
अहमदाबाद बम धमाकों के लिए जिम्मेदार 38 दोषियों को मौत और 11 को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के साथ ही आतंक के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई आगे बढ़ती दिखी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह फैसला आने में 14 साल लग गए। अभी यह कहना कठिन है कि विशेष अदालत के इस निर्णय को जब ऊंची अदालतों में चुनौती दी जाएगी, तब वहां से उसका निस्तारण कब होगा?
2008 में अहमदाबाद में 21 स्थानों पर भीषण बम धमाकों ने 1993 के मुंबई के सिलसिलेवार बम विस्फोटों की याद दिला दी थी। आतंकियों ने अहमदाबाद के साथ ही सूरत को भी दहलाने की साजिश रची थी, लेकिन वहां रखे गए बम किसी कारण फट नहीं पाए थे। 56 लोगों की जान लेने और 200 से अधिक लोगों को लहूलुहान करने वाली अहमदाबाद की आतंकी घटना सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों की ओर से अंजाम दी गई थी। यह इंडियन मुजाहिदीन के दुस्साहस की ही पराकाष्ठा थी कि उसने इस आतंकी घटना की जिम्मेदारी अपने सिर लेने में तनिक भी देर नहीं की थी। इस खूंखार संगठन के आतंकी अहमदाबाद के पहले मुंबई, दिल्ली, वाराणसी समेत देश के अन्य शहरों में भी बम विस्फोट कर कई निदरेष लोगों की जान ले चुके थे। इस संगठन ने देश भर में अपना नेटवर्क फैला लिया था।
अहमदाबाद बम धमाकों के लिए जिन आतंकियों को सजा सुनाई गई, उनमें मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र से लेकर केरल-कर्नाटक तक के आतंकी शामिल हैं। इनमें से कई आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के हैं। यह स्मरण रहे कि दिल्ली के बाटला हाऊस कांड में शामिल रहे आजमगढ़ के आतंकियों का किस तरह कुछ नेताओं ने बेशर्मी के साथ बचाव किया था। इसी तरह यह भी एक सच है कि लश्कर-ए-तैयबा की आतंकी इशरत जहां को निदरेष बताने की मुहिम छेड़ी गई थी। यह ठीक है कि हाल के समय में आतंकी घटनाओं और साथ ही आतंकियों के दुस्साहस पर लगाम लगी है, लेकिन आतंकी और अतिवादी तत्वों से हमदर्दी दिखाने वालों की कमी नहीं।
गत दिवस देश की राजधानी दिल्ली में जिस तरह विस्फोटक बरामद किया गया, उससे यह भी पता चलता है कि आतंकी तत्वों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता अभी भी है। इस सतर्कता का परिचय देने के साथ यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि हिजाब विवाद को भड़काने में पीएफआइ नामक जिस संगठन का हाथ देखा जा रहा है, उसे प्रतिबंधित किए जा चुके संगठन सिमी का नया अवतार माना जा रहा है।