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मुंबई। किसी ब्रिज के नीचे ट्रक जा रही थी। गाड़ी के अंदर काफी माल भरा पड़ा था जिसके कारण ट्रक पुल के बीचों बीच फंस गई। आगे पीछे कहीं से निकलना मुश्किल हो गया था। पुल के आसपास खड़े कुछ लोगों ने कहा, सरकार का ही पुल है इस पुल को ही तोड़ डालो हमारा काम आसान हो जाएगा तो किसी को ने कहा चुपचाप ट्रक को तोड़ दो माल बाहर निकल जाएगा। पुल के पास एक छोटा लड़का खड़ा था। वह इन सबकी बातें ध्यानसे सुन रहा था, उसने लोगों से कहा, आप लोग मुझे सिर्फ दस मिनिट दीजिए मैं आप लोगों की तकलीफ दूर करूंगा। उस छोटे लड़के ने एक पीन उठाई सीधा ट्रक के टायर के पास जाकर चारों टायर की हवा निकाल दी। ट्रक आसानी से पुल के बाहर आया सब लोग आश्चर्य चकित होकर बच्चे को सराहना करने लगे। यहां पैसा अथवा बल किसी, काम का नहीं। बुद्धि की जरूरत होती है।
कोई भी व्यक्ति कितना भी पढ़ा लिखा क्यों न हो जिसने ज्ञान को पचाया है, वहीं व्यक्ति सही समय पर ज्ञान का उपयोग कर सकता है। कैसा भी काम क्यों न हो जिसके पास ज्ञान का खजाना है वहीं व्यक्ति काम को, पुरा कर सकता है बिना ज्ञान कोई भी कार्य होना संभव नहीं है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि प.पू. राजयश सूरीश्वरजी म.सा. श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है एक भाई मेरे पास आए। खुद की इम्पेशन अच्छी दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी बाते करने लगे। महाराज! मैं दस हजार खर्च कर सकता हूं। पीछे खड़ा हुआ दूसरा भाई ईशारा करके बताता है महाराज ये तो फेक मारती है। उस भाई को पता नहीं एक क्षण के बाद क्या होने वाला है। पाया हुआ ज्ञान कभी भी किसी भी क्षण वापस जा सकता है ज्ञान पांच प्रकार के बताए है मतिज्ञान-श्रुतज्ञान अवधिज्ञान-मन: पर्यव ज्ञान तथा केवलज्ञान। जो व्यक्ति पढ़ा लिखा नहीं है उसमें भी मतिज्ञान होता है। पढऩा वह श्रुतज्ञान है। पेपर ऊपर बेठना नहीं। नहीं। कागज में खाना-पैर लगाना रन सब क्रिया से श्रुतज्ञान की आशातना होती है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है कोई भी लिखा हुआ अक्षर की आशातना नहीं करनी चाहिए। जैन धर्म गलत है ऐसा लिखा हुआ है तो आप इसे किससे मिटाओंगे? पैर से मिटाओंगे तो आशातना का दोष लगेगा क्योंकि मिथ्याज्ञान भी श्रुतज्ञान रूप है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है हैदराबाद में अमेरिका से बेन म.सा. के पास उनके मामा आए। कहने लगे साहेब। एक जैनधर्म में ही कोईभी बच्चा अथवा पूज्य विगेरे ज्ञान की पूजा के रूप में नोट-पेन-पेन्सिल विगेरे लाकर इसकी पूजा करते है। ज्ञान का साधन-ज्ञानी एवं ज्ञान की किसी भी प्रकार से आशातना नहीं करनी चाहिए।
गुणमंजरी का पूर्वभव बताते हुए पूज्यश्री फरमाते है पूर्वभव में सुंदरी यानि गुणमंजरी का जीव को पांच पुत्र थे। पांचों पुत्रों को सुंदरी ने स्कूल भेजा। गुरू पढ़ाते थे परंतु वे पांचों पुत्र तोफान मस्ती करके रोज घर आकर मास्टर की फरियाद करने लगे। सुंदरी ने बच्चों को समझाने के बजाय मास्टर को ठपका दिया तथा पुत्रों की पुस्तकें भी जलादी इसी आशातना के कारण सुंदरी मरकर गुणमंजरी के रूप में ज्ञान एवं ज्ञानी की आशातना करने से इस भव में गंूगी एवं रोगी बनी। इसीलिए शास्त्रकार भगवंत फरमाते है किया हुआ कर्म भुगते बिना नाश नहीं होता है। इन्द्रिय एवं मन के सहाय  बिना जो प्रत्यक्ष ज्ञान होता है वह अवधि ज्ञान। हम पर परमात्मा की कृपा बरसे तो हमें अवधिज्ञान हो सकता है। जिसमें संयम के भाव जगे हो आत्मा की विशुद्धि हो उसी को मन: पर्यव ज्ञान होता है। मन: पर्यव ज्ञान जिसे होता है वे दूसरों के मन के विचार को जान सकते है। सतत ज्ञान का उपयोग तथा संपूर्ण लोक एवं अलोक का ज्ञान जिसे होता है वे केवलज्ञानी है।
सम्यग्दृष्टि जीव भाव से विनय करता है जबकि मिथ्या दृटि व्यवहार से विनय करता है। श्रेणिक राजा को मंत्र सिखना था खुद ऊपर बैठे तथा मंत्र सिखाने वाले को नीचे बिठाकर मंत्र सिखने लगे। काफी समय हुआ मंत्र चढ़ा नहीं। अभयकुमार ने राजा को कहा यह ज्ञान मिलाना है तो पहले गुरू का विनय करके आप नीचे बैठो। यदि आपको एक अक्षर का भी ज्ञान मिलाना हो तो ज्ञान का विनय करो। जीवन में कभी ज्ञान-ज्ञानी एवं ज्ञान की आशातना नहीं करनी चाहिए।