-ललित गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार
भारत में कोरोना संक्रमण के कहर को झेल रही जिन्दगी बड़े कठोर दौर के बाद अब सामान्य होने की कगार पर दिखाई दे रही है। वैज्ञानिकों की नेशनल सुपर मॉडल समिति ने दावा किया है कि देश में कोरोना का चरम सितम्बर में ही आ चुका था और फरवरी 2021 में कोरोना का वायरस फ्लैट हो जाएगा। इस समिति में आईआईटी हैदराबाद और आईआईटी कानपुर समेत कई नामी इंस्टीट्यूट्स के विशेषज्ञ शामिल हैं। जाता हुआ यह महासंकट कम्युनिटी ट्रांसमिशन का रंग भी दिखा रहा है, इस बात को केंद्र सरकार ने अंततः आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। सरकार का कहना है कि पूरे देश में नहीं, पर कुछ जिलों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में इसका संक्रमण फिर फैल सकता है। इसलिये वास्तविक सावधानी, सर्तकता, सामाजिक दूरी, माॅस्क, उपचार आदि पर विशेष ध्यान देने की जरूरत अब पहले से ज्यादा है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी, वाली स्थिति गंभीर संकट का सबब बन सकती है। कोरोना का डर, खतरा भले ही थोड़ा कम हुआ है, लेकिन उसका फैलाव इतना बढ़ गया है कि ज्यादातर मामलों में स्रोत का पता लगाना अब आसान नहीं। अब कोई अगर यह माने कि संक्रमण केवल बाहर से आने वालों को या बाहर से आने वालों के कारण हो रहा है, तो शायद स्वीकार करने में दिक्कत आएगी। कोरोना से संघर्ष की स्थितियां अब ज्यादा जटिल प्रतीत हो रही है भले ही अब महासंकट का अंत निकट दिखाई दे रहा है।
ये सुखद एवं खुशी देने वाली खबरें हैं कि रोजाना सामने आ रहे केसों की संख्या में भी कमी देखी जा रही है। भारत में हर सौ में से 88 मरीज ठीक हो रहे हैं यानी रिकवरी रेट 88.82 फीसदी तक जा पहुंचा है। लेकिन इन उजालों के बीच फिर एक अंधेरा कम्युनिटी ट्रांसमीशन का छाया है, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना वायरस कम्युनिटी ट्रांसमीशन के फेज में पहुंच चुका है। जून की शुरुआत में ही दिल्ली में यह बात सामने आ गई थी कि कोरोना के 50 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में स्रोत का पता नहीं चल रहा है। दिल्ली सरकार के बाद केरल और हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सामुदायिक संक्रमण को स्वीकारा है, शायद इसी दबाव में केंद्र सरकार को भी आंशिक रूप से मानना पड़ा है। हालांकि इस सच को पूरी तरह से स्वीकार करने में दिक्कत क्यों है? एक और चिन्ता सामने दिख रही है कि उपचार के बाद कोरोना से मुक्त हुए बड़ी संख्या में मरीज दूसरी बीमारियों के शिकार होकर मर रहे हैं या उनका जीवन संकट में हैं। विशेषतः सांस लेने की दिक्क्त तो सामान्य है, वृद्धों के जीवन पर अनेक बीमारियां हावी हो रही है, बच्चों एवं महिलाओं में भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ी हंै।
ठीक हुए कोरोना पीड़ितों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एक गंभीर एवं चिन्ताजनक स्थिति है, इस स्थिति को गंभीरता से लेना होगा एवं सरकारों को संवेदनशील एवं सर्तक होना होगा। देश के अनेक इलाकों में संक्रमण थम गया है और लोग खतरा महसूस नहीं कर रहे हैं, देखने में यह भी आ रहा है कि जिन इलाकों में आज भी कोरोना कहर बरपा रहा है, वहां घोर लापरवाही बरती जा रही है, न शारीरिक दूरी की पालना हो रही है और न कोई मास्क पहन रहा है। जिन इलाकों में ज्यादा मरीज हैं, वहां इस शृंखला की पड़ताल और उसे तोड़ने की कोशिश अब पहले जैसी नहीं हो रही है। एक समय था, जब कहीं एक भी मामला सामने आता था, तब उसकी शृंखला खोजी जाती थी। शृंखला खोजने की बाध्यता से हम शायद मई महीने में ही बाहर निकल आए हैं। अनेक मंत्रियों और नेताओं की कोरोना की वजह से मौत हुई है या अनेक बीमार भी हुए हैं, पर शायद उनके मामले में भी कोरोना स्रोत या शृंखला की खोज नहीं की गयी है। ऐसे में, सामुदायिक संक्रमण की आंशिक घोषणा औपचारिकता मात्र है, भले अब इस विवाद में जाने की जरूरत न हो, लेकिन अभी कोरोना का संकट टला नहीं है, इसे स्वीकारने, सावधानी बरतने एवं संवेदनशील होने में ही सबका हित है।
कोरोना से बचने के दिशा-निर्देश एकदम स्पष्ट हैं। हर किसी को इतनी सावधानी तो सुनिश्चित करनी ही चाहिए कि किसी भी सूरत में कोरोना न हो और यह मानकर अपना बचाव करना चाहिए कि कोरोना कहीं भी हो सकता है। ठंड के कारण कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है। इसलिए अब बहुत ज्यादा सावधानी की जरूरत है। तमाम दावों और चेतावनियों के बीच एक और खुश करने वाली खबर आयी है कि अब जबकि कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल चल रहे हैं। भारत ने भी रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-फाइव के तीसरे चरण के ट्रायल की मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि कम से कम एक टीका तो नवम्बर या दिसम्बर की शुरुआत में आ सकता है। भारत ने कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता के बाद लोगों तक इसे जल्द से जल्द पहुंचाने की व्यवस्था तैयार कर ली है। इसके लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है। पूरा विश्व कोरोना के लिए वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहा है। इस समय सबसे पहली जरूरत वैक्सीन की सुलभता है।
भारत की संस्कृति साहस एवं परोपकार की संस्कृति रही है। लेकिन अपनी मूल संस्कृति की परिधि से ओझल होते ही जीवन संस्कारों का आधार खिसक जाता है। बिना चार दीवारी का मकान बन जाता है जहां सब कुछ असुरक्षित होता है। अतीत तो मिटता नहीं -मिटता वर्तमान ही है और भुगतता भविष्य है। इस संबंध में इस वास्तविकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। कुछ लोग केवल आर्थिक लाभ का नज़रिया रखते हैं। अपने लाभ के बदले संस्कृति के मूल्यों के स्खलन की उन्हें परवाह नहीं होती। ऐसे लोग संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने के अपराधी बन जाते हैं। बावजूद इसके भारत की विशेषता है कि हर संकट की घड़ी में वह तैयार हो जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में अधिकारियों के साथ वैक्सीन की डिलीवरी को सुनिश्चित बनाने के लिए विचार-विमर्श किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि वैक्सीन वितरण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें सरकारी और नागरिक समूहों की प्रत्येक स्तर की भागीदारी हो। उन्होंने तो यह भी कहा कि हमें वैक्सीन को सिर्फ पड़ोसी देशों तक सीमित नहीं रखना है बल्कि पूरी दुनिया में पहुंचाना है। जरूरत इस बात की है कि सरकार की वैक्सीन पहुंचाने के काम में राजनीति एवं राजनीतिक चालें बाधक न बने। राजनीति करने वाले सामाजिक उत्थान के लिए काम नहीं करते बल्कि उनके सामने बहुत संकीर्ण मंजिलें होती हंै, लेकिन वे इन अवसरों पर सेवा का चरित्र प्रस्तुत करें। जरूरत इस बात की भी है कि वैक्सीन वितरण व्यवस्था पारदर्शी, निष्पक्ष हो, उसके वितरण पर निगरानी के लिए भी एक तंत्र होना चाहिए।
देशभर से पल्स पोलियो ड्राप्स अभियान की सफलता का श्रेय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन को दिया जाता है, उन्हें इस संबंध में अच्छा खासा अनुभव है। कोरोना महामारी का सामना करने में भी उन्होंने अपनी सूझबूझ एवं कौशल का इस्तेमाल किया है। अब उनके नेतृत्व में वैक्सीन वितरण की एक सक्षम एवं प्रभावी व्यवस्था स्थापित हो, सरकार चाहे तो क्षेत्रवार एनसीसी कैडेटों, एनएसएस के वालंटियरों और अन्य स्वैच्छिक सेवा संगठनों की मदद ले सकती है। यह एक चुनौती भी है और सरकार की कसौटी भी है कि वैक्सीन उत्पादन और शीघ्र वितरण के नाम पर लाभ उठाने के लिए कुछ कार्पोरेट सैक्टर सक्रिय हो गए हैं। कंपनियों एवं दलालों की सक्रियता इन सेवा उपक्रमों को दागी न बना दे, लाभ एवं लालच के कारण उनकी मानवीयता एवं संवेदनशीलता कुंद प्रतीत हो रही है, दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि संकट की घड़ी में भी उनके और सहयोगी संस्थाओं के तौर-तरीके पहले जैसे ही कोविड-19 के उपकरणों की शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने के नाम पर चली व्यावसायिकता के लालचभरे हैं। जरूरी है कि वैक्सीन आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सस्ते में मिले, उसकी वितरण व्यवस्था समतामूलक एवं पारदर्शी हो। चुनौतियों तो बहुत हैं लेकिन सरकार भी पूरी तरह तैयार है और जनता भी हर सेवा देने को तैयार है।
(ये लेखक के उनके निजी विचार हैं)