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सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। तदानुसार, 30 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। एकादशी के दिन व्रत उपवास करने से अश्वमेघ यज्ञ के समतुल्य फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक पंडितों की मानें तो एकादशी की रात्रि जागरण करने से साधक पर भगवान की विशेष कृपा बरसती है। इस दिन चावल ग्रहण करना चाहिए। व्रती अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार, निर्जला या फलाहार व्रत कर सकते हैं। एकादशी व्रत की शुरुआत उत्पन्ना एकादशी दिन से होती है। आइए, उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा जानते हैं- 
उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा : पद्म पुराण में एकादशी के बारे में विस्तार से बताया गया है। किदवंती है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से एकादशी की कथा के बारे में जानने की इच्छा जताई। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने कहा-हे धर्मराज! सतयुग में मुर नामक राक्षस ने देवताओ को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिपत्य जमा लिया। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता और ऋषिगण अपनी व्यथा लेकर महादेव के पास पहुंचें। 
भगवान शिव ने कहा-इस समस्या का समाधान भगवान विष्णु जी के पास है। अत: हमें उनके पास जाना होगा। तत्पश्चात, सभी देवता भगवान श्रीहरि विष्णु जी के पास पहुंचकर उन्हें स्थिति से अवगत कराया। कालांतर में भगवान श्रीहरि विष्णु ने असुर मुर के सैकड़ों सेनापतियों का वध कर विश्राम हेतु बद्रिकाश्रम चले गए। सेनापतियों के वध का समाचार पाकर मुर क्रोधित होकर बद्रिकाश्रम पहुंच गया। उसी समय भगवान श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई। 
तभी कन्या और असुर मुर के मध्य भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में कन्या ने असुर मुर का वध कर दिया। जब भगवान श्रीहरि विष्णु निद्रावस्था से जागृत हुए, तो कन्या के कार्य से प्रसन्न होकर कन्या को एकादशी के नाम से संबोधित किया और एकादशी तिथि को प्रिय बताया। तब देवी-देवताओं ने कन्या की वंदना की। कालांतर से एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना की जाती है।