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मुंबई। परम मंगलमय परमात्मा के शासन को पाकर जो आत्मा जागृत हो गई है। वह संसार के इस जाल में पड़ती नहीं है। जिन-जिन महापुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़ते हैं सब में परिवर्तन आया ही है। सुरत का जिमण काशी का मरण यह कहावत प्रख्यात है। सूरत का एक भाई मौज शौक में पला। रोज पान खाने की आदत थी। चौदस के दिन भी पान चाहिए। पान को सूखा करके खा लेता था। एक बार कोई गुरू भगवंत पधारे गुरु का उपदेश असर कर गया। उपाश्रय में रहने लगे। मित्र वर्ग कहने लगे, इसका स्क्रू ढ़ीला हो गया है, बार-बार उपाश्रय में जाता है। गुरु का योग मिला जीवन बदल गया। शौकीन होते हुए भी दीक्षा ले ली। शास्त्रकार भगवंत फरमाते है जिसे मोक्ष में जाना है, उसे साधु तो बनना ही पड़ेगा। महापुरूषों के चारित्र का वांचन बार-बार करने में आएगा तो अपने अंदर कुछ विशिष्ट शक्ति पैदा होगी। शास्त्रकार फरमाते है पाप छूटता है तो अच्छा ही है अगर पाप से छूटकारा न पा शको तो अंदर से जागृति तो होनी ही चाहिए।
मुंबई से बिराजित प्रखर प्रवचनकर संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। जीवन में जागृति लाने के लिए श्रावक के बारह वृत लेने चाहिए। देहस्य सारं व्रत धारणं च शरीर मिला है तो व्रत धारण करना ही चाहिए। साधु भगवंत के साथ एक बाल मुनि गोचरी के लिए गए। चलते समय उपयोग न होने के कारण साधु भगवंत के पैर के नीचे एक मेंढ़क आने से वह मेंढ़क कुचलकर मर गया। बाल मुनि का पूरा ध्यान था। दोनों साधु भगवंत उपाश्रय में आए। हर कोई साधु गोचरी वहोरकर आने के बाद जो भी भूल होती है उसका प्राचच्छित गुरू भगवंत के समक्ष करते है। प्रतिक्रमण करते समय अतिचार आया। बाल मुनि फिर से बड़े साथु भगवंत को याद कराते है प्राचाच्छित बाकी है। हरेक को खुद की पंचायती से ज्यादा दूसरों की पंचायती करने में आनंद आता है।
काजी क्युं दुबले सारे गाम की फिकर बालमुनि पूरा दिन यही ध्यान रखते थे बड़े साधु जी ने आलोचना ली के नहीं। बड़े साधु जी क्रोधित हुए। बालमुनि को मारने के लिए पीछे दौड़े। खंभा बीच में आया। खंभे से टकराकर गिर पड़े खून की धारा बहने लगी। वहीं कालधर्म हो गया। जीवन में कैसी भी परिस्थिति क्यों न आए क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध आ भी जाए तो उस पर काबू रखना चाहिए। परमात्मा की शरण में जाकर एक ही प्रार्थना करना मुझे इस कषाय क्रोध सेदूर रखो। गुस्से में मृत्यु हुई। काल करेक ज्योतिष्क देव हुए वहां से सांप की योनि दृष्टिविष सांप बना। क्रोध में भयाचक पाप का बंध न हो उसका ध्यान रखना चाहिए। एक करोड़ वर्ष तक तप, क्रोध पूर्वक किया, हो तो उस तप का फल कुछ नहीं मिलता है। संपत्ति पाई थोडे दिन सुखी हुए घर परिवार पाया थोड़े दिन सुखी हुए यदि जीवन में क्रोध ही नहीं आया तो आप भवोभव के लिए सुखी हुए।
दृष्टिविष सांप यहां जहां घुमता था वहां के सभी सांप को भी जातिस्मरण हो जाता था।एक बार कुंभ नाम के राजा के पुत्र को किसी सांप ने कांट लिया। पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर कुंभ राजा ने ऐलान किया कि जो भी सांप को पकड़कर लाएगा उसे पारितोषिक इनाम मिलेगा. गारुडी विद्या के द्वारा लोग सांप को पकड़कर राजा के पास लातेथे एवं राजा गुस्से से सभी सांप को मार डालते थे। न रहे बांस न बजे बंसरी गांव में जितने भी सांप दिखते सब की मृत्यु हो जाती थी। कभी भी किसी के साथ वैर भावना रखनी नहीं। वैर लेने की भावना वह भी नीच भावना है।
दृष्टिविष सांप को विचार आता है कोई मेरी दृष्टि से मृत्यु न पाए इस उद्देश्य से वह बील में छूप गया गारूडी प्रयोग से सांप की पूछड़ी जैसे ही बहार आती है। टुकडुा-टुकडुा कर देते है अहों क्षमा अहो क्षमा। समता भाव से परमात्मा का ध्यान धरते हुए मृत्यु पाता है। कषाय एवं विषय का रस अपने जीवन से दूर हो जाय तो किसी की ताकात नहीं हमें दुर्गति में ले जाने की।
कुंभ राजा को एक बार नागदेव स्वप्न में आता है एवं कहता है तुं किसी सांप को मारना नहीं करना तुझे ही नुकसान है। वहीं मुनि जो सांप बने थे मरकर कुंभ राजा के यहां पुत्र हुए। जन्म वह साधना के लिए है। जन्म वह उपासना-आराधना के लिए है दुर्लभ ऐसा मनुष्य भव को पाकर जीवन को सार्थक करो। कोई भी आराधना करो तो तन्मयता से करो। बस  कषाय को दूर करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।