हरजिंदर सिंह
वैज्ञानिकों ने इतनी तेजी इसके पहले शायद की किसी मौके पर दिखाई हो। इससे पहले कि कोरोना वायरस की नई किस्म की खबर पूरी दुनिया को ठीक से मिल पाती, जीव वैज्ञानिकों ने इसके जीनोम की पूरी सीक्वेंसिंग भी कर ली। सिर्फ इतना नहीं हुआ, इस ज्ञान को पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों से साझा भी कर लिया गया। अब वे अच्छी तरह से जानते हैं कि खतरा कैसा है और कितना बड़ा है। अब वे इसके मुकाबले के लिए वैक्सीन बनाने की तैयारियां भी कर सकते हैं। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें तुरंत ही नई वैक्सीन इस्तेमाल के लिए मिल जाएगी। वैक्सीन को व्यापक इस्तेमाल में लाने लायक बनाना एक लंबा और दु:साध्य काम है। वैक्सीन भले ही जल्दी बन जाए, लेकिन इसके आगे उसे तीन चरणों के परीक्षण से गुजरना पड़ता है। पहले इस काम में कई बरस, यहां तक कि दशक लग जाते थे, लेकिन कोविड-19 के मामले में वैज्ञानिकों ने तमाम जोखिम लेते हुए इस काम को कुछ ही सप्ताह में पूरा किया और सफल भी रहे। वैज्ञानिकों ने इस बार जो तेजी दिखाई, वह कम महत्वपूर्ण नहीं है।
इसे एक दूसरी तरह से भी समझ सकते हैं। कोरोना वायरस संक्रमण की तुलना हम आमतौर पर इसके पहले आई महामारी स्पैनिश फ्लू से करते हैं। 1918 में फैली यह महामारी हर मामले में कोविड से ज्यादा खतरनाक थी। दो साल के अंदर ही इसने करोड़ों लोगों की जान ले ली और उसके बाद यह हमेशा के लिए विदा हो गई। इस महामारी के खत्म होने के 13 साल बाद यह पता लगाया जा सका कि यह किस वायरस की वजह से फैली थी। जिसे आज हम वायरस कहते हैं, उस समय तक उसे खोजा भी नहीं जा सका था। इसलिए उस दौर में उस संक्रमण का जो इलाज हुआ, वह बहुत कुछ अंधेरे में तीर चलाने जैसा ही था। फिर भी, मास्क लगाने, हाथ धोने, सार्वजनिक स्थानों पर जमा होने पर पाबंदियां, क्वारंटीन और सामाजिक दूरी जैसे प्रोटोकॉल उस दौर के चिकित्सकों ने भी लागू कर दिए थे। हालांकि, यह सब किस तरह से मददगार है, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण उस समय तक मौजूद नहीं था।
इस लिहाज से देखें, तो पिछले सौ साल में विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। अब कम से कम हम यह ठीक से जानते हैं कि यह महामारी कैसे फैलती है, किससे फैलती है और किस तरह से हमें अपना शिकार बनाने के लिए खुद को बदलती है। अब हम यह भी जानते हैं कि भले ही इससे पूरी तरह बचा नहीं जा सकता, लेकिन इसे कैसे खुद से दूर रखने की कोशिश की जा सकती है। हमारे पास अभी भी इसका पक्का इलाज नहीं है, लेकिन इससे होने वाले नुकसान और उससे निपटने के तरीकों के बारे में हमने पिछले डेढ़ साल में एक समझ जरूर बना ली है।
इन नतीजों पर हम तब पहुंच रहे हैं, जब हम कोरोना वायरस संक्रमण को एक सदी पहले के स्पैनिश फ्लू संक्रमण की पृष्ठभूमि में रखकर देख रहे हैं। कहा जाता है कि जैसे इतिहास के दो अलग-अलग दौर की खूबियों और खामियों की एक हद से आगे तुलना नहीं हो सकती, वैसे ही दो अलग दौर की महामारियों की भी तुलना नहीं हो सकती। समय बदल जाता है और विज्ञान आगे बढ़ जाता है, जबकि हम अतीत को वर्तमान की पृष्ठभूमि में रखकर देखते रह जाते हैं।
मिशिगन विश्वविद्यालय में औषधि इतिहास के प्रोफेसर जे एलेक्जेंडर नवारो ने पिछले दिनों जब 1918 के अमेरिकी समाज के रवैये और आज के समाज के रवैये की तुलना की, तो उन्हें बहुत दिलचस्प समानताएं दिखाई दीं। स्पैनिश फ्लू की पहली लहर अभी पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुई थी कि अमेरिका में पाबंदियों को हटाने की मांग होने लगी थी। थियेटर और डांस बार के मालिक कारोबार फिर से शुरू करने की मांग करने लगे थे। उनका कहना था कि कारोबार का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। स्कूल खोलने की मांग होने लगी थी। यह कहा जा रहा था कि बच्चे कक्षाओं में ज्यादा सुरक्षित हैं। धर्माधिकारी यह मांग कर रहे थे कि चर्च खोलने की इजाजत दी जाए- 'जब दफ्तर, सैलून, फैक्टरियां और मिलें, सब खुले हैं, तो चर्च को क्यों बंद रखा जा रहा है?Ó लोगों ने सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना बंद कर दिया था। एक तर्क यह भी दिया जा रहा था कि पाबंदियों से सरकार लोगों के नागरिक अधिकारों का हनन कर रही है। धीरे-धीरे पाबंदियां ढीली पड़ती गईं और तभी स्पैनिश फ्लू की दूसरी लहर ने हमला बोला, जो पहली से ज्यादा घातक थी।
आप चाहें, तो इन तर्कों की झलक आज दिए जाने वाले तर्कों में भी देख सकते हैं। एलेक्जेंडर नवारो का कहना है कि समाज जब महामारी के दौरान संक्रमण के पहले वाले दौर के व्यवहार को अपनाने की ओर चल पड़ता है, तो खतरे बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं।
एक बहुत अच्छा उदाहरण नवंबर 1918 के फिलडेल्फिया का है। पहला विश्व युद्ध समाप्त हुआ था और फिलडेल्फिया में यह तय हुआ कि जंग से लौटे सैनिकों की आर्थिक मदद के लिए लिबर्टी लोन परेड आयोजित की जाए। बहुत से लोगों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दी थी, लेकिन प्रशासन परेड के आयोजन पर अड़ा रहा। परेड हुई, तो उसे देखने के लिए दो लाख लोग जुटे थे। उस दिन तो सब ठीक रहा, लेकिन एक सप्ताह बाद पता चला कि वहां गई भीड़ में 47 हजार लोग संक्रमित हो गए। स्पैनिश फ्लू की दूसरी लहर ने फिलडेल्फिया में दस्तक दे दी थी।
जिस समय ये पक्तियां लिखी जा रही हैं, ब्रिटेन से खबर आई है कि वहां विशेषज्ञों ने साफ कहा है कि ओमीक्रोन के खतरे को देखते हुए इस बार क्रिसमस की पार्टियों के आयोजन रद्द कर दिए जाएं, लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इसके लिए तैयार नहीं हैं। खतरा सिर्फ ब्रिटेन पर नहीं, उन सब पर है, जिन्होंने सावधानी बरतनी बंद कर दी है। यह चेतावनी हम सब के लिए भी है, क्योंकि ओमीक्रोन अब भारत पहुंच चुका है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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