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मुंबई। आज मेरा आप सभी को एक प्रश्न है तपश्चर्या मन से होती है या शरीर से होती है? तपश्चर्या में मन की प्रधानता ज्यादा है या शरीर की? कोई मन को इम्पोर्टेन्स देता है तो कोई शरीर को इम्पोर्टेन्स देते हंै। जैन धर्म एकांतिक धर्म नहीं है। वह हरेक दृष्टिकोण को स्वीकारती है। फिर भी हम इस प्रश्न को एक उदाहरण से समझने का प्रयत्न करेंगे।
मदनजी व्यापारी को एक मुसलमान के साथ दोस्ती हुई। एक बार मुस्लिम भाई ने मदनजी को कहा, भाई मुझे आपके घर का खाना खाना है। मदनजी मुसलमान भाई को अपने घर ले गए और कहा कि आज खिचड़ी बनाएगें परंतु अपने बीच में एक शर्त रखेंगे कि खिचड़ी में से मूंग मैं खाऊंगा, क्योंकि वह पौष्टिक होता है एवं आपको चावल खाना। मुसलमान साहेब ने कहा कि ठीक है वैसे भी हम मूंग तो खाते ही नहीं हमारा खुराक चावल ही है।
खिचड़ी तैयार हो गई। मदनजी फटाफट मूंग चुन चुन कर खाने लगे। मुसलमान भाई के भाग में चावल कम आए। गुस्से में आकर कहने लगे चारों तरफ तो मूंग ही मूंग दिखते है आपने इसमें चावल 80 प्रतिशत डाले थे एवं मूंग 20 प्रतिशत डाले थे फिर भी ऐसा क्यों हुआ? मदनजी ने कहा, भाई, हमारे व्यापारियों की यहीं कमाल है। हम थोडे है फिर भी चारों ओर व्यापक रूप से दिखते ही है।
बम्बई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि पं.पूं. राजयश सूरीश्वरजी म.सा. श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि तप में भी खिचड़ी का नियत लगता है। शरीर की शक्ति तप में सिर्फ 20 प्रतिशत काम करती है, जबकि मन की शक्ति 80 प्रतिशत काम करती है। 
कितने लोगों की खराब आदत होती है तप करने वालो का उत्साह तोड़ देते है बड़ी मुश्किल से मन को मनाकर उपवास के लिए तैयार होगा है तो सामने वाला उसको हताश कर देता है। कहता है, तेरा शरीर तो देख, कितना पतला हो गया है। तुं क्या कर पाएगा? इस तरह बोलकर तप का उत्साह तोड़ देते है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है जीवन में यदि आगे बढऩा हो तो अथवा तो कोई अच्छे कार्य करना हो तो ऐसे लोगों के साथ रहना चाहिए जो आपको हमेशा प्रेरणा करता है। एन्करेज करता हो। आप उनसे दूर ही रही ऐगा।
बेंगलोर विधानसभा के अंदर एक अच्छा सुविचार लिखा था एक नेगेटीव विचार दश पोझीटीव विचार का नाश करती है। इसलिए कभी भी नेगेटीव विचार करना नहीं। एक भाई दीक्षा के लिए तैयार हुआ घर पर उसने अपनी भावना परिवार वालों को बताई। तुरंत ही घर का एक सदस्य खड़ा होकर कहने लगा इस उम्र में क्या दीक्षा ली जातीहै? तुं ठीक तरह से संयम का पालन नहीं कर सकेगा। गृहस्थ अवस्था में रहकर आराधना-साधना कर। इस तरह कहकर उसका उत्साह तोड़ डाला। हताश कर दिया।
जीवन में हमेशा किसी को भी एन्करेज करो। आपमें यह कार्य करने की शक्ति है। आप जरूर इस कार्य को पूरा कर सकोंगे। इस तरह बार-बार कहने से सुषुप्त शक्ति जागृत होती है। अच्छे विचार के लिएरोज सद्वांचन करो सत्संग करना। वांचन वह विकास है। आप अच्छी पुस्तके पढ़ेंगे तो आपका विकास निश्चित है। अच्छी बातें जब अपने दिल को छू जाती है तब धीरे-धीरे अपने आचरण में भी आने लगती है। जीवन का एक अभिगम जरूर रखना हमेशा में दूसरों को प्रेरणा करता रहूंगा किसी को हतोत्साही तो नहीं ही करूंगा।