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हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस प्रकार पौष माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का प्रदोष व्रत शुक्रवार 31 दिसंबर को है। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। सप्ताह के सातों दिनों को पडऩे वाले प्रदोष व्रत को नाम से पुकारा जाता है। साल का आखिरी प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ रहा है। अत: यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा। शास्त्रों और पुराणों में निहित है कि शुक्रवार का प्रदोष व्रत करने से पति की आयु लंबी होती है। साथ ही जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। अत: व्यक्ति विशेष को भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धा पूर्वक भक्ति करनी चाहिए। आइए, व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत महत्व जानते हैं-  
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त : इस दिन त्रयोदशी की तिथि प्रात: काल 10 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 1 जनवरी को सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। शुक्र प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त संध्याकाल में 5 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर रात्रि में 8 बजकर 19 मिनट तक है। व्रती संध्याकाल में भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की पूजा-उपासना कर सकते हैं। 
प्रदोष व्रत पूजा विधि : इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिव जी का स्मरण कर दिन की शुरुआत करें। इसके पश्चात नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें। इसके बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें। अब सबसे पहले भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की पूजा शिव चालीसा का पाठ, मंत्रों का जाप कर फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध,दही और पंचामृत से करें। अंत में आरती अर्चना कर भगवान शिव और माता पार्वती से अन्न, जल और धन की कामना करें।
 दिनभर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना करें। फिर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।