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गुरुवार का दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी को समर्पित होता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-उपासना करने से घर में सुख, समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही वर्ष 2022 की पहली एकादशी गुरुवार के दिन है। यह विशेष संयोग बन रहा है। जब एकादशी गुरुवार के दिन है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से दंपत्ति को संतान की प्राप्ति होती है। अत: विवाहित दंपत्ति को संतान प्राप्ति के लिए पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। सनातन शास्त्रों में निहित है कि एकादशी व्रत करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। आइए, पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा तिथि और विधि जानते हैं- 
हिंदी पंचांग के अनुसार, पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि 12 जनवरी को शाम में 04 बजकर 49 मिनट पर शुरु होकर 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। व्रती 13 जनवरी को सुबह की बेला में भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा कर व्रत उपासना प्रारंभ कर सकते हैं।
पुत्रदा एकादशी की कथा :  भद्रावतीपुरी नगर में सुकेतुमान नामक राजा था। उसकी कोई संतान न थी। राजा सुकेतुमान के मन में यह सवाल हमेशा रहता था कि मृत्यु पश्चात उन्हें मुखाग्नि कौन देगा और कौन उनके पितरों का तर्पण करेगा? एक दिन राजा सुकेतुमान आखेट के लिए वन में गए। चिंता में मग्न राजा सुकेतुमान कुछ देर बाद घने जंगल में पहुंच गए। घने जंगल में उन्हें बड़ी तेज प्यास लगी। जब राजा जल की तलाश में एक सरोवर के पास पहुंचे, तो सरोवर के पास ऋषियों के कई आश्रम थे। उन आश्रमों के समीप सभी ऋषि पूजा-पाठ कर रहे थे। तब राजा ने ऋषि से पूजा करने का औचित्य पूछा, तो एक ऋषि ने कहा-आज पुत्रदा एकादशी है। अत: हम सभी भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा कर रहे हैं। इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। 
उस समय राजा ने पानी पीकर सर्वप्रथम प्यास बुझाई। इसके बाद व्रत करने का संकल्प लिया। कालांतर में राजा सुकेतुमान और उनकी अर्धांग्नी ने पुत्रदा एकादशी व्रत किया। एक वर्ष पश्चात राजा के घर नन्हें राजकुमार की किलकारी गुंजी।

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पूजा विधि

एकादशी को ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम अपने आराध्य देव को स्मरण और प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। फिर आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा, फल, फूल, दूध, दही, पंचामृत, कुमकुम, तांदुल, धूप-दीप आदि से करें। दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार पानी ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती-प्रार्थना के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।