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जो ट्रेन कम स्टेशनों पर रुकती है वह ट्रेन अंतिम स्टेशन तक जल्दी पहुंचती है
मुंबई। छगन हेयर कटिंग सेलून में गया। अंदर जाकर हजाम से पूछा, आपके अस्तुरों (अस्त्रों) कैसे चलाते हैं? हजाम ने गर्व से कहा कि अरे! मेरे अस्त्रों के बारे में तो क्या कहना। वह तो राजधानी एक्सप्रेस की तरह चलता है। यह सुनकर छगन खुश होकर हजामत कराने बैठ गया। हजाम ने जल्दी से उसकी हजामत कर ली। छगन ने दर्पण में देखा में उसके सिर पर छोटे-छोटे बाल रह गए थे। यह देखकर छगन चौंक कर बोला। अरे! तुम तो अपनी सफाई मार रहा था। परंतु ये क्या? मेरे सिर पर अभी भी छोटे-छोटे बाल दिख रहे है? हजाम छगन को शांत करते हुए ठंडे कलेजे से कहता है, साहब! मैंने तो आपको पहले से ही जान कर दी थी कि मेरे अस्तुरों (अस्त्रों) राजधानी है। राजधानी एक्सप्रेस छोटे स्टेशन पर रूकती नहीं है।
मुंबई से बिराजित प्रखर प्रवचनकर संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। बात सच्ची है जो ट्रेन कम स्टेशनों पर रूकती है वह ट्रेन अंतिम स्टेशन तक जल्दी पहुंचती है। जो ट्रेन छोटे छोटे स्टेशनों पर रूकती है उस ट्रेन को अंतिम स्टेशन तक पहुंचने में समय लगता है।
कहते है जिन्हें शांति, चित्त प्रसन्नता, पूर्ण मैत्री के अंतिम स्टेशन तक पहुंचता है, उन्हें अपने जीवन में इन सिद्धांतों को अपनाना पड़ेगा जैसे कि छोटी-छोटी बातों छोटा मुद्दे को  महत्व नहीं देना चाहिए। उसे अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए। हरेक बात मेरी इच्छा के मुताबिक हो, स्वयं की अनुकूलता के अनुरूप हो, मेरी सूचना के अनुसार हो, मेरी ही नजर में होना चाहिए, किसी भी प्रकार से गड़बड़ किए बिना होना इस प्रकार के सिद्धांत जो व्यक्ति अपने जीवन में अपनाता है वह व्यक्ति दुनिया में सबसे ज्यादा दु:खी होता है। हमारे जीवन में कैसा भी प्रसंग क्यों न आए हमारे चित्त की प्रसन्नता को टिकाये रखना है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए फरमाते है एक लालची को लॉटरी की टिकिट पर लाख रुपए का इनाम लगा। इस समाचार को जाकर उस व्यक्ति के सगे संबंधी एवं मित्र वर्ग से अभिनंदन देने आए। परंतु लालची का चेहरा उदास देखकर उन्होंने पूछा, भाई! आपको तो लॉटरी लगी उसकी खुशी होनी चाहिए परंतु आप उदास दिख रहे हो इसका कारण क्या है? लालची रोते हुए उनको कहने लगा दरअसल, बात यह है कि मैंने दो लॉटरी खरीदी थी। एक लॉटरी का इनाम लगा बल्कि दूसरी लॉटरी खरीदी थी। एक लॉटरी का इनाम लगा बल्कि दूसरी लॉटरी को ईनाम न लगने से मुझे एक रूपिये का नुकसान हुआ है। उसका मुझे दु:ख हुआ है।
पूज्यश्री फरमाते हैं कि कैसी विचित्र परिस्थिति आई है लाख रुपए मिले उसका आनंद नहीं किंतु एक रुपए का शोक कर रहा है। सभी के साथ प्रेमभरा संबंध रखकर हमें चित्त की प्रसन्नता टिकानी है परंतु हर मानवी की एक आदत सी पड़ गई कि वह अपने मन को अप्रसन्न, संताप, चिंता एवं ग्लानि से कलूपित कर देता है। हमें प्रदूषित हवा-पाणी की जितनी चिंता है उतनी प्रदूषित चित्त की चिंता हम नहीं करते है। 
हमें सिर्फ अपने ही चित्त की प्रसन्नता का ख्याल नहीं करना है बल्कि अन्य का भी चित्त प्रसन्न रहे उस पर भी हमें ध्यान देना है। कहते है संयम ग्रहण करने के बाद महावीर स्वामी भगवान स्वयं ने, अपना प्रथम चातुर्मास कुलपति के यहां किया था। कुलपति की अप्रसन्नता को देखकर भगवान महावीर स्वामी ने तुरंत ही कुलपति का आश्रम छोड़कर अन्य स्थान की ओर विहार किया। तथा उसी दिन यह प्रतिज्ञा भी ली कि दूसरों को स्वयं के कारण अप्रीति हो अप्रसन्नता हो ऐसे स्थान पर रहना नहीं।
स्व-पर की प्रसन्नता को टिकाने के लिए तथा एक दूसरे के संबंध की मधुरता को कायम रखने के लिए नीचे बताये गए आचार जीवन में अमल करने जैसा है (1) खुद का काम खुद ही करो (2) कोई व्यकित अपना कितना भी करीब क्यों न हो चाहे वह मित्र हो या भाई बार-बार सूचना करने से, उसे काम बताने से वह कंटाल जाएगा। (3) घर के मेम्बर अथवा दुकान के आदमी को छोटे-छोटे काम बताने से, आदेश छोडऩे से हमारे पर अप्रीति पैदा हो सकती है। प्रसन्नता को टिकाना है तो इन बातों पर ध्यान देना होगा। बस, चित्त की प्रसन्नता शांति जीवन में टिकाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।