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 पुनीराम गुरुजी
सतगुरू घासीदास के अमृत संदेश पुनीराम गुरूजी के वाणी में समस्त मानव समाज को नमन करते हुए सतनामी कौन है के विषय में प्रस्तुत किया जा रहा है कि सतनामी किसे कहते है। सतगुरू ने कहा था कि जो आदमी सच बोले और देखकर सुनकर समझकर कर्म करे और किसी भी व्यक्ति को छोटा बड़ा न माने बल्कि सबको अपना परिवार का सदस्य समझे और उसके साथ अपनी सच्चाई और ईमानदारी के साथ व्यवहार करे वही सतनामी है। अब आप लोग भी समझ गए होगे कि जो व्यक्ति किसी से कोई भेद भाव नहीं करता हो अपने इमानदारी से काम करता हो और सच बोलता हो वही गुरू की दृष्टि में सतनामी है। समाज में सतनामी का पहचान कुछ भी नही है जो भी असली पहचान है वह तो दिखता नही है जो दिखाई देता है वह नकली पहचान है। जिस प्रकार से संत लोग कहते है कि ईश्वर सबके भीतर है जो बाहर दिखाया जाता है उसे केवल उसके मानने वाले ही ईश्वर मानते है परन्तु सम्पूर्ण मानव समाज उसे ईश्वर नही मानता इसलिए कि साधू संतो ज्ञानी पुरूषों तपस्वीयों का मानना है कि ईश्वर तो त्यागी तपस्वी सच्चा और सरल इंसान को ही मिलता है। ज्ञानियों का बात बिल्कुल सत्य साबित होता है कि ईश्वर को कोई देखा नही है जो दिखाया जाता है वह मान्यता के कारण ईश्वर है ईश्वर गुप्त है यदि ईश्वर है तो वह किसी को दिख जाय तो फिर वह उसे अर्थात देखने वाला ईश्वर को बुलाकर सबके सामने प्रमाणित नही कर सकता है इसलिए आपको ईश्वर आपके भीतर मिलेगा कोई अपने भीतर के भगवान को बाहर निकालकर दिखा नही सकता है। आप सभी जानते है कि सच्चाई आपके भीतर है उसे तो केवल आप ही जान सकते हैं आपके माता पिता पत्नी पति पुत्र पुत्री कोई नहीं जा सकते है। इसलिए सत्य को दिखाया व बताया नहीं जा सकता है। बल्कि अपने विवेक के आधार पर समझाया जा सकता है।
अपनत्व का व्यवहार करना चाहिए : अब सत+नाम+अमी का व्याख्या करके समझा जा सकता है। स का अर्थ संसार में, समाज में समस्त जीवों में समानता पूर्वक व्यवहार आचरण, कर्म, दया, प्रेम करूणा का पालक सतनाम के प्रथम अक्षर का अर्थ समझा जा सकता है। त का अर्थ तन से शरीर से देह से है। तन तो केवल तन धारी समस्त जीव प्राणी से मान लिया जाना चाहिए। जिस प्रकार से मनुष्य का शरीर होता है ठीक उसी प्रकार से शरीर सभी जीवों का भी होता है भले ही आकार में अलग अलग हो सकते है चलने दौडऩे के स्थान पर रेंगने और सरकने और उडऩे वाले हो सकते है उन सबसे अपने शरीर को आधार में सम्मिलित करतें हुए मास हड्डी और रक्त की समानता को देखते हुए मान लेना चाहिए। और उनके साथ अपनत्व का व्यवहार करना चाहिए।
जो भेदभाव नहीं करेगा वही सतनामी है : नाम को मैने पहले बता चुका है फिर भी संकेत के रूप में बता रहा हूँ कि नात जो जन्म के पहले नहीं था आज इस धरती में है और उसका कुछ न कुछ नाम है वही नाम है। अब सतनाम को हम अच्छी तरह से समझ चुके है कि सतनाम क्या है अब बचा है अभी कौन है। अभी का सीधा अर्थ होता है सत को मानने वाले सत को जानने वाले सत को पहचानने वाले सतनामी है। जो सत जानेगा वही तो सत को मानेगा और अपने जैसे आचरण करेगा व्यवहार करेगा वही तो सतनामी है। गुरू घासीदास बाबा जी ने भी तो यही बात कहा था कि जो समस्त मानव को मानव जानकर अपने समान व्यवहार करेगा, आचरण करेगा किसी प्रकार से तन से मन से धन से भेदभाव नहीं करेगा वही सतनामी है। अभी का सही अर्थ होता है कि इस धरती में माता पिता से जन्म लेकर समस्त जीव प्राणी को समझकर सबसे ममता रखे अर्थात समान रूप से जाने। ई अर्थात जीव से है जीव में पीड़ा दर्द को अपने मन तन से महसूस करें।
जीवों के प्रति भी समान रूप : अभी का पूरा अर्थ हुआ कि समस्त संसार के जलचर, थलचर और नभचर प्राणियों जीवों के प्रति समान रूप से दया प्रेम समानता करूणा और सहयोग से सेवा भाव रखे वही अभी है। जो जड़ चेतन भी समान है। जड़ हमारा शरीर है तो चेतन हमारा वाणी और मन की किया विधि है इसलिए जड़ चेतन में समानता कहा गया है। अब सतनामी का पूरा अर्थ हुआ कि संसार में माता पिता से जन्म लेकर समस्त जीव प्राणी जो पूर्व में नहीं थे जन्म लेने के बाद नाम और चेतना प्राप्त हुआ है वे आज हमारे सामने है उन सभी से समान रूप से ममता रखते हुए दया प्रेम करूणा के सागर हो वही मूल में सतनामी है। अब प्रश्न आता है कि सतनामी कहां से आये तो सुनिए सतनामी शून्य से आये हैं पहले उनका कोई और कुछ भी नाम नहीं था जन्म लेने पर सतनाम हुए और कर्म करने पर सतनामी हुए।
सबके प्रति आदर भाव
प्रकृति के नियामानुसार सतनामी शून्य से आए हैं वे एक परम ज्योति स्वरूप है अर्थात आप सभी एक नूर से आये हैं और वह नूर ज्ययेति तुम्हारे भीतर है जिसे संत महात्मा उस नूर को जानने के लिए कहते हैं जो इंसान उस नूर तक पहुंच जाता है उसका दृष्टि में बराबर दिखते है और कहते भी है लेकिन लोग किसी के प्रवचन को सुनकर कहते हैं वे झूठे थे यदि सचमूच में आप अपने घर भीतर के ज्योति को देख पाओगे तो आपकी आँख की सारी बिमारी को दूर कर देगा सारे भेदभाव जाति और धर्म के झगड़े ईष्या द्वेष राग समाया हो जायेगें। प्रथम किरण जो माँ के गर्भ में समाया था उसी किरण को मैं नूर की ज्योति कह रहा हूँ आपके तपस्या से वह ज्योति मात्र एक किरण ही नहीं बल्कि सूर्य की किरण के समान सबको तपाने वाला और जलाने वाला प्रचण्ड ताप का किरण हो जाता है। आपकी त्याग तपस्या आपका आचरण व्यवहार से वह दृष्टि आपको मिल सकेगा। सतगुरू का संकेत है कि हमें अपने अंदर के विकार और भेदभाव को त्यागकर मैला को सत कर्म से धोकर त्याग से स्वार्थ को जलाकर परदे को जाति पाँति धर्म का हटाकर परम ज्योति रूपी किरण तक पहुॅचा जा सकता है। विश्व के समसा सृष्टि में सतनाम है लेकिन उसको मानकर जानकर समझकर आचरण और व्यवहार करने वाले सतनामी विरले है। जो सत के पालक हैं समझदार हैं सबके प्रति आदर भाव है, अपनत्व है वही सतनामी हैं। सतनामी कोई जाति नहीं बल्कि सृष्टि का ज्ञान और उसके पालक है जिस प्रकार से शरीर में श्वास है तभी चलना, उठना बैठना, बोलना, कर्म करना होता है। श्वास के बिना शरीर मूर्दा है लाश है। यदि सृष्टि से सत को निकाल दिया जाय तो सृष्टि का विनाश हो जायेगा। सृष्टि मूर्दा लाश हो जायेगा।
सरल स्वभाव प्रकृति का प्यारा होता है : आप सब ज्ञानी ध्यानी बुध्दिमान और समझकर है सत्य को स्वीकरना कठिन बात नहीं है लेकिन जो आडम्बर, भेदभाव, छुआछूत, मिथ्यावाद में से पड़े है उनके लिए सहज भी कठिन है। आप स्वयं निर्णय कर ले कि जो कुछ भी कहा जा रहा है वहाँ क्या कमिया है मैनें तो सतगुरू के संदेश को आप तक पहुॅचा रहा हूँ निर्णय आपका है। सतनामी हमेसा संतोषी होता है समझदार और सतज्ञाता होता है समानता का भाव पैदा करता है शुध्द सात्विक सरल स्वभाव प्रकृति का प्यारा होता है। खानपान से सादा और सात्विक विचार धारा का होता है। मेरे विचार में तो सतनामी का निवास स्थान सम्पूर्ण प्रकृति में है। हम अपने आप को कब सतनामी सिध्दकर सकते है यह तो हमारी परिस्थिति ही निर्मित कर सकती है। सतनामी कोई जाति नहीं बल्कि सृष्टि का मूल धारणा हैं।