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डा. जयंतीलाल भंडारी
भारत द्वारा पिछले छह-सात वर्षो में कारोबारी सुगमता बढ़ाने के लिए उठाए जा रहे कदमों के सार्थक परिणाम दिखने लगे हैं। हाल में प्रकाशित वैश्विक उद्यमिता निगरानी रिपोर्ट के अनुसार विश्व की उच्च, मध्यम और निम्न-आय वाली 47 अर्थव्यवस्थाओं में नया कारोबार शुरू करने में आसानी के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। यह रिपोर्ट उद्यमशीलता गतिविधि, उद्यम के प्रति दृष्टिकोण और स्थानीय उद्यमशीलता ईकोसिस्टम से संबंधित मापदंडों पर आधारित है। 
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की डिजिटल एवं टिकाऊ व्यापार सुविधा वैश्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 में भी भारत में बढ़ती कारोबार सुगमता को रेखांकित किया गया है। इसमें दुनिया की 143 अर्थव्यवस्थाओं की व्यापार पारदर्शिता, औपचारिकताएं, संस्थागत प्रविधान एवं सहयोग, कागज-रहित व्यापार जैसे मुख्य पैमानों पर पड़ताल की गई। इसमें कहा गया है कि कोरोना की चुनौतियों के बीच भारत ने डिजिटल एवं टिकाऊ व्यापार सुविधा में अपनी स्थिति को काफी मजबूत किया है। इस सर्वेक्षण में भारत का स्कोर फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, नार्वे और फिनलैंड आदि कई देशों से ऊंचा रहा। भारत के लिए कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान सीमा शुल्क ढांचे में परिवर्तन के साथ-साथ फेसलेस, पेपरलेस और कांटेक्टलैस व्यवस्था के लिए उठाए गए उल्लेखनीय कदम निर्णायक साबित हुए। विश्व बैंक जैसी संस्था का भी मानना है कि भारत ने चार क्षेत्रों में बड़े सुधार किए हैं। इनमें पहला है कारोबार आरंभ करने में सहूलियत, दूसरा दिवालियापन का समाधान, तीसरा सीमा पार व्यापार को बढ़ाना और चौथा कंस्ट्रक्शन परमिट्स में तेजी लाना। आर्थिक मोर्चे पर हुए ऐतिहासिक सुधार उत्तरोत्तर बढ़ती कारोबारी सुगमता की बड़ी वजह रहे हैं। इस दौरान देश में जीएसटी लागू हुआ। कारपोरेट कर में बड़ी कमी हुई। आयकर सुधार लागू हुए। आधार बायोमीटिक परियोजना के अलावा रेलवे, बंदरगाहों तथा हवाई अड्डों जैसी ढांचागत परियोजनाओं में तेजी आई। निवेश और विनिवेश के नियमों में परिवर्तन भी किए। करीब 1500 से ज्यादा पुराने और बेकार कानूनों को खत्म कर नए सरल कानून लागू हुए। साथ ही बढ़ती हुई डिजिटल अर्थव्यवस्था ने भी कारोबार को सुगम बनाया है। स्मार्टफोन, मोबाइल डाटा और ब्राडबैंड सस्ता होने से देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व प्रसिद्ध रेडसीर कंसल्टिंग की रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में भारतीय डिजिटल भुगतान बाजार का आकार 2024-25 तक तीन गुने से भी अधिक बढ़ सकता है। डिजिटल सुगमता के कारण भारत फिनटेक क्रांति का नया गढ़ बन गया है।  पिछले पांच वर्षो में भारत में करीब 2,500 फिनटेक कंपनियां उभरी हैं। ई-कामर्स में तेजी के आधार पर अनुमान है कि 2024 तक यह कारोबार 100 अरब डालर का दायरा पार कर सकता है। वर्क फ्राम होम और आउटसोर्सिग को बढ़ावा मिलने से भारत की डिजिटल कारोबार सुगमता बढ़ी है। वैश्विक महामारी के दौर में लाकडाउन जैसी स्थितियों के कारण ई-कामर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, आनलाइन एजुकेशन तथा विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के डिजिटल होने से दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में निवेश के लिए आगे आई हैं। ये कंपनियां कारोबारी सुगमता और नई प्रौद्योगिकी में संभावनाओं को देखते हुए भारतीय आइटी प्रतिभाओं के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए देश में ही अपने ग्लोबल इन हाउस सेंटर तेजी से बढ़ा रही हैं। भारतीय नवाचार एवं स्टार्टअप संस्कृति भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। रेडसीर के अनुसार भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2020 की तुलना में 2021 में 50 प्रतिशत बढ़ी, जो 2030 तक 1 लाख करोड़ डालर के स्तर तक पहुंच सकती है। हालिया बजट में भी इसे प्रोत्साहन देने के लिए कई उपाय किए गए हैं। खासतौर से डिजिटल मुद्रा की पहल डिजिटल अर्थव्यवस्था और फिनटेक क्षेत्र को और तेजी से आगे बढ़ाएगी। यह कोई छोटी बात नहीं कि कोरोना की चुनौतियों के बावजूद अर्थव्यवस्था और कारोबारी सुगमता बढऩे से रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। 2021 में एक करोड़ 20 लाख नए लोग कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ के सब्सक्राइबर बने। ये सभी औपचारिक रोजगार से जुड़े हैं। इनमें से भी 60-65 लाख कर्मचारी 18 से 25 साल वाले आयुवर्ग के हैं। यानी पहली बार श्रम बाजार में दाखिल हुए हैं। रोजगार बढऩे को लेकर ईपीएफओ का पैमाना सबसे विश्वसनीय माना जाता है। नैसकाम सहित अन्य संस्थाओं के आकलन यही बताते हैं कि कोरोना पाबंदी हटने के बाद रोजगार के अवसर बढ़े हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था में कई ऐसे नए रोजगार संभव दिख रहे हैं, जिनके बारे में पहले कल्पना भी नहीं की जाती थी। मैकेंजी का अनुमान है देसी डिजिटल अर्थव्यवस्था में वर्ष 2025 तक करीब छह से साढ़े छह करोड़ रोजगार के अवसर सृजित करने की क्षमता है। कारोबार को सुगम बनाने की इन उपलब्धियों के बीच कुछ चुनौतियां अभी भी कायम हैं। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार देश में कारोबार से जुड़े 1536 कानूनों में आधे से ज्यादा में सजा के प्रविधान हैं। इन पर पुनर्विचार करना होगा। शोध एवं विकास, नवाचार, बौद्धिक संपदा जैसे मापदंडों पर तेजी से आगे बढऩा होगा।