
एमजी अरुण
अक्टूबर की शुरुआत में, अचानकसामने आई, बड़े बिजली संकट की संभावना को लेकर देश स्तब्ध था, क्योंकि भारत का70 प्रतिशत बिजली उत्पादन कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों से ही होता है।कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनोंने घोषणा कर दी थी कि उनके पास औसतन चार दिन का कोयला बचा है, जो कि पिछले कई वर्षों की तुलना में सबसे कम है। (हाल ही में इस साल अगस्त तक, इन बिजली संयंत्रों ने 13 दिनों का स्टॉक होने की सूचना दी थी।) स्टॉक के लगभग समाप्त होने के कारण, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान सहित कई राज्यों ने संभावित ब्लैकआउट की चेतावनी भी दी थी। मीडिया की खबरों के अनुसार राजस्थान, पंजाब और बिहार ने पहले ही लोडशेडिंग की राह पकड़ ली है। सथिति को देखते हुए, केंद्र ने भी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के उत्पादन को बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने के लिए कदम बढ़ाया है। इसके बावजूद, इस बात की व्यापक चिंता बनी हुई है कि फिलहाल जो स्थिति है, वह पूर्ण ऊर्जा संकट में बदल सकती है।
भारत में कोयले की 80 प्रतिशत मांग घरेलू उत्पादन से पूरी होती है। जहां 2020-21 में भारत की कोयले की कुल मांग लगभग 906 मिलियन टन थी, वहीं घरेलू कोयले का उत्पादन 716 मिलियन टन था। भारत के कोयला आयात (43 प्रतिशत) का एक बड़ा हिस्सा इंडोनेशिया से आता है, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया (26 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (14 प्रतिशत) और अमेरिका (6 प्रतिशत) हैं। घरेलू उत्पादन में सीआईएल का एकाधिकार है, और इसने अपनी सहायक कंपनियों के साथ, 2020-21 में 596.25 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया। अब सवाल है कि यह संकट आया कैसे? तो एक कारण तो आर्थिक गतिविधियों में आई तेजी को बताया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो अर्थव्यवस्था के खुलने (और देश के कई हिस्सों में जारी त्योहारों) के परिणामस्वरूप बिजली की मांग में वृद्धि हुई है, जिससे कोयले की मांग बढ़ी है, और इस वजह से संसाधनों पर दबाव बढ़ा है और अपेक्षा से अधिक तेजी से स्टॉक इस्तेमाल हुआ है। भारत में बिजली की कुल स्थापित क्षमता 3.88,849 मेगावाट है, जिसमें प्राइवेट सेक्टर की सबसे बड़ी भूमिका है, जो कुल उत्पादन का 48.2 प्रतिशत उत्पादन करता है। केंद्रीय और राज्य सेक्टर क्रमश: 25.2 प्रतिशत और 26.6 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के साथ, अगस्त में कुल बिजली की मांग 2019 के इसी महीने के 106 बिलियन यूनिट के मुकाबले बढ़कर 124 बिलियन यूनिट हो गई। क्रिसिल के अनुसार, भारत की दैनिक बिजली की खपत 4 बिलियन यूनिट को पार कर गई, जिसके परिणामस्वरूप कोयले की खपत में अगस्त-सितंबर, 2019 की तुलना में 2021 की इसी अवधि में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई। उसी समय, चीन में कोयले की कमी के कारण अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतों में तेज वृद्धि देखी गई, क्योंकि अधिकारियों ने अगले साल फरवरी में बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक से पहले सख्त प्रदूषण कानून लागू किए हैं। भारतीय बिजली संयंत्रों ने भी इस साल कम स्टॉक जमा किया, क्योंकि सितंबर में हुई भारी बारिश से कोयला आधारित क्षेत्रों में उत्पादन प्रभावित हुआ था। इसी तरह, इंडोनेशिया में भारी बारिश के कारण उत्पादन बाधित होने के बाद कोयले के आयात में कमी आई। इन सभी कारकों के परिणामस्वरूप, जब बिजली संयंत्रों में कोयले के स्टॉक में तीन सप्ताह तक लगातार गिरावट आई, तो घबराहट शुरू हो गई।
अब तक, केंद्र ने उत्पादन बढ़ा कर, गैर-विद्युत क्षेत्रों को कोयले की आपूर्ति की राशनिंग करके और अधिक उत्पादन के लिए कैप्टिव उत्पादकों की तरफ रुख करके एक बड़े संकट को टालने में सफलता पाई है। हालांकि, खतरा पूरी तरह से दूर नहीं हो पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि संकट केंद्र सरकार के लिए चेतावनी की घंटी है। पूर्व कोयला सचिव अनिल स्वरूप कहते हैं कि सीआईएल को कोयला उत्पादन बढ़ाने और अपने कामों को प्रभावी ढ़ंग से निपटाने की जरूरत है। गौरतलब है कि सीआईएल के तत्कालीन प्रमुख के 2017 में सेवानिवृत्त होने के बाद कंपनी में पूरे एक साल तक कोई सीएमडी नहीं था।सीआईएल का उत्पादन भी पिछले तीन वर्षों से लगभग 600 मिलियन टन पर स्थिर है। एक मीडिया साक्षात्कार में, अनिल स्वरूप ने बताया है कि सीआईएल के पास 35,000 करोड़ रुपये का नकद भंडार था, और उसे इन फंडों का उपयोग विस्तार और उत्पादन बढ़ाने के लिए करना चाहिए। इसके अलावा, उनकी महत्वपूर्ण सलाह है कि केंद्र को कोयला उत्पादक राज्यों के साथ प्रभावी संवाद भी करना चाहिए, ताकि राजनीतिक दोषारोपण के खेल में शामिल होने के बजाय कोयला उत्पादन को बढ़ाया जा सके।
इस बीच, सीआईएल को अपनी संचालन दक्षता बढ़ाने के लिए, उपयोग में लाई जा रही तकनीक से अधिक आधुनिक तकनीक इस्तेमाल करने की जरूरत है। इसके अलावा, जिन अन्य मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है उनमें कोयला खनन में निजी भागीदारी पर मुकदमेबाजी संबंधी गतिरोध को कम करना, पर्यावरण मंजूरी सहित फास्ट-ट्रैकिंग मंजूरी प्रदान करना और परिवहन को गति देने के लिए रेल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना शामिल है। जब तक ऐसे मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तब तक कोयले की कमी जारी रह सकती है और अंत में, एक पूर्ण ऊर्जा संकट में बदल सकती है। और कोयले की कमी के संकट को दूर करना आखिरी चीज होगी, जिसकी जरूरत पहले से ही वैश्विक महामारी से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे भारतको पड़ेगी।