अहमदाबाद। जीवन तो द्वंद्व से ही भरा है। जीवन है तो मृत्यु निश्चित है, संयोग है तो वियोग है, सुख है तो दु:ख है वैसे ही हार है तो जीत भी है। जीवन में हार किसी को पसंद नहीं प्रत्येक व्यक्ति जीतना ही पसंद है। जीवन भी एक खेल है और इस खेल को जीतने के लिए आशा, आत्मविश्वास एवं धैर्यता की आवश्यकता है।
जीवन निर्माण प्रवचन के प्रणेता एवं सफल मार्गदर्शक सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी जैनाचार्य प.पू. गुरूदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने विशाल संख्या में उपस्थित श्रोताओं को उद्बोधन करते हुए फरमाया कि जीवन में सदा आशावादी बनकर जीयें कहीं अटके नहीं और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेकर इस खेल को जीतें। किसी भी क्षेत्र में जीत हासिल करना हो तो धीरज अत्यंत महत्वपूर्ण है। पूर्ण समर्पण एवं कठोर परिश्रम से किया हुआ कार्य अवश्य जीत दिलाता है। सपनों को तमन्नाओं को अरमानों को साकार करने समय एवं धीरज बहुत जरूरी है। समय को समझपूर्वक पूर्णतया उपयोग किया जाये तो अवश्य जीत हासिल कर सकोगे। यदि समय का योग्य उपयोग करने के बावजूद भी आपको परिणाम न मिले तो उसे युवक की तरह धैर्यता से प्रयास चालू ही रखें आप अवश्य लक्ष्य तक पहुंच सकोगे। एक युवक व्यापार में हुए नुकसान से हताश होकर आत्महत्या करने की सोच से बगीचे में शून्यमनस्क हो बैठा था। वहीं थोड़ी देर में एक वृद्ध उसके पास आये और उसकी उदासी का कारण पूछा।कारण बताने पर उस वृद्ध ने एक ब्लैंक चेक पे अपनी साईन करते हुए उस युवक को कहा-जा जी ले अपनी जिंदगी चेक पे अपनी आवश्यकतानुसार रकम लिखके ले लेना। पर मरने का विचार छोड़ दें। छ: महीने बाद मुझे यही मिलना।
हताशय और निराश के अंधकार में डूबे हुए उस युवक को आशा की एक किरण मिली। उसे फिर कुछ करने की भावना प्रगट हुए। उस चेक को लेकर अपने घर की ओर चलते-चलते उसने सोचा कि क्यूं ना मैं एक बार और प्रयास कर लूं? शायद इन पैसों की जरूरत ही ना पड़े आत्मविश्वास एवं ध्येय प्राप्ति के विचार से आगे बढ़ा हुआ ये युवान सफल हुआ, उसे जीत हासिल हुए वो भी खुद के बलबूते पे उसने वह चेक संभालके रखा और छ: महीने बाद फिर उसी बगीचे में पहुंचा और उस वृद्ध को नर्स एवं डॉक्टरों से घिरा हुआ देखकर उसने पूछताछ की। नर्स ने कहा कि ये वृद्ध पागल है। रोज यहां आकर खुद को अमेरिका का सबसे धनवान व्यक्ति प्ररूपित करके किसी न किसी को ब्लैंक चेक देता रहता है. युवान के आश्चर्य का कोई पार नहीं रहा। उन नर्स और डॉक्टरों को शंका हुई इसलिए युवान को पूछा क्या आपको भी इन्होंने कोई चेक दिया? युवान ने कहां कही। तो हमें यहां पहुंचने में देरी हो गई होगी। हमें माफ करना। उस युवक ने कहा अच्छा हुआ देरी हो गई नहीं तो मैं आज यहां खड़ा नहीं होता बल्कि आत्महत्या कर चुका होता।
जीवन में हार नहीं मानना चाहिए। किसी भी कार्य में पहले ही प्रयास में सफलता मिले ये जरूरी नहीं होता। निष्फलता भी जीवन के एक किस्से का ही हिस्सा है। कभी निष्फल हो जाओ तो सोचना कि मैं केवल फिसला हूं गिरा नहीं हूं। पूज्यश्री ने एक नई चैतन्यता को जागृत करते हुए फरमाया कि निष्फलता को जरूर स्वीकारें परंतु प्रयत्न छोडऩे की वृत्ति को कभी न स्वीकारें। निष्फलता से अपना मूल्य अल्प ना करें। कोई आपको पूछे, आपको मुख्यता दें इसी से आपका मूल्य नहीं है बल्कि महामूल्यवान मानव भव मिला है, जयतंता जिन जिनशासन मिला है और तारक तीर्थंकर परमात्मा का परम सांनिध्य है तो फिर किसी और मूल्यांकन की आवश्यकता ही कहां है। आप स्वयं अमूल्य ही नहीं बल्कि-बहुमूल्यवान हो।
प्रत्येक आत्मा खुद का मित्र एवं शत्रु ह। इस बात को कभी न भूले की अपना सर्जन जीतने के लिए ही हुआ है। जीवन में यदि आपने धन-दौलत खोया हो तो थोड़ा कुछ खोया है यदि निरोगिता खोया हो तो बहुत कुछ खोया है परंतु आत्मविश्वास खोया हो तो सब कुछ खो बैठे हो। आत्मविश्वास की लौ जलाये रखने के लिए दिल में जिनेश्वर की श्रद्धा को प्रज्वलित करें। जैसे अच्छा फोटो क्लिक करने के लिए स्थिर होकर पोस देना आवश्यक है वैसे ही जीवन में जब निराश और हताश हो जाओ तब स्थिर हो जाना क्योंकि रास्ता तो सामने ही होता है किंतु अस्थिरता के कारण दिखता नहीं। जीवन के इस खेल को बराबर समझकर समर्पण-श्रद्धा प्रार्थना-आत्मविश्वास-धैर्य एवं शौर्य से खेलकर अवश्व जीत हासिल करें। जब आपके आत्मा से क्रोध-मान-माया-लोभ का विसर्जन होगा तब आपके जीवन में अवश्य जीत का सर्जन होगा। बस कर्म संग्राम के इस जंग को जीतकर शीघ्र परमात्मा बनें।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH