मुंबई (ए)। समय के साथ परिवर्तन होता है वैसे ही अब बारिश का मौसम चालू हुआ है। अपनी धार्मिक भाषा में कहे तो धर्म की ऋतु आई है। आराधना करने की ऋतु आई है। आठ-आठ महीनों तक मानव अपने गृहस्थ के कार्यों में व्यस्त होकर कुछ अंश तक ही धर्म को कर पाया है। अब इस बरसाद की ऋतु में जीवों की उत्पत्ति होने के कारण मानव एक जगह पर स्थिर होकर धार्मिक आराधना में जुड़ जाता है। लम्बा सफर वह चार महीने तक नहीं सकता है। उसका मुख्य उद्देश्य जीवों की हिंसा से बचकर धर्म का बल बढ़ाना है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जीवन में धर्म का बल बढ़ाने के अनेक तरीके बताए है कोई तप त्याग करके धर्म का बल बढ़ाता है तो कोई आराधना करके, कोई परमात्मा का ध्यान करके धर्म का बल बढ़ाता है तो कोई प्रार्थना का माध्यम भी अपनाता है। समस्त विश्व में कोरोना महामारी इतनी हद तक बढ़ रही है कि अब व्यक्ति के पास सिर्फ परमात्मा का शरण बचा है। प्रार्थना में वो शक्ति है यदि मानव सामुहिक रूप से प्रार्थना करेंगे तो अवश्य सफल बनेगा। सामुहिक प्रार्थना का फल हरेक को मिलता है जबकि एक व्यक्ति खुद के लिए प्रार्थना करे तो उसका फल उस अकेले को ही मिलता है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है प्रार्थना करने वालो को पहले अपनी प्रार्थना पर श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धा करते वक्त आपके मन में हमेशा पोशिटिव विचार होनो चाहिए। जो प्रार्थना कर रहा हूं उसका परिणाम सुन्दर ही जाएगा। जब तक पोशिटिविटी नहीं सोचेंगे तब तक प्रार्थना का फल फलीभूत नहीं होता।
एक बार कई दिनों से बारिस नहीं हुई। सभी लोग विचार में पड़ गए अब क्या होगा? गांव के लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना करने लगे। एक छोटी सी बालिका छत्री लेकर घर से निकल पड़ी। लोग उसे देखकर पूछने लगे, गुडिया। तुं छत्री लेकर कहां जा रही है? आपको पता नहीं छत्री के भीग जाऊंगी। बस लड़की का इस प्रकार से आत्म विश्वास से कहना और बारिस शुरू हो गई। लोग ताजुब से देखने लगे। एक-दूसरे से बात करने लगे। हम यहां घंटो से परमात्मा से बारिश के लिए प्रार्थना कर रहे है हम सब में आत्मविश्वास नहीं है। प्रार्थना जरूर करते है अपने आप पर आत्मविश्वास नहीं है इस छोटी सी बालिका को कितनी श्रद्धा है कि गांव के लोग प्रार्थना कर रहे है तो बारिश जरूर होगी ही।
कहते है प्रार्थना में बहुत बड़ा बल है जो कार्य किसी ओर तरीके से सिद्ध नहीं होता वह कार्य प्रार्थना से सिद्ध होता है, एक बार अकबर बीमार पड़ा वैधों ने हाथ झटक लिया। हुमायु को अकबर पर खूब प्यार था। बेटा, किसी भी तरह जल्दी ठीक हो जाए वे गंभीर चिन्ता में पड़ गए। अंग्रेजी में कहावत है द्मठ्ठशष्द्म ह्लद्धद्ग स्रशशह्म्, ह्लद्धद्ग स्रशशह्म् 2द्बद्यद्य शश्चद्गठ्ठ दरवाजा खटखटाओं द्वार जरूर खुलेंगे कहने का तात्पर्य किसी भी समस्या का सुझाव कहीं न कहीं से जरूर निकलता है कोई फकीर मिल गए। उनसे सभी बात हुई। फकीर ने कुछ ध्यान लगाकर सुझाव दिया। अकबर की जान बचाने के लिए यदि कोई अपनी जान देने को तैयार हो जाए तो अकबर बच सकता है।
अकबर ने फकीर से कहा, ये रास्ता कुछ कठिन है तभी हुमायु ने कहा, मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं हुमायु ने अन्तर मन से परमात्मा को प्रार्थना की। अकबर की जान बच गई। कुछ ही दिनों के बाद हुमायु के प्राण चले गए। अकबर चौंक गया मेरे पिताजी मेरी स्वस्थता के लिए अपनी जान गंवादी। कहते है कोई हमारा उपकार करता है तो उसका प्रत्युपकार करना ही चाहिए।
पूज्यश्री फरमाते है देशकाल विपरीत हो जाए तो समूह में प्रार्थना करना ही चाहिए। भक्तामर स्त्रोत महाप्रभाविक स्त्रोत है। गुरूदेव विक्रम सूरि महाराजा ने तय किया कि इस स्त्रोत का पठन रोज प्रात: समूह में होना चाहिए। आज भी इस प्रभाविक स्त्रोत का पठन सिर्फ साधु-साध्वीजी ही नहीं बल्कि भारत में तथा अन्य प्रदेश में भी भक्तामर स्त्रोत का सामूहिक पठन होता है।
किसी भी स्कूल में पहले प्रार्थना करने के बाद ही पढ़ाई चालु होती है। व्यापारी भी व्यापार करने के पहले दुकान में परमात्मा को प्रार्थना करके ही व्यापार शुरू करता है इसी तरह आपको भी प्रार्थना का बल समझकर, आत्म विश्वास के साथ प्रार्थना करके जीवन में सफलता पाओ यहं शुभाशिष।
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