मुंबई (ए)। गुरु तत्व कितना महान है। हरेक आदमी को गुरु तत्व की उपासना करनी चाहिए। आज तक जिन्होंने हमें मार्गदर्शन दिखाकर सन्मार्ग की ओर रास्ता दिखाया है वे सभी हमारे गुरु है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है सबसे पहले गुरू के रूप में उपकारी ऐसे हमारे माता-पिता है। कोई भी बच्चा जब जन्म लेता है उस बच्चे को चलना-उठना-बैठना-सोना-खाना-पीना विगेरे मां बाप ही सिखातेहै इसलिए वे हमारे प्रथम गुरू हुए। जैन शास्त्रों में मां बाप घर पर है उन्हें रोज उनके चरणों का स्पर्श करके आशीर्वाद लेना ही चाहिए यदि आपके मां बाप स्वर्गस्थ हो गए हो तो बात नहीं, उनकी तस्वीर जरूर होगी उस तस्वीर के चरण स्पर्श करके उनके उपकारों की स्मृति जरूर करना।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जमाना किसी का भी हो चाहे लव-कुश का हो या महात्मा गांदी का हो या नरेंद्र मोदी का हो हरेक को गुरू का शरण लेना ही पड़ता है। कोई व्यक्ति हमारा शिक्षा गुरू भी बना है तो कोई हमारा कला गुरू भी बना है हरेक व्यक्ति ने कुछ न कुछ, किसी न किसी से, तो सिखा ही है कितनी मात्र में विधा पाया महत्व का नहीं है एक अक्षर का ज्ञान भी यदि किसी ने आपको दिया हो, तो वे, गुरू ही है।
पूज्यश्री फरमाते है आपने कितनी भी ऊंची पदवी क्यों न मिलाई हो आपको इस पद तक पहुंचाने वाले गुरू को तो कभी भी नहीं भूलना चाहिए। उनके उपकारों का बदला किसी भी रूप में दे सकते है मानलो, उनकी आर्थिक परिस्थिति अच्छी नहीं हो तो धन की राशि अर्पण करके सहाय जरूर करना चाहिए अथवा तो उनका सम्पर्क करके उनके हॉलचाल जरूर पूछने चाहिए कभी कोई त्यौहार हो तो भेंट के स्वरूप में उन्हें जरूर कुछ न कुछ देना चाहिए।
कहते है अंधकार में से प्रकाश में लाने वाला गुरू ही है। कितने लोगों के जीवन में परिवर्तन का कारण गुरू ही है। उन्होंने ज्ञान देकर उन भूले भटके को समझाया तब जाकर फिर से वे सन्मार्ग की ओर आए है। कितने लोग नास्तिक होने के बावजूद गुरू को तो मानते ही है। कितने के जीवन में ज्ञान का दीपक प्रगटाने वाले गुरू केवलज्ञान की भेंट भी दिलवाता है।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जो व्यक्ति दूसरों को उपदेश देने के पहले किसी भी बात को अपने आचरण में लाकर फिर दूसरों को उपदेश देते है वे हमारे धर्म गुरू है। धर्मगुरू कभी किसी वाद-विवाद में हीं पड़ते है। खास करके लोगों को यही समझाते है झूठ नहीं बोलना, किसी का तिरस्कार नहीं करना, परिग्रह नहीं रखना क्योंकि जितना संग्रह करके रखोंगे उनका भोग वह तो नहीं करेगा, सब कुछ छोड़कर जाएगा तो फिर, ममत्व इन पर क्यों करना? यदि कोई व्यक्ति उन्मार्ग की ओर चला गया हो तो धर्म गुरू उसे सन्मार्ग की ओर ले आता है।
कहते है हर जैनी जावंत के वि साहू सूत्र बोलकर अढ़ी द्वीप में रहे हुए सभी साधुओं को नमस्कार करता है। आप सभी को भी ख्याल रखकर माता-पिता की जीवन भर सेवा, शिक्षक का जीवन भर उपकार तथा धर्म गुरू की जीवन भर वैयाक्च्च तो करनी ही चाहिए। कुमारपाल राजा ने जिस तरह अपना जीवन हेमचन्द्राचार्य गुरू के चरणों में समर्पित किया उसी प्रकार आपको भी अपने मन की हर एक बात गुरू के चरणों में रखकर उनका आशीर्वाद मिलाकर जीवन में आगे बढऩा है। आज के दिन आप सभी को संकल्प करना है जिनसे आप आशीर्वाद ले रहे है उन्हें कहना है आज के बाद मैं किसी के साथ झगड़ा नहीं करूंगा, परिवार में सभी के साथ शांति से रहूंगा, किसी के ऊपर गुस्सा करके, बात नहीं करूंगा ये जो आराधना करोंगे वे आराधना आपकी सच्ची आराधना गिनी जाएगी।
पूज्यश्री फरमाते है, हमारे शास्त्रों में बहुत सारे ग्रन्थ बताए है। उन ग्रन्यों का पाठ हमें गुरू के पास लेकर अभ्यास करना है। इन ग्रन्थों के पाठ से हमारे आत्मा की प्रगति होगी। जीवन में एक गुरू बनाओं वो जो कहमें, उनकी आज्ञा का पालन करूंगा। हमारी अंतर आत्मा में जो ज्योति प्रकटती है वो ही हमारे फाइनल गुरू है अंतर आत्मा जो कहेंगी बस उसी की आज्ञा का पालन करके शीघ्र जीवन में आगे बढ़ो यही अभिलाषा।
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