Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

ललित गर्ग, वरिष्ठ स्तंभकार
कोरोना महामारी के कारण बच्चों के शिक्षा पर भी गहरा असर पड़ा है। लंबे समय तक स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने के स्तर में भारी गिरावट देखने को मिली है। हालांकि, अब देश के शिक्षण संस्थानों ने सामान्य हालात की ओर कदम बढ़ा दिये हैं। सोमवार को देश के बहुत से प्रदेशों में स्कूल-कॉलेज खुल गए, उनके परिसरों में पुरानी रौनक लौट आई। लगभग दो वर्षों बाद कंधों पर बस्ते लादे स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चों को देखना संभव हुआ है, जो सुखद अहसास का सबब बन रहा है। देश के ज्यादातर प्रदेशों में कक्षा नौ से ऊपर की सभी कक्षाओं की पढ़ाई सोमवार से शुरू हो गई है, जबकि एकाध राज्य में इसका उल्टा तरीका अपनाया गया है। वहां छोटे बच्चों के स्कूल पहले खोले गए हैं। यह अच्छी बात है कि देश के तकरीबन सभी राज्य एक साथ महामारी के दौर में ठहरी हुई शिक्षा-व्यवस्था को सामान्य बनाने में जुट गए हैं। इस समय जब नए संक्रमितों की दैनिक संख्या और संक्रमण की दर, दोनों नीचे आ रहे हैं, तब इस तरह का फैसला स्वाभाविक ही था, शिक्षा पर पसरे सन्नाटे को दूर करने के लिये यह नितांत अपेक्षित भी हो गया था।
कोरोना महामारी से शिक्षा सर्वाधिक प्रभावित एवं निस्तेज हुई है। स्कूलों के बंद होने से बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए क्योंकि महामारी के दौरान सभी बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी। भारत में 6-13 वर्ष के बीच के 42 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल बंद होने के दौरान किसी भी प्रकार की दूरस्थ शिक्षा का उपयोग नहीं करने की जानकारी संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपातकाल कोष (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट में सामने आयी है। रिपोर्ट कहती है कि इसका मतलब है कि उन्होंने पढऩे के लिए किताबें, वर्कशीट, फोन या वीडियो कॉल, व्हाट्सऐप, यूट्यूब, वीडियो कक्षाएं आदि का इस्तेमाल नहीं किया है। बहरहाल, सर्वेक्षण में पाया गया है कि स्कूलों के बंद होने के बाद अधिकतर छात्रों का अपने अध्यापकों के साथ बहुत कम संपर्क रहा। रिपोर्ट में कहा गया है, 5-13 वर्ष की आयु के कम से कम 42 प्रतिशत छात्र और 14-18 वर्ष की आयु के 29 प्रतिशत छात्र अपने शिक्षकों के संपर्क में नहीं रहे। कोरोना काल के दौरान खाली रहने से बच्चों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के कम से कम 80 प्रतिशत छात्रों ने कोविड-19 महामारी के दौरान सीखने के स्तर में कमी आयी है। बार-बार स्कूल बंद होने से बच्चों के लिए सीखने के अवसरों में चिंताजनक असमानताएं पैदा हुई हैं।
लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास का ठीक से न चल पाना, इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाओं का न होना और पढ़ाई के प्रति अरूचि ने बच्चों को शिक्षा के लिहाज से पीछे धकेल दिया है। हाल यह है कि अब उन्हें भाषा और गणित में सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन की वजह से बच्चों की शिक्षा से जुड़े नुकसान का आंकलन करने के लिए अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा की गयी एक फील्ड स्टडी में पाया गया कि कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था वो उसे भूलने लगे हैं। इसकी वजह से वर्तमान सत्र की कक्षाओं में उन्हें सीखने में दिक्कत आ रही है। स्कूल खुलने के साथ एक अहम बात जो इनमें देखने को मिल रही है कि किताबों को पढ़कर अर्थ समझने में भी बच्चों को दिक्कत आ रही है। पढ़ाई में गैप आने की वजह से उनमें अभी वह तेजी देखने को नहीं मिल रही। इसलिए बचे हुए सत्र में छात्र और शिक्षक दोनों को कम समय में दोगुनी मेहनत करनी होगी।
महामारी के खतरों को देखते हुए स्कूलों को खोला जाए या नहीं, इसे लेकर पिछले दो साल में पूरी दुनिया में खासी जद्दोजहद होती रही है। कोरोना वायरस से हरेक व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा के प्रयास में बच्चों की शिक्षा का हरण कर लिया गया। बच्चों के हितों के बलिदान की भरपाई के लिए, सरकारों को अंतत: इस चुनौती के लिए कमर कसना जरूरी हो गया और सभी बच्चों के लिए तत्काल स्कूलें खोलना जरूरी हो गया। अमेरिका आदि अनेक देशों में तो महामारी की पहली लहर के बाद ही स्कूल खोलने की कोशिशें शुरू हो गई थीं। लेकिन तब परिणाम अच्छे नहीं रहे थे। तभी यह खतरा भी समझ में आया था कि कोरोना वायरस भले बच्चों को शिकार नहीं बनाता, लेकिन कुछ बच्चे अगर इस वायरस को लेकर घर पहुंचते हैं, तो वयस्कों और बुजुर्गों को इससे खतरा हो सकता है। इस दो साल में पूरी दुनिया ने स्कूलों के गेट बंद कर ऑनलाइन शिक्षा की संभावनाएं और सीमाएं भी समझ ली हैं। यह भी समझ में आ गया है कि इस माध्यम से बच्चों को शिक्षित तो किया जा सकता है, लेकिन उनका पूरा मानसिक विकास नहीं हो सकता।
महामारी के दौर भारत में तो स्कूलों में सभी छात्रों को समान रूप से दूरस्थ शिक्षा देने की पूरी तरह तैयारी भी नहीं थी। इसका कारण सरकारों की अपनी शिक्षा प्रणाली में भेदभाव और असमानताओं को दूर करने, या घरों में सस्ती, सुचारू बिजली जैसी बुनियादी सरकारी सेवाएं सुनिश्चित करने या सस्ती इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने में उनकी नाकामयाबी है। कम आय वाले परिवारों के बच्चों के ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित होने के अधिक आसार थे  क्योंकि वे पर्याप्त डिवाइस या इंटरनेट नहीं खरीद सकते थे। ऐतिहासिक रूप से कम संसाधनों वाले स्कूलों ने, जिनके छात्र पहले से ही शिक्षा संबंधी बड़ी बाधाओं का सामना कर रहे थे, ने डिजिटल सीमाबद्धताओं के समक्ष अपने छात्रों को पढ़ाने में विशेष कठिनाइयों का सामना किया। भारत की शिक्षा प्रणाली अक्सर छात्रों और शिक्षकों के लिए डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान करने में विफल रही है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि छात्र और शिक्षक इन तकनीकों का सुरक्षित और आत्मविश्वास के साथ उपयोग कर सकें। एक तरह से ऑनलाइन शिक्षा एक अभिशाप बन गयी। ऑनलाइन शिक्षा संगी-साथियों का विकल्प नहीं दे सकती। स्कूलों में जब बच्चे एक-दूसरे से मिलते हैं, तो वे सामाजिक संबंधों का ककहरा भी सीखते हैं। इस समय जब बड़ी संख्या में लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका है और देश की सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चलाई जाने लगी हैं; बाजार खुल गए हैं और यहां तक कि चुनाव भी हो रहे हैं, तब यह अच्छी तरह समझ में आ चुका है कि पूर्ण बंदी से नुकसान भले हो जाए, कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं मिलता। 
ऐसे में, सिर्फ शिक्षण संस्थानों को बंद रखने का कोई अर्थ नहीं रह गया है। यहां तक कि जो छात्र अपनी कक्षाओं में लौट आए हैं या लौट आएंगे, साक्ष्य बताते हैं कि आने वाले कई वर्षों तक वे महामारी के दौरान पढ़ाई में हुए नुकसान के प्रभावों को महसूस करते रहेंगे। इसलिये सरकार को नई योजनाओं को लागू करते हुए इस नुकसान की भरपाई की कोशिश करनी चाहिए। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा भी है कि शिक्षा को तमाम सरकारों की पुनर्निर्माण योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। सरकार को बच्चों की शिक्षा पर महामारी के प्रभाव और पहले से मौजूद समस्याओं, दोनों को देखते हुए व्यापक कार्य-योजना बनानी चाहिए। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी के कारण पड़े भारी वित्तीय दबाव के आलोक में, सरकारों को चाहिए कि सार्वजनिक शिक्षा के वित्त पोषण की हिफाज़त करें और इसे प्राथमिकता दें। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकारा है कि लॉकडाउन के चलते स्कूली शिक्षा और छात्रों का बड़ा नुकसान हुआ है। इस नुकसान से उबरने के लिए शिक्षा मंत्रालय स्कूल व्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव लाने जा रहा है। स्कूल व्यवस्था में बदलाव की प्रक्रिया के अंतर्गत एनसीईआरटी देशभर में स्कूल शिक्षक को हुए नुकसान का आकलन करेगा एवं साथ ही लाखों छात्र की मदद करने के लिए एक रोडमैप तैयार करेगा।
लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास ने बच्चों को शिक्षा के लिहाज से पीछे धकेल दिया है। हाल यह है कि उन्हें भाषा और गणति में सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था वो उसे भूलने लगे हैं। इसकी वजह से वर्तमान सत्र की कक्षाओं में उन्हें सीखने में दिक्कित आ रही है। स्कूल खुलने के साथ एक अहम बात जो इनमें देखने को मिल रही है कि किताबों को पढ़कर अर्थ समझने में बच्चों को दिक्कत आ रही है। पढ़ाई में गैप आने की वजह से उनमें अभी वह तेजी देखने को नहीं मिल रही। इसलिए बचे हुए सत्र में छात्र और शिक्षक दोनों को कम समय में दोगुनी मेहनत करनी होगी। प्रेषक: