अहमदाबाद। संसार के रंग राग में फंसने के बाद मानव शीघ्र मुक्ति को नहीं पा सकता है। मोक्ष पाना है तो संसार के मोह माया से निकलना पड़ेगा। जिसके साथ संबंध जोड़ है उनके साथ राग नहीं करनाष मोह नहीं करना। राग एवं मोह का परिणाम बहुत बूरा आता है। किसी के साथ राग किया कुछ कारण से उसके साथ खटपट हुआ बाजी द्वेष के रुप में बदल जाती है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है राग करो परंतु अति मत करो। किसी के करीब मत जाओ थोड़ा दूर रहना ही अच्छा है। गौतम स्वामी को परमात्मा महावीर के प्रति राग था परंतु वह अप्रशस्त राग था। अप्रशस्त राग सहजता से मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयशसूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जैन रामायण में कीर्तिधर राजा एवं श्री देवी की बात आती है श्री देवी रानी कार्तिधर राजा पर अत्यन्त राग करती थी। एक बार परमात्मा के सांनिध्य में रहकर संसार से विरक्त बनकर उन्होंने श्री देवी रानी को छोड़कर दीक्षा ले ली। रानीराजा से खूब प्रेम करती थी इसलिए वह दीक्षा की बात सुनकर दु:खी हुई। दु:ख के कारण उसमें आवेग, आक्रोश एवं उद्वेग उत्पन्न हुआ। जितना राजा के प्रति उसको राग था वहीं राग अब तीव्र द्वेष के रुप में बदलाव लाया। रानी ने मन ही मन संकल्प किया कि उसके बेटे को बाप के करीब जाने नहीं देंगी। राग कितना भयंकर है जब व्यक्ति के प्रति प्रेम होता है तब वह उसके लिए मर मिटने को तैयार हो जाता है जबकि द्वेष उसका उलटा। दुश्मनावट एवं बदला लेने के सिवाय उसके मन में कुछ भी नहीं सूझता है।
बरसों बीत गए। पुत्र युवान हुआ। एक दिल कीर्तिधर मुनि उसी नगर में आए। उस मुनि को देखने ही भूतकाल का क्रोध ओर भी भी ज्यादा बढ़ा। सैनिक को बुलाकर आदेश दिया कि उस मुनि को देश निकाल करो। कहते है जिस रानी को राजा के वगैर एक पहल भी चलता नहीं था वहीं रानी आज राजा का मुंह तक देखने को तैयार नहीं किसी पर अत्यंत प्रेमकरना अच्छी बात नहीं है. जब वह व्यक्ति दूर हो जाता है तब उसका वियोग उसे दु:खी करता है कहते है आज की तारीख में कोई आपको खुश नहीं होना क्योंकि वहीं व्यक्ति कभी आपकी बदमानी भी कर सकता है किसी पर भरोसा करने जैसा नहीं है। कल की तारीख में जो रानी। स्वामीनाथ। स्वामीनाथ। किया करती थी वहीं रानी आज राजा के मुंह तक देखने को तैयार नहीं है। रानी की खास दासी ने जब ये समाचार सुने तब वह फुट फुटकर रोने लगी। सुकोशलकुमार ने दासी को रोने का कारण पूछा। दासी ने कुमार को सभी बात बता दी। सुकोशलकुमार तुरंत ही पिता मुनि के दर्शन करने गया। पिता मुनि के शांत एवं सौम्य मुखाकृति को देखते ही वें अत्यंत प्रभावित हुए। पूज्यश्री फरमाते है संत वहीं है जिनके वोइस से ज्यादा वाइब्रेशन्स ज्यादा लोगों पर असरकारक होता है। सुकोशल कुमार को एक तरफ राजमहल का भौतिक सुख एक तरफ पिता मुनि का परम शांत सांनिध्य एक तरफ साधन सामग्री का वैभव दूसरी ओर आत्म गुणों का वैभव था। तुरंत ही निर्णय लेता है कि पिता मुनि का शरण ही योग्य शरण है।संत के दर्शन लोगों के जीवन में कैसे कैसे परिवर्तन लाता है सुकोशल कुमार ने दीक्षा ले ली। रानी को जब ये समाचार मिले उसका क्रोध बेकाबु हो गया। पति ने दीक्षा का दु:ख पहले से असल था अब पुत्र का गुस्से से आग बबुला हुई। जहां तहां भटकने लगी पागल बन गई। एक बार खंभे के साथ उसका सिर टकराया मृत्यु हुई। क्रोध एवं आवेश व्यक्ति का दिमाग हिला देता है। मरकर शेरनी बनी। एक बार पिता एवं पुत्र मुनि जंगल से विहार करके ना रहे थे। शेरनी को जैसे ही दोनों को देखा आक्रोश से लाल हो गई। भूतकाल की फाईल खुली। गुस्से से कीर्तिधर मुनि पर टुटकर उन्हें चीर डाला। सुकोशल मुनि शांत मुद्रा में नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे। सिवाय अरिहंत के शरण, दूसरा कोई वचने का उपाय नहीं था। उस पुत्र मुनि को भी मारकर उनका ही खून पीने लगी। कमी का सिद्धांत कैसा है जिस मां ने बालक को स्तनपान कराया, वहीं माता पुत्र का खून करके उसी का खून पीती है। कभी किसी से अत्यंत राग न करो, मोह का परिणाम कैसा पूरा आया। राग करो तो सिर्फ परमात्मा से, वीतरागी से, जो तुम्हें संसार से विरक्त बनाकर परमपद की ओर ले जाएगा। आज युवान प्रतिबोधक प.पू. वीतराग यशसूरीश्वरजी महाराजा पांचवी पीठीका की पूर्णाहूप्ति करके खूब ही उत्साह एवं वधामणा के साथ भाविकों ने उनका स्वागत किया। वे पीठीका से बाहर आकर गच्छाधिपति एवं अन्य आचार्यों के आशीर्वाद प्राप्त करके अपने आप को धन्यकृत माना।
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