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मुंबई। नवपदजी की आराधना आसाज मास एवं चैत्र मास में होती है। यह ओलीजी की आराधना को शाश्वत पर्व के रूप में माना गया है। अनंत काल के पूर्व भी यह ओली की आराधना होगी। कहते हैं सिर्फ मनुष्य ही इस नवपद की आराधना नहीं करते है, बल्कि पर्व की महिमा को समझकर देवों भी इस ओली दरम्यान नंदीश्वर द्वीप विगेरे जिनालयों में जाकर महामहोत्सव करते है। दिव्य संगीत-दिव्य नृत्यु वगैरे करके आनंद मनाते हंै।
मुंबई में बिराजित प्रवखर प्रवचनकार संत मनीषी, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं आज नवपदजी ओली की आराधना का प्रथम दिन है। नवपद में अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु दर्शन ज्ञान, चारित्र एवं तप आता है। आज अरिहंत पद की आराधना का दिन है। राग-द्वेष रूपी शत्रु को जीतकर जो अरिहंत बने हैं, ऐसे पद की आज हमें आराधना करनी है। वैसे देखा जाय तो अरिहंत के अनेक गुण है, परंतु सबसे मुख्य गुण जो अरिहंत में पाया है, वह है परोपकार गुण।
पूज्यश्री फरमाते हंै हमें परार्थ व्यसनी बनना है। सिर्फ स्वार्थी जीवन नहीं जीना है बल्कि हमारा जीवन अन्य जीवों की रक्षा हेतु मदद हेतु जीवन होना चाहिए। दूसरों की मदद लेकर उपकार लेकर स्वार्थ जीवन होगा चाहिए। दूसरों की मदद लेकर उपकार लेकर स्वार्थ जीवन नहीं जीवा है बल्कि किसी न किसी प्रकार से आपसे जो हो सके ऐसी अन्य की भलाई करनी है।
एक लड़का बस में आंख बंद करके बैठा था किसी ने उस लड़के को इसका कारण पूछा तो उसने बताया इस बस में मेरे पास में एक 80 वर्ष की वृद्ध कब से खड़ी है ये दृश्य मेरे से नहीं देखा जा रहा है इसलिए मैंने आंख मूंद ली है। तब उसने उस लड़के को कहा, भला मानव, यदि तुझसे ये दृश्य देखा नहीं जा रहा है तो तुं चुपचाप खड़े होकर उसे बिठा दे ना। परंतु स्वार्थी लोगों के मन में ऐसी भावना ही नहीं आती। कहते है यदि कोई तीर्थंकर का जीव होता तो वह पहले दूसरों की भलाई का सोचकर खुद उठकर उस माजी को पहले बिठा देता। मानलो, आपके संघ में ओली के 300 आराधक है हल में सिर्फ 125 लोगों का ही समावेश हो सकता हो तो आपको पहले अशक्त-वृद्ध-बच्चों को पहले बिठाना चाहिए आपका नंबर दूसरी पंगत में लगेगा क्या फरक पड़ेगा? इस तरह से परोपकार का काम हो सकता है। आज कोरोना के कारण कितने के धंधे पाणी बंद है घर पर बैठे है पूज्यश्री फरमाते है आप यदि सक्षम हो धनवान हो तो उन लोगों की मदद करनी चाहिए। धन तिजोरी में पड़े रहने से क्या मतलब? उसका सही उपयोग तो होना हो चाहिए आपके जीते जी परोपकार का काम हो जाय तो एक दिन आपका भी नंबर अरिहंत बनने में लगेगा।
आपसे जो बने छोटा-बड़ा परोपकार का काम प्रतिदिन जरूर करना चाहिए। आज के दिन से श्रीपालरास का वाचन किया जाता है। प्रजापाल राजा की दो पुत्री है एक मयणासुंदरी तथा दूसरी सुर सुंदरी। मयणा सुंदरी की माता जैन धर्मी थी जबकि सुर सुंदरी की माता शिव धर्म का पालन करती थी। दोनों पुत्री चौसठ कला में निपुण थी। एक बार प्रजापाल राजा अपनी पुत्रियों की परीक्षा हेतु दोनों को सभा में आमंत्रण देता है। पिता की आज्ञा को सहर्ष स्वीकार करके दोनों पुत्रियां सभा में उपस्थित हुई तब प्रजापाल राजा ने अपनी पुत्रीयों को अनेक सवाल पूछे, उसमें से एक सवाल यह था कि दुनिया के लोग जो सुख को भुगत रहे है वह किसकी कृपा से है? तब सुरसुंदरी ने अपने पिता को खुश करने के लिए जवाब दिया, पिताजी ये सभी आप ही की कृपा का फल लोग भुगत रहे है। मयणासुंदरी ने अक्कड़ के साथ जवाब दिया पिताजी! आप किस चीज का अभियान कर रहे हो संसारी लोग जो सुख दु:ख भोग रहे है ये तो कर्म के मुताबिक है। जो कैसा करता है उसका फल, कर्म उसे वैसा ही देता है।कहते है सुरसुंदरी के जवाबद से खुश होकर राजा ने शंखपुरी के राजा अरिदमन के साथ उसकी शादी करवा दी जबकि मयणासुंदरी के जवाबद से नाखुश होकर राजा क्रोधित हो गए। अब प्रजापाल राजा मयणासुंदरी को क्या जवाब देते है कल के प्रवचन में बताया जाएगा।बस परोपकारी जीवन जीकर शीघ्र अरिहंत बने यही शुभाशिष।