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ललित गर्ग 
जब-जब चुनाव का माहौल बनता है एवं चुनाव की आहट होती है, हिंसा, द्वेष, नफरत एवं साम्प्रदायिकता की आग सुलगने लगती है, एकाएक शांत एवं सौहार्दपूर्ण माहौल में ऐसी चिंनगारियों का फूटना एवं स्थितियों का पनपना स्पष्टत: राजनीति के हिंसक एवं अराजक होने का संकेत देता है। पंजाब में माहौल का निरंतर संवेदनशील, हिंसक एवं अराजक होते जाना चिंताजनक है। पिछले दिनों से बेअदबी की घटनाओं को लेकर वैसे ही तनाव है और अब गुरुवार दोपहर लुधियाना कोर्ट परिसर में हुए विस्फोट ने एक अलग ही चिंता का संचार कर दिया है। विस्फोट में दो लोगों की मौत भी हुई है और करीब पांच घायल हुए हैं। ये घटनाएं निश्चित रूप से पंजाब में होने वाले चुनाव से पहले हिंसा, अशांति एवं द्वेष  पैदा करने का प्रयास है। इन घटनाओं का सिलसिला बताता है कि कुछ राष्ट्रविरोधी शक्तियां पंजाब के शांतिपूर्ण माहौल को अचानक भय, आतंक, तनाव एवं कलहपूर्ण कर देना चाहती है। पंजाब एक मजबूत रक्षा-कवच है, पाकिस्तान से होने वाले षडयंत्रों एवं आतंकवादी हमलों से सुरक्षा देने में। अपनी गौरवपूर्ण छवि को कायम रखते हुए पंजाब के लोगों को अपने राष्ट्रप्रेम, एवं देशभक्ति के संस्कारों को बल देते हुए ऐसी घटनाओं के सिलसिले को रोकने में अहम भूमिका निभानी चाहिए। पंजाब ने भले ही आतंकवाद के गहरे घाव अपने सीने पर झेले हैं, लेकिन शांति एवं अमन के दीप भी उसी ने जलाये हैं, राष्ट्र की एकता एवं साख को उसी ने बढ़ाया है।
निस्संदेह, पंजाब बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहा है, पंजाब की संवेदनशीलता को आहत करने का अर्थ है देश की संवेदनाओं को आहत करना। राज्य में अगले साल के प्रारंभ में होने वाले विधानसभा चुनाव में निहित स्वार्थी तत्वों एवं राष्ट्रविरोधी शक्तियों द्वारा राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बाधित करने, आतंकवाद पनपाने, हिंसा एवं अराजकता फैलाने के कुत्सित प्रयास हो सकते हैं, जिसके चलते राजनीतिक दलों को जिम्मेदाराना व्यवहार करने, आम जनता को जागरूक रहने तथा पुलिस-प्रशासन द्वारा चौकस रहने की आवश्यकता है। इन तमाम हालात को देखते हुए पंजाब सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि कानून-व्यवस्था बनाये रखने को लेकर सतर्क रहे और असामाजिक तत्वों से सख्ती से निपटे। ऐसे संवेदनशील समय में सत्तापक्ष के साथ ही विपक्षी दलों की भी जवाबदेही बनती है कि वे ज्वलनशील मुद्दों को हवा देने से बचें। राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखना प्राथमिकता होनी चाहिए। भीड़ द्वारा हिंसा की घटना पर राजनीतिक दलों का प्रतिक्रिया से परहेज हिंसा की अनदेखी करने के समान ही है। इसमें दो राय नहीं कि देश के विभिन्न राज्यों में भीड़ की हिंसा को रोकने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी लगातार सामने आती रही है। कभी कभी तो ऐसी घटनाएं राजनीतिक प्रेरित होने के संकेत भी मिलते रहे हैं। हमें राजनीति को हिंसा नहीं शांति का, तोडऩे नहीं जोडऩे का, नफरत नहीं प्रेम का माध्यम बनाना होगा।  
आज देश को जोडऩे वाली सोच, जोडऩे वाली राजनीति चाहिए। पर हमारे राजनेता, जोडऩे वाली बात तो करते हैं, पर राजनीति तोडऩे वाली ही कर रहे हैं। धार्मिक संतुलन की बात करने वाले नेता और जाति के आधार पर वोट बांटने का गणित लगाने वाले चुनावी-रणनीतिकार देश को जोड़ते नहीं, तोड़ते हैं। सच तो यह है कि देश नारों से या स्वार्थी मंत्रों से नहीं जुड़ता, देश के जोडऩे के लिए भारतीयता की पहचान को स्वीकारना होगा। समझना और कहना होगा कि मैं पहले भारतीय हूं, राष्ट्रीयता मेरी पहली प्राथमिकता है, मानवता मेरा आदर्श है।  लेकिन यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई ही है कि आज जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, हमारी भारतीयता और मनुष्यता, दोनों, सवालिया निशानों के घेरे में है। धर्म व्यक्ति को जोड़ता है, पर हमने धर्म को राजनीति का हथियार बनाकर तोडऩे का जरिया बना दिया है। जाति मनुष्य के कर्म की पहचान होनी चाहिए, पर हम जाति के नाम पर राजनीतिक पहचान को मज़बूत बनाने के नफा-नुकसान का गणित लगाने में लगे हैं। भाषा एक व्यक्ति को दूसरे से जोडऩे का माध्यम होती है, हम आज भाषा के नाम पर राजनीति स्वार्थ की रोटियां सेकते हुए एक-दूसरे से अलग करनेे का काम कर रहे हैं। बड़ी त्रासदी यह है कि यह सब अनज़ाने में नहीं हो रहा, हम जानबूझकर यह कर रहे हैं, अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिये कर रहे हैं। सोच-समझ कर, रणनीतियां बना कर राजनीति की शतरंज पर शह-मात का खेल खेला जा रहा है और इस प्रक्रिया में हम लगातार कमज़ोर हो रहे हैं, हमारी राष्ट्रीयता आहत हो रही है। विडम्बना यह भी है कि हम इसके परिणामों की भयावहता को समझना भी नहीं चाहते।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। समूची दुनिया की नजरे भारतीय लोकतंत्र पर टिकी रहती है, अत: यहां होने वाले चुनाव निष्पक्ष एवं शान्तिपूर्वक संचालित हो, यह सुनिश्चित करना सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों एवं आम मतदाताओं का बड़ा दायित्व है। राष्ट्र में आज ईमानदारी, सौहार्द एवं निष्पक्षता हर क्षेत्र में चाहिए, पर चूँकि अनेक गलत बातों की जड़ चुनाव है इसलिए वहां इसकी शुरूआत होना ज्यादा जरूरी है। पंजाब के इस चुनावी कुंभ में इस प्रकार की शांति, आदेशों की पालना तथा कानूनी कार्यवाही का भय दिखना चाहिए। इन परिस्थितियों में फिर एक बार देश में 'भारत जोड़ोÓ की बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कही है। 'मन की बातÓ के अपने मासिक-कार्यक्रम में उन्होंने देश का आह्वान किया है कि वह आज़ादी के अमृत-महोत्सव वाले वर्ष में एक-दूसरे से जुडऩे का संकल्प है। यह बात सुन कर अच्छा लगा, यह भारतीयता का अहसास जगाने का आह्वान है, मनुष्यता को सही अर्थों में समझने की प्रेरणा है, जनता के बीच मुफ्त की संस्कृति को पनपाने की बजाय राष्ट्रीयता को बल देने का उपक्रम है। जब राष्ट्र मजबूत होता है तो उसके नागरिक भी मजबूत होते हैं, फिर उन्हें किसी भी साधन या सुविधाओं को मुफ्त में लेने की जरूरत नहीं होती।
डर लगता है यह मुफ्त की संस्कृति को पनपाने वाले राजनेताओं से। प्रश्न है कि हमारी राजनीति में इस तरह की प्रवृत्तियों को पनपने क्यों दिया जा रहा है? यह स्वार्थ की राजनीति है और जनतांत्रिक व्यवस्था में इसके लिए कोई स्थान नहीं है, होना भी नहीं चाहिए। पंजाब में इस तरह की घटनाओं का होना हमारे लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। यह हिंसक प्रवृत्ति, स्वार्थ की राजनीति, यह मुफ्त की संस्कृति इसका अर्थ यह नहीं है कि यह पंजाब तक सीमित है। 
हमने देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूप में इस हिंसा एवं अराजकता को पनपते देखा है। कभी यह प्रवृत्ति गौहत्या के नाम पर पीट-पीट कर मार देने में दिखती है और कभी 'बच्चा चोरोंÓ का आतंक दिखा कर किसी को मार दिया जाता है। अब पंजाब में इसकी नयी शक्ल सामने आयी है, इससे सावधान एवं सर्तक रहने की जरूरत है। जनतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह की भाषा और प्रवृत्ति के लिए कोई स्थान नहीं है, कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह दुर्भाग्य की ही बात है कि हमारा नेतृत्व इस बात की गम्भीरता को समझने की आवश्यकता महसूस नहीं कर रहा। हमारी राजनीति का आधार गोली नहीं, वोट होना चाहिए। स्वार्थ नहीं, स्वावलम्बन होना चाहिए, नफरत-द्वेष नहीं, प्रेम एवं सौहार्द होना चाहिए।  इसलिए ऐसी हर कोशिश को नाकामयाब बनाना उस हर नागरिक का कर्तव्य है जो जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करता है, जो भारत को सशक्त-स्वावलम्बी भारत बनाना चाहता है। हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी प्रकार की हिंसा, अराजकता एवं नफरत को स्वीकार नहीं किया जा सकता।