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मुंबई। सुखी जीवन जीने का कीमिया है हंसना एवं किसी भी बात को हंसने में निकालना। जीवन की नोर्मल घटनाओं में भी मानवी को सदा हंसने रहना चाहिए। कितने व्यक्ति का स्वभाव सदा उदासीन रहता है ऐसे व्यक्तियों को हमें हमारी व्यक्ति के मुताबिक हंसी खुशी को बख्शना है।
मुंबई से बिराजित प्रखर प्रवचनकर संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। क्रिकेट मैच में कोई भी बेट्समेन हरेक बॉल को फटकारने की कोशिश नहीं करता है, कितने बेट्समेन बॉल को रक्षणात्मक तरीके से भी खेलता है, तो कितने बेट्समेन बॉल को आक्रमक तरीके से भी फटकारता है तो कितने बॉल को बिना खेले विकेटकीपर के हाथ में जाने देता है। अगर कोई बेट्समेन यदि सभी बॉल को फटकारने की नीति से खेलता हो तो वह जल्दी ही आऊट होकर पेवेलियन के हाथ लग जाएगा उसमें कोई शंका नहीं। बस, पूज्यश्री भी जिंदगी के लिए यही बात कहते है। जीवन में कई प्रकार के प्रसंग हमारे अपने जीवन में आएगें। हमें हरेक प्रसंग में राम खाना है। संक्षेप में कहे तो जिंदगी एक खेल है सभी का जवाब मत दो।
महान तत्वचिंतक सोक्रेटिस एक बार अपने मित्रों के साथ दीवान खाने में किसी विषय पर चर्चा करने बैठे थे। विषय कुछ कठिन था तो समय कुछ ज्यादा ही हो गया। सोक्रेटिस की पत्नी कड़क स्वभाव की थी। वह अपने घर के काम करने में लगी थी। उन सभी की चर्चा सुननकर उसका तेज मिजाज ओर बढ़ गया। ये लोग फालतु अपना समय बिगाड़ रहे है ऐसा सोच उन सभी मित्रों पर उसे गुस्सा आया। ऐसे में चर्चा पूर्ण हुई। घर में आए मेहमान भूखे न जाए। अतिथि के सत्कार के लिए सोक्रेटिस ने धीरे से अपनी पत्नी को कहा खाना तैयार हो तो इन सभी को फीसर दो।
पूज्यश्री फरमाते है जैसे ही अपने पति के मुख से यह बात सुनी पत्नी का बोइलर फट गया। अब तक वह अपना गुस्सा दबाकर बैठी थी अब उससे रहा न गया। उसके मुंह से जैसे तैसे नहीं बोलने के खराब शब्द उसने बोल दिए। सोक्रेटिस ठंडे मिजाज के थे। वे अपनी पत्नी के सामने एक भी शब्द बोले बिना मौन रहे। घर का वातावरण बिगड़ गया। खाने की तो बात एक तरफ, पानी भी पीने के लिए किसी भी मित्र की हिम्मत नहं हुई। मित्र भागने की तैयारी में थे तभी सोक्रेटिस की ज्वालामुखी पत्नी हाथ में पतीली जैसा एक बर्तन लेकर बाहर आई बिना किसी हिचकिचाहट के उसने उस पतीली के पानी का अभिषेक सोक्रेटिस के मस्तक पर किया। दरअसल वह पानी रसोड़े के झूठे बर्तन का गंदा पानी था।
सोक्रेटिस के मित्र इस दृश्य को देखकर अवाक रह गए। घटना इतनी हर तक बन गई थी कि यदि कोई शांत व्यक्ति हो तो वह भी आग बबूला हो जाए। परंतु सोक्रेटिस पर उसकी पत्नी का कोई असर नहींपड़ा बल्कि सोक्रेटिस हंसते हुए अपनी पत्नी से कहते है आज तक मैंने सुना है गुजराती की कहावत गाज्या मेघ वरसे नहिं बादल यदि गजरता है तो वह कभी बरसता नहीं है लेकिन यहां तो बादल गरजने के साथ ही बरसना चालु हो गया कहते है घर का वातावरण अब तक जो गंभीरथा वह एक ही क्षण में ठंडा पड़ गया।
पूज्यश्री फरमाते है सोक्रेटिस ने जिस तरह से मुश्किल एवं क्रोध जनक परिस्थिति में सकारात्मक विचार से वातावरण को हल्का एवं ठंडा बनाया इसी तरह हमारे जीवन में कैसा भी प्रसंग हमारे सामने आए तो हमें पोझीटीव विचारधारा से सहन शक्ति जुटाकर प्रसंग को हल्का एवं शांत बनाना है।
सोक्रेटिस के जीवन में जो घटना घटी यदि वह घटना हमारे जीवन में घटती तो हम सहनशीलता ही खो बैठते। वातावरण क्या से क्या हो जाता उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है। परंतु ऐसी घटना के दौरान भी हमें हंसकर बात को उड़ाकर स्वस्थ रहना है। 
हरेक के घर में हरेक का स्वभाव एक सरीखा नहीं होता है। पत्नी झघडालु मिली हो। बात बात में दंगा फसाद करती हो ऐसी परिस्थिति में उसके प्रति प्रेमभाव कैसे प्रकट होता है? सासु का स्वभाव खराब हो। बात बात में रोक ठोक करती हो ऐसी परिस्थिति में उसके साथ रहना नामुमकिन है इसी तरह बहु का स्वभाव तीर जैसाहो। बात बात में तीर जैसा कड़वा वचन बोलती हो ऐसी परिस्थिति में बहु के साथ रहना कठिन है।पूज्यश्री इन सबके लिए एक ही उपाय बताते है वह है सकारात्मक विचार। क्रोध को क्रोध की आग से नहीं बुझाया जाता बल्कि उस आग को सहनशक्ति के पानी से शांत किया जाता है।
जितना स्तान करोंगे उतना ही उसका फल अच्छा मिलेगा। कोई भी आपको कुछ भी कहे उसे हंसने में निकालकर शीघ्र वातावरण को बदलने की कोशिश करें। बस सदा हंसो हंसावो सुखी जीवन जीकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।