट प्रदान करते हैं।
शराब की बढ़ती बिक्री के कारण
तेजी से शहरीकरण, उपभोक्ता संस्कृति, युवाओं के मध्य स्वच्छंद वातावरण, एकल परिवार, मध्यवर्गीय श्रेणी के लोगों की बढ़ती संख्या, खरीद क्षमता में वृद्धि आदि के कारण शराब के संगठित कारोबार को फलने-फूलने में मदद मिल रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 में लगभग 22 करोड़ शराब उपभोक्ता थे, जो 2018 में बढ़कर लगभग 29 करोड़ हो गए। हमारे देश में 2030 तक लगभग 39 करोड़ शराब उपभोक्ता होने का अनुमान लगाया गया है। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक कुल शराब उपभोक्ताओं में उच्च-मध्यवर्गीय आय वाले लोगों की सर्वाधिक 44 प्रतिशत भागीदारी होगी। सभी अग्रणी भारतीय राज्यों में जिन तीन संसाधनों से सर्वाधिक राजस्व आते हैं उनमें शराब शामिल है। राज्य सरकारें अपनी नीतियों के द्वारा अपनी सीमा क्षेत्र में शराब कारोबार के सभी गतिविधियों पर नियंत्रण रखती हैं।
राज्यों की शराबबंदी
गुजरात, बिहार, मिज़ोरम और नागालैंड में शराबबंदी है। 2016 में बिहार में शराबबंदी हुई। हरियाणा ने भी 1996 में राज्य में शराबबंदी किया था लेकिन 1998 में इसे यह कहकर निर्णय को वापस ले लिया गया कि शराबबंदी के दौरान प्रदेश राजस्व के मामले में 1200 करोड़ रुपये पीछे चला गया।
क्या छत्तीसगढ़ में शराबबंदी होगी?
जिन राज्यों में शराबबंदी है, वहां से यह खबरें आती रहती हैं कि वहां चोरी-छिपे शराब पहुँच रही हैं, क्योंकि उनकी सीमावर्ती राज्यों में इसके विपरीत नीतियाँ हैं अर्थात् शराब की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है। छत्तीसगढ़ में शराबबंदी की चुनौती यह होगी क्या यह राज्य उड़ीसा और महाराष्ट्र को भी शराबबंदी के लिए प्रेरित कर पाएगा? सीमावर्ती राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आपस में शराब के व्यापार, चुनौतियों, विसंगतियों और उसकी चरणबद्ध बंदी आदि विषयों पर सतत वार्तालाप एवं विमर्श करने होंगे, क्योंकि शराबबंदी केवल राज्यों का नहीं बल्कि एक कल्याणकारी लोकतंत्र के रूप में करोड़ों नागरिकों के जीवन से जुड़ा हुआ मसला है। शराबबंदी से राजस्व खोने का डर तो रहेगा ही, लेकिन यह विचार करने योग्य है कि जनता के स्वास्थ्य से ऊपर कुछ भी नहीं है। शराबबंदी के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए। सीमावर्ती राज्यों को शराबबंदी के बारे में अपनी मंशा बताना छत्तीसगढ़ के लिए आवश्यक है। जनता अगर जागरूक न हुई तो चालाक राजनेता और भ्रष्ट अधिकारियों के बीच सांठगांठ का लाभ शराब उत्पादक और माफिया उठाते रहेंगे और अबोध जनता उसका दुष्परिणाम अर्थ और स्वास्थ्य की हानि उठाकर भुगतती रहेगी।