अहमदाबाद। दुनिया में किसी भी चीज की कीमत वहीं तक है जब तक उसकी जरूरत है। बाजार से आप कोई चीज खरीददकर लाते हो उसका उपयोग भी किया फिर जरूरत न होने पर आप उस चीज को एक तरफ रख देते हो। कितनी बार हमें कोई चीज या वस्तु अथवा तो महत्व के कागज कोई देकर आता है उस समय हमें उस कागज की जरूरत नहीं होने से इधर-उधर हम उस कागज को रख देते है जब उसकी आवश्यकता होती है तब हमने उस चीज को कहां रखी है वह चीज नहीं मिलने पर हमें उसका महत्व समझ में आता है।
प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है किसी चीज का सही महत्व तभी समझ में आता जब उसको ढूंढने पर भी नहीं मिलती है। जब हमारे हाथ में वह चीज आई थी तब उसकी आवश्यकता न होने पर हमने कहीं रख तो दी उस समय उस चीज की कीमत शून्य थी अब जब जरुरत है तब हम उसका मूल्य समझते है
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है मानव का भव हमें मिला है। उसकी कीमत हम नहीं समझ रहे है। बचपन हमारा खेल खूद मौज में गया, तब हमारी अज्ञान दशा थी तब कोई कहने समझाने वाला नहीं था। युवानी आई परिवार फ्रेंड सर्कल के साथ मौज, भोग, सुख, घूमने फिरने में समय बरबाद किया। कभी प्रचवन में गए तो महाराज साहेब ने समय की मूल्यता बताई लेकिन एक भी बात गले नहीं उतरी। तब ऐसा लगता था युवानी है मौज मस्ती का समय है बाद में करेंगे।
जब वृद्धावस्था आई तो चलने फिर की ताकात नहीं। एक ग्लास पानी लेकर स्वयं को पीन ा नहीं हो रहा है। आंख से ठीक नहीं दिक रहा है। समय था। हाथ पैर चल रहे थे तब स्वरूप अवस्था की कीमत नहीं समझाई अब पश्चाताप हो रहा है पूज्यश्री फरमाते है।
ये मानव भव मिला है उसका भी मूल्य हम नहीं समझ रहे है। किनारे गया है। सुबह से शाम होने आई उसके हाथ एक भी मछली नहीं आई। वह नदी के किनारे बैठा निराश होकर उसके आसपास रहे , हर एक -एक पत्थर को उठाकर नदी में फेंक रहा है अब सिर्फ एक ही पत्थर बाकी रहा। जैसे ही वह नदी में फैंकने जा रहा था उस पत्थर पर चन्द्र का प्रकाश पड़ा। वह पत्थर चमकने लगा। उसने उस पत्थर को कुछ कीमती चीज समझकर सब्जी की दुकान की ओर चला। उसने उस सब्जी वाले को यह पत्थर दिखाया। उस सब्जी वाले ने 5 किलो सब्जी उस पत्थर के बदले देने के लिए तैयार हुआ। इस मच्छीमार का मन नहीं माना। वह किराने की दुकान की ओर चला। उसने भी यह पत्थर दिखाया। उसने किराने की दुकान वाले ने इस पत्थर के बदले 50 किलो गेहूं देने की बात की।
अब मच्छीमार के मन में आया दाल में कुछ काला हैं वह हीरा झवेरी की दुकान में गया। उसे यह पत्थर दिखाया। झवेरी ने पूछा, भैया ये पत्थर कहां से लाया। तुम्हारे पास इस तरह के पत्थर और भी है? साहेब मेरे पास ऐसे अनेक थे लेकिन मैंने उन सबको पानी में डाल दिया। क्या बात है पानी में? मूर्ख! इसकी कीमत जानते हो? नहीं। एक करोड़ रुपिये का यह रत्न है।
मच्छीमार मन ही मन दु:खी हुआ। मेरे हाथ में आए हुए रत्न को मैंने ही जानबुझकर इस इस नदी में फैंका। अब क्या होने वाला था। अब पछताये क्या होता है जब चिडिय़ा चुग गई खेत। लाख अफसोस करने पर भी यह रत्न वापिस नहीं मिलने वाला है इसी तरह महापुण्योदय से यह मानव भ मिलाया है।
हमारी बूरी आदत है कि हम कितनी चीजों को तिरस्कार की दृष्टि से देखते है जब उन चीजों की जरूरत पड़ती है तभी हमें उसका मूल्य समझ में आता है हमें यह मानव भव मिला है। इस मानव भव का सही ढंग से हमें उपयोग करना है। बस मानवभव कगे एक एक समय का मूल्य जानकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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