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शालिग्राम अधिकतर घरों में रखकर पूजे जाते हैं। शालिग्राम काले रंग के गोल चिकने पत्थर के रूप में होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जिस प्रकार से भगवान शिव का उनके निराकार रूप शिवलिंग को माना जाता है। उसी तरह भगवान विष्णु का विग्रह रूप शालिग्राम है। माता लक्ष्मी को भी शालिग्राम विशेष प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि जिस घर में शालिग्राम को स्थापित करके विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। वहीं पर कभी भी दुख नहीं आता है। माता लक्ष्मी और श्री हरि की कृपा से घर का हर सदस्य खुशहाल जिंदगी जीता है। वहीं शालिग्राम की पूजा करते समय कुछ गलतियां करने से व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जानिए शालिग्राम की पूजा करते समय किन बातों का रखें ध्यान। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु से छल करके राक्षस जालंधर का वध कर दिया था जिसके बाद राक्षस की पत्नी वृंदा से विष्णु जी को शाप दे दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। इसलिए तुम भी पत्थर के बन जाओगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी का पौधा बनकर और गंडक नदी बनकर मेरे साथ रहेगी। इसी कारण शालिग्राम सिर्फ नेपाल में स्थित गंडक नदी में मिलते हैं। शालिग्राम की पूजा करते समय ध्यान रखें ये बातें : शालिग्राम को खुद ही अपनी मेहनत के पैसों से खरीदना चाहिए। इसे किसी भी गृहस्थ व्यक्ति से नहीं लेना चाहिए। क्योंकि आपके द्वारा की गई पूजा का फल उस व्यक्ति के पास चला जाएगा। शालिग्राम को सात्विक का प्रतीक माना जाता है। इसलिए अगर घर में शालिग्राम स्थापित है तो साफ-सफाई का ध्यान रखने के साथ शुद्ध विचार से उनका पूजन करना चाहिए। अगर घर में शालिग्राम स्थापित है तो मांस-मदिरा से दूरी बना लेना चाहिए। अन्यथा कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम रखें। अगर घर में एक से अधिक शालीग्राम हैं तो माफी मांगते हुए किसी नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। शालीग्राम में कभी भी अक्षत यानी चावल नहीं चढ़ाना चाहिए। ये अशुभ माना जाता है। अगर आपको चावल अर्पित करना है तो पीले रंग या फिर हल्दी में रंग कर अर्पित कर सकते हैं। शालिग्राम को रोजाना पंचामृत से स्नान जरूर कराना चाहिए। शालिग्राम पर चंदन लगाना तुलसी जरूर चढ़ाना चाहिए। इससे क्षी हरि प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। अगर आप शालिग्राम की नियमित रूप से पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो क्षमा मांगते हुए किसी नदी में प्रवाहित कर दें।