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मुंबई। प्रेम एक ऐसा तत्व है जो संसार में स्वर्ग का द्वार खोलता है। पति-पत्नी में प्रेम हो तो स्वर्ग धरती पर ही है भाई-भाई में प्रेम हो तो रामायण का रस यहीं जमीन पर ही है। प्रेम से ही प्रार्थना का जन्म होता है प्रार्थना से जीवन में शांति होती है। शांति से आनंद की निष्पत्ति होती है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प।पू।राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है परिवार में समाज में देश में यहां तक कि पूरे विश्व में प्रेम होना जरूरी है। विश्व में शांति का आधार प्रेम है। प्रेम परिवार को जोड़ता है। समाज में एकता का बीज बोता है। दो राष्ट्रों के बीच में सेतु का काम करता है। जो समाज को जोडऩे का मकान करता है वह संत है तथा जो इन्सानों को आपस में तोडऩे का काम कराते है वह शैतान है। शैतान विध्वंस करता है जबकि संत सर्जन करता है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है एक माता पिता की अगर तीन संताने है तो तीनों की संतान स्वतंत्रत रहना पसंद करती है। जिन्होंने जन्म दिया पाला पोंसा बड़ा किया लोग उनके प्रति अपने दायित्वों से मुक्त होते जा रहे है। वे संताने पुण्यशाली है जिसे अपनी माता-पिता की सेवा एवं जिम्मेदारी का लाभ मिल रहा है। किसी भी व्यक्ति के लिए श्रवण कुमार बनना कठिन है। माता पिता की सेवा भी एक तपस्या है, व्रत है, त्याग है एवं अनुष्ठान है।
प्रेम को अगर जीवित रखना है तो पहले अपने स्वजनों से, परिजनों से प्रेम करो। सास बहु से बहु सास से प्रेम करे। सास बहु में बेटी का तथा बहु-सास में मां का स्वरूप निहारे। एक बार बेटी ससुराल जाने के बाद मां बाप की संभाल लेने के लिए आने से रही। क्योंकि बेटी अब ससुराल में किसी की बहु बन चुकी है इसलिए वह अब अपने मन के मुताबिक कुछ भी नहीं कर सकती है। कई स्त्रीयां अपने सुहाग की रक्षा के लिए कड़वा चौथ का व्रत रखती है वैसे अपने जैनों में स्त्रीयां रोहिणी तप का व्रत करती है।
एक महिला हमारे उपाश्रय के बाहर के नल से पानी लेने आई। दो बाल्टी पानी लिया और हमारे उपाश्रय के कुछ दूरी पर एक बूढ़ी मांजी के कपड़े बदलकर गंदे कपड़े धोने लगी। कुछ दिनों से मांजी की तबीयत ठीक नहीं थी। उन्हें दस्ता लगने के कारण बार-बार कपड़ा बिगाड़ती थी। उस बहेन को मांजी की तबीयत से सेवा करते हुए देखकर हमारे पास बाहर गांव से कोई दंपती आए हुए थे उन्होंने बहन को पूछा बहन, क्या ये तुम्हारी मां है? बहन ने जवाब दिया नहीं, ये तो मां से भी बढ़कर है तो फिर कौन है? यह तो एक देवी है जिसने मेरे सुहाग को पाल पोसकर बढ़ा किया। बाहर से आए दंपति ने उस बहेन को साधुवाद दिया। हमारा प्रश्न है क्या आप भी अपनी सास के लिए अपने ससुर के लिए ऐसा ही कोई सकारात्मक दृष्टिकोण बना सकती है?
भाई-भाई के बीच प्रेम होना जरूरी है एक घमर में दो-चार-पांच भाई हो तो उन्हें एक दूसरे के साथ मिलजुलकर रहना चाहिए।
जोधपुर के एक भाई मिशन महेता एक सज्जन पुरूष है उन्होंने पुराने घर का रिनोवेशन कराके नया बंगला बनवाया। गृह प्रवेश का कार्यक्रम रखा। जिसमें उन्होंने अपने सभी सगे संबंधियों को आमंत्रित किया। किशन का छोटा भाई सुरेश भी मुंबई से गृह प्रवेश के लिए आया। बंगला देखकर सुरेश खुश हो गया। उसने बड़े भाई से कहा, मकान तो जोरदार बढ़ीया बनाया है मैं तो अपने घर से ऊब गया हूं पुरानी इमारत पुराना फर्निचर विगेरे देखकर बोर हो गया हूं। बड़े भाई ने जैसे ही छोटे भाई के सकारात्मक विचार सुने सीधे गृह द्वार के पास गए ताले में से चाबी का झुमका निकालकर सीधे छोटे भाई के हाथ में रखा। सुरेश! यदि तुझे यह बंगला पसंद है तो तुं इसमें आकर रह। सुरेश ने तुरंत किशन भाई से कहा, भैया। मैं तो मजाक कर रहा था किसन ने कहा, भाई! इस बंगले में तुं रहे या मैं रहुं, क्या फर्क पड़ता है आज ये यह तेरा हुआ। इसे कहते है भाई भाई का प्रेम। सुरेश आज भी इसी बंगले में रहते है। भाई-भाई के लिए सेक्रिफाईस करे, सेल्फिस न बने।