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भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव का प्रत्येक माह पूजन करने का विधान है। मान्यता अनुसार प्रत्येक हिंदी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से काल भैरव का पूजन किया जाता है। पौष माह की कालाष्टमी 27 दिसंबर, दिन सोमवार को पड़ रही है। काल भैरव भगवान शिव का वाममार्गी स्वरूप माना गया है। इनकी तांत्रिक पूजा विशेष विधान है। लेकिन गृहस्थ लोग सात्विक विधि से भी काल भैरव का पूजन कर सकते हैं। आइए जानते हैं कालाष्टमी की तिथि, मुहूर्त और पूजन विधि.... 
कालाष्टमी की तिथि और मुहूर्त
कालाष्टमी या भैरवाष्टमी का पूजन पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाएगा। पंचांग गणना के अनुसार अष्टमी की तिथि 26 दिसंबर को रात्रि 08 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगी। जो कि 27 दिसंबर को शाम 07 बजकर 28 मिनट पर समाप्त हो रही है। उदया तिथि और प्रदोष काल 27 दिसंबर को पडऩे के कारण अष्टमी तिथि इसी दिन मान्य होगी। कालाष्टमी का पूजन भी 27 दिसंबर, दिन सोमवार को किया जाएगा। कालभैरव का पूजन प्रदोष काल में करना सबसे लाभदायक माना जाता है। 
कालाष्टमी की पूजन विधि : काल भैरव का पूजन करने से काल यानि मृत्यु का भय समाप्त होता है। सभी प्रकार यंत्र, तंत्र, मंत्र का निष्प्रभावी हो जाते है तथा भूत-प्रेत बाधा से भी मुक्ति मिलती है। कालाष्टमी के दिन इस दिन सुबह स्नानादि कर व्रत का संकल्प लें और दिन भर फलाहार व्रत करने के बाद प्रदोष काल में पूजन करें।पूजन के लिए मंदिर में या किसी साफ स्थान पर कालभैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके चारों तरफ गंगाजल छिड़क कर, उन्हें फूल अर्पित करें।
 धूप, दीप से पूजन कर नारियल, इमरती, पान, मदिरा का भोग लगाएं। इसके बाद कालभैरव के समक्ष चौमुखी दीपक जला कर भैरव चालीसा और भैरव मंत्रों का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती कर, काल भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करें।