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मुंबई।  सम्पूर्ण सृष्टि में यदि कोई मूल्यवान चीज है तो वह मानव जन्म है। मानव जन्म की मूल्यता को जिसने बराबर समझा है, उस व्यक्ति ने तो अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर अपनी साधना में मस्त बन गया है। कितनों ने तो साधु जीवन को अपनाया है, कितनों ने श्रावक के व्रत को स्वीकारा है। जिनसे श्रावक के व्रतों का पालन नहीं हो सका वैसे, कुछ गृहस्थों ने परमात्मा के वचनों पर श्रद्धा करने लग गए है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है परमात्मा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है परमात्मा महावीर ने हमें शाश्वत सत्य बताया है कि हमें क्रोध-मान-माया एवं लोभ पर अधिकार स्थापित करना है हमारी जिंदगी से इन कषायों को विदाई देनी है इन कषायों से दर रहने का एक ही उपाय है प्रथम इन कषायों पर काबू लाना होगा। जब कषायों पर नियंत्रण हो जाएगा आत्मा को मुक्ति सुख सहजता से मिल जाएगी।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है चक्रवर्ती बनने के लिए छह खंड पर विजय मिलाना पड़ता है। भरत महाराजा ने इस छह खंड के लिए ही बाहुबली से युद्ध किया था फिर तो बाहुबली ने सर्वस्व का त्याग करके संयम का मार्ग अपना लिया। भरत महाराजा ने संघर्ष करके छ खंड पर विजय तो मिला लिया अब बात ऐसी है कि शास्वत पर्वत पर चक्रवर्ती का नाम लिखा जाता है भरत महाराजा उस स्थान पर गए परंतु वहां तो पूर्वकाल के चक्रवर्ती के नामों से वह पर्वत हाऊसफूल था। नाम कहां लिखे, ऐसा प्रश्न भरत महाराजा को आया तब वहां के अधिष्ठायक देव ने कहां किसी एक का नाम मिटाकर आपका नाम लिख सकते हो। भरत महाराजा विचार में पड़ गए, किसका नाम मिटाऊँ? फिर तो उन्होंने एक नाम मिटाकर अपना नाम लिख दिया। अब उस नाम को देखकर वे खुश होने लगे तभी उनके मन में विचार आया आज मैंने किसी ओर का नाम मिटाया है तो कल कोई ओर चक्रवर्ती बनेगा तो हो सकता है वह मेरा ही नाम मिटा दे। जहां नाम वहां नाश है इस दुनिया में कोई चीज शाश्वत नहीं है आत्मा का अस्तित्व शाश्वत है वह भी मुक्ति के बाद नश्वर है। पूज्यश्री फरमाते है इन नश्वर चीजों के पीछे पागल क्यों बनना। पूज्यश्री जब छोटे थे तब उनकी मां उन्हें कहानियां सुनाती थी तब अक्सर कहा करती थी बेटा, नाम के पीछे पागल नहीं बनना क्योंकि जहां नाम वहां नाश निचित है। जो चीज शाश्वत नहीं वे सभी नकली ही है।
असली चीजों की महिमा है नकली चीजें सिर्फ दिखावा है उनका कोई मूल्य नहीं होता। परमात्मा का देवत्व वह असली देवत्व है बाकी मेरा-तेरा यह सब नकली है असली को पकड़ो-नकली को छोड़ो असली बात हमेशा लोगों को प्रिय लगती है परंतु कितने लोग असल को नकल में बदलते देर नहीं लगती। नकली के ढेर में असली को खोजने में लोग चक्कर में पड़ जाते है। कितने असली को नकली बनाकर ठगते हुए भी देखे है।
एक आदमी 100-200 की नोट बेचने बैठा है तभी वहां से एक भाई पसार हुआ। भैया बोलो ये नोट कितने में बेचते हो? आपको चाहिए तो एक सौ की नोट 50 रुपिये में दूंगा। उसने तो 50 रुपिये में 100 की नोट खरीदकर चल दिया। एक दिन उस रंगे हाथ पकड़कर गिरफ्तार कर लिया। ये तो नकली नोट है बोल कहां से लाया है? ये तो नकली नोट है बोल कहां से लाया है? बिचारा लोभ के कारण फंस गया। ये कषाय ही बहुत खतरनाक है। दुनिया में इस प्रकार के तो, बहुत काम चलते रहते है हमें सावधान बनकर नकली में से असली को ही पकडऩा है।
एक सेठ सस्ते में सोना बेच रहा था। बाहर से सोने का दिखावा था अंदर से नकली था। मगर एक सज्जन उसकी बातों से फंस गए और उन्होंने सोने का मूल्य चूकाकर वह नकली सोना खरीद लिया एक दिन रह झवेरी की दुकान में उस सोने की चेईन बनाने के लिए गया। झवेरी ने जैसे ही देखा उसने परख कर कहा, भैया! ये तो नकली तांबा है। अब क्या हो सकता था। लोभ आदमी को अंधा बनाकर असली के बदले नकली खरीदवाता है
पूज्यश्री फरमाते है लोभ करने वालों की ये हालत होती है कि वह सुखी होने के बजाय दु:खी हो जाता है। कषायों पर नियंत्रित लाना जरूरी है चाहे वह क्रोध हो या मान हो या माया हो या लोभ। चारों कषाय महाभयंकर है सद्गति के बदले दुर्गति में ले जाती है।
परमात्मा से हमें प्रार्थना करना है कोई हमें इस तरह असली से नकली करके फंसाये नहीं इसी तरह आपको भी दूसरों को नकली करके लूटना नहीं हैं किसी को प्रेम दूंगा तो वह असली प्रेम होगा, किसी को वचन दूंगा तो वह असली वचन होगा बस इस तरह का असली उपदेश पाकर शीघ्र मानव जन्म को सार्थक करके आत्मा से परमात्मा बनो यही शुभाभिलाषा।