सद्गुणी होने से आपके विचारों में निश्चितता और आपके संपूर्ण अस्तित्व में व्यवस्था का आगमन होता है। लेकिन जब कोई सद्गुणी बनने का प्रयत्न करता है तब वह दयालु कार्यकुशल विचारशील और सावधान बनने के लिए अपने आपको नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है।
हममें से अधिकांश लोग अव्यवस्थित हैं। अपने पहनावे में, विचार में, व्यवहारों और कार्यों में। व्यवस्थित होने का अर्थ है दबावरहित होकर शांत और स्थिर बैठना, सौम्य एवं सुंदर ढंग से भोजन करना, अवकाशपूर्ण रहते हुए भी उत्तरदायित्वपूर्ण और तत्पर रहना, अपने विचारों में स्पष्ट और सटीक होते हुए भी संकीर्ण न होना। जीवन में इस व्यवस्था का आगमन सद्गुण के माध्यम से होता है। यदि आप जीवन की समस्त गतिविधियों में सद्गुणी नहीं है, तो आपका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। सद्गुणी होने से आपके विचारों में निश्चितता और आपके संपूर्ण अस्तित्व में व्यवस्था का आगमन होता है। लेकिन जब कोई सद्गुणी बनने का प्रयत्न करता है, तब वह दयालु, कार्यकुशल, विचारशील और सावधान बनने के लिए अपने आपको नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है। जब वह व्यक्तियों को कष्ट न देने के लिए सतत प्रयास करता है और अपनी शक्तियों का इस व्यवस्था को पाने एवं अपने जीवन को अच्छा बनाने में लगाता है, तो उसके ये सारे प्रयत्न उसे प्रतिष्ठा की ओर ले जाते हैं और अंतत: वह सद्गुणी नहीं बन पाता। फूल में कितनी सुकोमलता, खुशबू और सौंदर्य होता है। यदि कोई इस सुव्यवस्था को साधने का प्रयत्न करता है, तो उससे भले ही उसका जीवन निश्चितता का बन जाए, पर उसमें वह माधुर्य नहीं आ पाएगा, जो फूलों में होता है।
अत: हमें बिना प्रयत्नों के ही निश्चित, सुस्पष्ट और व्यापक होना चाहिए।
यदि मैं जान-बूझकर सुव्यवस्थित होने का प्रयत्न करूं, प्रत्येक वस्तु को उसके स्थान पर रखने का खयाल रखूं। यदि मैं हमेशा खुद को देखता रहूं कि मेरे पैर कहां पड़ रहे हैं, तब मैं अपने लिए और दूसरों के लिए बोझ बन जाऊंगा। जो अपने विचारों का सावधानी से चयन करता हो, सावधानी से व्यक्त करता हो, ऐसा व्यक्ति भले ही व्यवस्थित हो, सजग और विचारशील हो, लेकिन उसने जीवन के सहज सृजनात्मक आनंद को खो दिया है।
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अत: सुव्यवस्था के लिए व्यक्ति किस प्रकार जीवन का सृजनात्मक आनंद प्राप्त कर कर सकता है? मेरा खयाल है कि हम इसे इसलिए प्राप्त नहीं कर पाते, क्योंकि हम किसी वस्तु को तीव्रता से महसूस नहीं करते। हम अपने दिल और दिमाग को संपूर्णता के साथ प्रयोग नहीं करते। मैं एक बार लगभग दस मिनट तक दो सुंदर गिलहरियों को एक वृक्ष पर खेलते हुए देखता रहा- केवल जीवन में आनंद के लिए।
यदि हमारे जीवन में यह अनुराग नहीं है, तो हम जीवन का यह आनंद नहीं प्राप्त कर सकते। यह वस्तुओं को गहराई से महसूस करने का अनुराग है। यदि आप किसी वस्तु को गहराई और तीव्रता से अनुभव करते हैं, तो आप देखेंगे कि आपकी यह भावना ही एक अद्भुत मार्ग से आपके जीवन में नई व्यवस्था का निर्माण कर रही है। आपकी संवेदनशीलता ही आपके जीवन में सुव्यवस्था और सद्गुणों को जन्म देती है।
लेखक-जे. कृष्णमूर्ति