शास्त्रों में सुपारी को देवताओं का प्रतीक माना जाता है। सरल शब्दों में कहें तो सुपारी में देवताओं का वास होता है। जब पूजा के समय देवताओं का आह्वान किया जाता है तो सुपारी को देवताओं का प्रतीक मानकर पूजा संपन्न किया जाता है।
सनातन धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। आसान शब्दों में कहें तो भक्ति की शुरुआत पूजा-पाठ से होती है। वैदिक काल में पूजा, जप-तप और यज्ञ किया जाता था। आधुनिक समय में विशेष अवसर पर यज्ञ किया जाता है, किंतु पूजा-पाठ नित्य प्रतिदिन किया जाता है। वहीं, मांगलिक कार्य करने से पहले पूजा की जाती है। साथ ही मनोकामना पूर्ण होने पर भी पूजा, कीर्तन, जागरण आदि कराया जाता है। इन अवसरों पर सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस पूजा में कुल देवी, नवग्रहों समेत सभी देवी-देवताओं और भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा की जाती है। हर धार्मिक अनुष्ठान और पूजा में पान-सुपारी का उपयोग किया जाता है। आइए जानते हैं कि क्यों मांगलिक कार्य समेत पूजा में पान और सुपारी चढ़ाई जाती है- सनातन धर्म में पूजा के समय पान और सुपारी चढ़ाई जाती है। हालांकि, पूजा की सुपारी और खाने की सुपारी में अंतर होता है। दोनों अलग-अलग हैं। खाने वाली सुपारी बड़ी और गोल होती है, तो पूजा की सुपारी छोटी होती है। शास्त्रों में निहित है कि पूजा की सुपारी का सेवन नहीं करना चाहिए। पूजा संपन्न होने के बाद सुपारी को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए या जलधारा में प्रवाहित कर देना चाहिए।
क्यों चढ़ाई जाती है सुपारी : शास्त्रों में सुपारी को देवताओं का प्रतीक माना जाता है। सरल शब्दों में कहें तो सुपारी में देवताओं का वास होता है। जब पूजा के समय देवताओं का आह्वान किया जाता है, तो सुपारी को देवताओं का प्रतीक मानकर पूजा संपन्न किया जाता है। इस दौरान सुपारी में मंत्रों उच्चारण कर देवताओं को स्थापित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पूजा में सुपारी के उपयोग से ब्रह्मा, यमदेव, वरूण देव और इंद्रदेव की उपस्थिति होती है।
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क्यों चढ़ाई जाती है पान की पत्ती
धार्मिक मान्यता है कि कालांतर में समुद्र मंथन के समय देवताओं ने पान के पत्ते का उपयोग किया था। दैविक काल से मांगलिक कार्य समेत पूजा में पान के पत्ते का उपयोग किया जाता है। पान के पत्तों में भी देवताओं को वास होता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अत: पूजा में पान और सुपारी चढ़ाई जाती है।
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