Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

मुंबई। परम मंगलकारी परमात्मा का शासन एवं मनुष्य भव को मानव ने अनेक बार मिलाया है। शास्त्र में बताया है मानव ने अनेक जन्मों में मेरू पर्वत तुल्य रजोहरण को ग्रहण किए होंगे। कितने ही प्रकार के व्रत-पच्चक्खाण धारण किए होंगे, जीवन में अनेक परिसर आए उसे भी सहन किए होंगे फिर भी उन्हें मोक्ष नहीं हुआ इसका क्या कारण है?
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि मोक्ष नहीं हुआ इसका सीधा जवाब यह है कि मानव ने अपने हरेक जन्म में तात्विक धर्म की प्राप्ति नहीं की, इसीलिए उसे बार बार संसार में भटकना पड़ रहा है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है आपके मन में कभी विचार आया कि मेरा स्वभाव बदलने जैसा है? ऐसा देखा जाय तो दुनिया के हरेक व्यक्ति की यही सोच है कि खुद का स्वभाव अच्छा है अन्य व्यक्ति का स्वभाव अच्छा नहीं है। आपको यदि पूर्व दिशा में जाना हो तो पूर्व दिश की ओर ही चलना होगा, पश्चिम दिशा में चलने से पूर्व का रास्ता पश्चिम में नहीं आएगा इसी तरह भूल से यदि गाड़ी पश्चिम की ओर चली गई हो तो उसे घुमाकर फिर से पूर्व की ओर लाया जा सकता है उसी स्थान पर यदि गांव पश्चिम की ओर होतो उसे पूर्व की ओर नहीं लाया जा सकता है कि सामने वाले व्यक्ति का स्वभाव यदि खराब हो तो उसे बदलने के बजाय खुद के स्वभाव को बदलना होगा स्वयं के दोषों की तरफ दृष्टि करनी होंगी।
एक सेठ ने बड़े-बड़े मेहमानों को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रण दिया। अलग-अलग स्थानों से मेहमान पधारे है सभी अपने अपने स्थान पर बैठे है। सेठ ने रसोइए से कहा, खीर ले आओ एवं सभी को पीरसो। रसोईया चूले पर से खीर का टोप लेने गया परंतु वह खीर का टोप रसोईए के हाथ से छटक गया। सेठ दौड़ता हुआ गया एवं रसोईए का हाथ पकड़कर पूछता है भैया। 
 तुम जला तो नहीं। सभी को आश्चर्य हुआ कि सेठ ने दो थप्पड़ लगाने के बजाय कितनी शांति एवं नम्रता से रसोईए से बात करता है। सेठ मेहमानों के बीच में आकर माफी मांगकर कहता है भाईयों! खीर तो नहीं है लेकिन आप लोग अपने स्थान पर बैठ जाईए आपको दूसरी चीज पीरस देता हूं। वहां पर आए हुए मेहमानों ने सेठ की तारीफ करते हुए कहा, सेठजी!  खीर तो हमने बहुत बार खाई है लेकिन इस तरह की सज्जनता एवं स्वभाव में नम्रता तो हमने कहीं पर भी नहीं देखी।
पूज्यश्री फरमाते हैं जो व्यक्ति अपने स्वयं की बड़ाई करता है कि मैं सत्यवादी हूं, मैं शांत हूं, मेरे जैसा स्वभाव इस दुनिया में ओर किसी का नहीं है, ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ता है। मानवी को अपने स्वभाव का अभियान नहीं करना चाहिए इसी के साथ उसे अन्य में भी दोषों को न देखकर सिर्फ उनके गुणों की ओर ही उसकी दृष्टि होनी चाहिए। मानवी जब तक अपने स्वभाव को नहीं धारता है तब तक उसका मोक्ष नहीं होगा। आपको यदि संसार में परिभ्रमण करने से अटकना है तो अपने स्वभाव को सुधारो अन्य व्यक्ति में रह हुए गुणों का कीर्तन करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।