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हर माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के एक दिन बाद अमावस्या पड़ती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है। इस प्रकार, पौष महीने की अमावस्या 13 जनवरी को है। सनातन धर्म में पौष अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा, जप, तप और दान करने से जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या के दिन पवित्र नदी या सरोवर में स्नान-ध्यान करने के बाद तिल तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अत: बड़ी संख्या में श्रधालु पवित्र नदी गंगा समेत कई अन्य नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। 
अमावस्या पूजा का शुभ मुहूर्त : हिंदी पंचांग के अनुसार, अमावस्या की तिथि 12 जनवरी को दोपहर में 12 बजकर 22 मिनट पर शुरु होकर 13 जनवरी को प्रात: काल 10 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी। अत: 13 जनवरी को सुबह में स्नान-ध्यान और पूजा कर लें। हालांकि, चौघडिय़ा मुहूर्त में भी पूजा पाठ कर सकते हैं। शास्त्रों में दोपहर 2 बजे तक अमावस्या पूजा का विधान है।
अमावस्या दिन के अनुसार निर्धारित होता है। अगर अमावस्या सोमवार को पड़ता है तो इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। अगर शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि अमावस्या कहते हैं। इस दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद पूजा, जप, तप, और दान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रवाहित जलधारा में तिलांजलि करना पुण्यकारी होता है।
अमावस्या पूजा विधि : इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके बाद पूजा, जप, तप और दान करें। वे लोग जिनके पूर्वजों का पिंड दान नहीं हुआ है, वे इस दिन अपने पितरों को तर्पण जरूर करें। 
पूजा-पाठ के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद भोजन ग्रहण करें।