अहमदाबाद। प्रभु महावीर ने अपनी अंतिम देशना में फरमाया कि दुर्लभ ऐसा मनुष्य भव एवं जैन धर्म मिला है। इतने मूल्यवान भव का एक समय भी व्यर्थ जाने देने जैसा नहीं है। बार-बार यदि इस भव को प्राप्त करना हो तो बराबर तैयारियां कर लो। जब तक कषायों का अंधकार छाया रहेगा तब तक मोक्ष नहीं होगा। आत्मा में से कषायों को कैसे भगवान वह सोचो।
जैनाचार्य वैराग्य प्रेमी, प्रभावक प्रवचनकार प.पू.गुरूदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि क्रोध की बातें तो सही लगी अब उसके मूल में जाओ। सोचो कि क्रोध आता कहां से है? आत्मा का पृथकरण करते करते, अनेक लोगों से बातचीत करते ऐसा लगता है कि जिनको परस्पर एक-दसूरे के प्रति पूर्वाग्रह होता है उन पर गुस्सा आता है। हजार गलत काम करने वाला भी कभी अच्छा कार्य कर सकता है। यह संपूर्ण जगत परिवर्तनशील है। अपनी धीरज की कमी होती है इसलिए उसके परिवर्तन का इंतजार नहीं कर सकते। परिवर्तन की पल किसके जीवन में कब आ जाती है कुछ वह नहीं सकते। जैसे प्रभु की वाणी सुनकर पापी, हिंसक, क्रूर अर्जुनमाली जो प्रतिदिन छ: हत्याएं करता था वह भी संयमी बने तत्पर बन गया। निमित्त तो सुदर्शन सेठ बनें, प्रभु के पास ले गए और उसके जीवन में परिवर्तन सेठ बनें, प्रभु के पास ले गए और उसके जीवन में परिवर्तन आया।
अर्जुनमाली सुदर्शन सेठ के चमत्कार से प्रभावित हुआ और चमत्कार का कारण पूछा तो सेठ ने कहा मेरे पास चमत्कार नहीं कर मेरे प्रभु के पास चमत्कार है। जिसके दिल में श्रद्धा अचल चीज है। श्रद्धा से तो आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजयी बन सकते है। किसी मित्र की या अपने कोई आदर्श व्यक्ति को सफलता का राज पूछोगे तो उसका कारण श्रद्धा ही होगा।किसी के वचनों पर विश्वास करके अपने बच्चों का स्कूल में अेडमिशन कराते हो, किसी अंजान कंपनी के साथ बिजनेस करने तैयार हो जाते है, तो कभी तीर्थंकर परमात्मा के वचनों पर श्रद्धा करके देखो अवश्य चमत्कारों का अनुभव होगा। परमशक्ति के सहारे ही आप सफलता को प्राप्त कर सकेंगे। श्रद्धा प्रगटाने के लिए क्या करना चाहिए? पूज्यश्री ने फरमाया श्रद्धा के लिए सर्वप्रथम संकल्प का इन्वेस्टमेन्ट करो। इन्वेस्ट करने के बाद कुछ त्याग अभिग्रह करो। जैसे वीणा के तार यदि मजबूताई से बांधे हो तो ही उसके सूर अच्छे निकलते है ठीक वैसे ही जीवन के सूर को मधुर बनाने के लिए नियम व्रत, त्याग एवं अभिग्रह आवश्यक है। जब निर्धारित संकल्प पूर्ण होते हैं तब श्रद्धा दृढ़ होती जाती है।ऐसी ही एक घटना कुछ दिनों पूर्व एक परम गुरू भक्त के यहां बनी। वह नौजवान युवक ऐसे तो अपने कार्य में प्रामाणिक था फिर भी पता नहीं कैसे उसके ऑफिस में इनकम टैक्स की रेड आ गई। पूछने पर पता चला कि उसके स्टाफ के एक लड़के ने कुछ अनीति एवं प्रमाणिकता से पैसे इकट्ठे किए हैं। उसी की छानबीन करते हुए वे ऑफिसर्स थे और वह युवक अकेला था। हिम्मत से उनके साथ ऑफिस पहुंचा और वहीं पे उसने संकल्प किया कि यदि मैं प्रामार्णिक साबित हो जाऊं और ये सब ऑफिसर्स यहां से चले जायेंगे तो मैं सर्वप्रथम पू. गुरुदेव विक्रमसूरीश्वरजी म.सा. की समाधि के दर्शन करूंगा फिर ही मुंह में पानी डालूंगा। सुबह आठ बजे गुरू हुई पूछताछ एवं इन्क्वेरी रात को बारह बजे पूर्ण हुई। इतने घंटों की इन्क्वेरी के बाद ऑफिसरों को आखिर कहना पड़ा कि आपके सब खाते क्लियर है। आप प्रमाणिक है इस तरफ ऑफिसर्स अलविदा करके गए और वह युवक सबसे पहले अहमदाबाद के शांति नगर विस्तार में आये हुए पू. गुरुदेव विक्रम सूरीश्वरजी म.सा. के समाधि मंदिर दर्शन करने गए और बाद में पानी का एक घूंट पीया। संकल्प किया परम श्रद्धेय गुरुवर के चरणों में समर्पित हो गया और भोजन-पानी का त्याग कर दिया तो इतना बड़ा चमत्कार हुआ। उस युवक की प्रामाणिकता तो है ही साथ में उसके श्रद्धा एवं पुण्याई की भी दाद देनी चाहिए। आज भी श्रद्धा से चमत्कारों का सर्जन होता है। प्रभु को या आराध्य को प्रार्थना करें संपूर्ण श्रद्धा से प्रार्थना करें कि आपके शुभ संकल्पों को अवश्य पूर्ण करें। परीक्षा, कसौटी तो होगी पर उस परीक्षा में हमें पास होना है। कहा जाता है कसौटी तो सोने की ही होती है लोहे की नहीं। जिसमें योग्यता हो उसी कि परीक्षा होती है। बस जीवन में श्रद्धा का दीपक जलायें और आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़े।
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