मुंबई (ए)। मानवी का एक स्वभाव हो गया है। वह सुख की शोध करता है। उसे नहीं मालूम सुख स्वयं के पास रहा हुआ है। बंगला, मोटर, गाड़ी, फर्नीचर, टीवी, मोबाइल होने से आदमी सुखी नहीं बनता। सुख महसूस करने की चीज है। सुख का अनुभव हमें स्वयं करना पड़ेगा। व्यक्ति साधन मात्र से सुखी नहीं होता। स्वयं के पास कम है बाजू वाले के पास ज्यादा है। जब व्यक्ति दूसरों की सामग्री देखता है, उसका सुख, दुख में पलट जाता है। सामग्री है संतान नहीं है तो भी दुखी। एकाएक लड़का है लड़की नहीं तो भी दुखी। शास्त्रकार महर्षि फरमाते जो हमारे पास है उसी में जो संतोष माने वह सुखी
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है मानव दुख को इतना पगुराता है कि उसे सुख का स्पर्श होता ही नहीं। हम सिर्फ दुख की ही विचारणा करते हैं। जब देखो तब प्राब्लम, समस्या, उपाधि, फिकर चिंता को साथ में लेकर फिरते है। फिर कहते हैं कि शरीर पर हलकापन नहीं लगता। हलकापन लगेगा कहां से? जब तक हम अपने ऊपर सवार हुए चिंता समस्या को दूर नहीं करेंगे, तब तक आप सुख को महसूस नहीं कर पाएंगे।
एक युवान की बात है। वह सफल है उसके पास संपत्ति भी खूब है। उसका कहना है सब कुछ होने हुए भी सुख का जरा भी एहसास नहीं होता है। उसने अपने बचपन की बात कही, मध्यम वर्ग की फेमिली से आया है। पिता एक सामान्य क्लर्क थे। मां एक हाऊस वाईफ थी। घर में एक बहन तथा वह खुद। बड़ी मुश्किल से घर चलता था। एक-एक पाई का खर्चा सोच समझकर करना पड़ता था। घर में खास कोई व्यवस्था नहीं थी। उसके बाद जो बातउसने कही वह महत्व की थीं। उसने कहा घर में बहुत कुछ नहीं था फिर भी हमें कभी नहीं लगा कि हम दुखी है। चीज की कमी था परंतु सुख लबालब था। थोड़ा मिलता परंतु उसमें इतनी खुशी मिलती जैसे सब कुछ मिल गया हो। जो भी ्यक्ति गरीबी से आया हो अथवा मध्यमवर्ग से आगे बढ़ा हो उसे पूछा। वह यही कहेगा तब जो कुछ भी मिलता था उसमें हम सुख की अनुभूति करते थे। धीरे-धीरे वह सुख नजर के सामने से दूर हटता गया। अभी छोटा सा दुख भी हमें बड़ा लगता है। जिंदगी में जिसे हम सहलाते रहते है वहीं हमारा स्वभाव बन जाता है। मानव खुद दुखी नहीं होता परंतु वह खुद को दुखी मानने लगता है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते हैं कितने लोगों को दुख की ऐसी आदत पड़ गई है कि उसे सुख अनूकूल नहीं आता है। एक पति पत्नी खूब स्ट्रगल करने के बाद जीवन में आगे आए जिस-जिस चीज की उन्होंने इच्छा की वह सब कुछ उन्होंने पाया। बात बात में पत्नी ने एक दिन पति को कहा, हम कितने दुखी थे? पति ने कहा, नहीं, तुम ऐसा मत सोचो कि हम कितने दुखी थे ऐसा सोचो कि हम कितने सुखी है। हमें दुख को सिलिए याद रखना। सुख को फील करने के लिए दुख को याद करने की जरूरत नहीं है। सुख एक सूक्ष्म चीज है। जो इसे समझ सकता है वो ही इसका अनुभव कर सकता है।
जिंदगी में दुख इसको होता है, परंतु दुख से ज्यादा सुख सभी को है। हम एक छोटे दुख का गाना गाते हैं, जिसके कारण सुख दिखना ही नहीं। एक चिंता एक तकलीफ एक समस्या, एक घटना को हम इतना बड़ा स्वरूप देते हैं कि बड़ा सुख भी उसके आगे छोटा लगता है। सुख को तुम्हारे में ढूढऩे का प्रयास करो, मिल जाएगा।
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