मुंबई। मानव कुछ पुण्य करता है तब जाकर उसे जैन कुल में जन्म मिलता है। मानव भव के साथ जैन कुल में जन्म पाना इतना सरल नहीं है। हमें जो मानव भव मिला है उसकी हम कीमत नहीं समझते है। जो आज करना है उसे हम कल पर छोड़ते है जब कल आता है तब तक समय हमारे हाथों से निकल जाता है। बचपन में हमारे में समझ नहीं थी मां हमें धक्का मारकर मंदिर भेजती थी। बेटा! पूजा करके आएगा तभी नास्ता मिलेगा। मजबूरी से मां की डॉट न मिले इसलिए पूजा कर लेते थे। अब आया यौन। युवानी में मौज शोक, मजाक मस्ती। मम्मी कहती बेटा, दुकान जाते समय मंदिर बीच में आएगा। दर्शन करके दुकान जाना। मम्मी को तो हां कहते, मगर करनी अपनी मन की क्योंकि युवानी का जोश भरा है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है यही चीज अनी प्रिय पत्नी कहती। सुनने हो जी। दुकान जाते समय बीच में लांड्री आएगी। मेरी साड़ी ले आना। बच्चों के लिए होटल से कुछ खाने के लिए लेकर आना बराबर मन में बात फीट हो जाती है। मम्मी की बात कहीं उड़ा देते। पत्नी की बात में बराबर फीट है।
मां कहती बेटा! आज रविवार है चलो! किसी तीर्थ स्थान में चले। दर्शन-पूजा हो जाएगी तब बेटा कहता मां आज रविवार है कम से कम एक दिन तो शांति से सोने दो। मां की बात --- अब देखो पत्नी क्या कहती है। चुनु के पप्पा, आज रविवार है चलो ना हम, आज थियेटर में पिक्चर देखने चले। घर लौटते होटल में खाना खा लेंगे। पत्नी ने कहा, यस बांस।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है यौवन है घूमजा-फिरना ऐश आराम अच्छा लगता है। पत्नी की बात सर आंखों पर। परंतु मां की बात गले नहीं उरती। धर्म करना अच्छा नहीं लगता मां को कहते, मां आपको जितना धर्म करना है करो। आपको कोई रोक टोक नहीं है। हमारी अब युवानी है मौज करने दो धर्म बाद में करेंगे। समय है, भर युवानी है, शरीर सक्षम है काया में बल है परंतु धर्म अच्छा नहीं लगता।
पूज्यश्री समझाते है मानव को युवानी में पूरी समझ है मां का सपोर्ट है फिर भी धर्म अच्छा नहीं लगता। धर्म को कल पर छोड़ा है। अब आई बात वृद्धावस्था की। उम्र हो गई है। घर बैठे, रिटायर है। बेटे ने साफ ईन्कार किया है पिताजी दुकान पर आना नहीं। घर बैठे माला फेरो सामायिक प्रतिक्रमण करो। युवानी में धर्म किया नहीं, इसलिए धर्म में ज्यादा रूचि नहीं सामायिक करने बैठे है माला हाथ में है एक एक सेकेंट में माला हाथ से छूट जाती है। पूज्यश्री फरमाते है यहां पर इस तरह क्यों होता है? दुकान में लाखों, करोड़ों पैसों की गिनती की। नोटों का बंडल गिनते समय कभी आपके हाथ से एक भी मोट नीचे गिरी? नहीं। कारण क्या? साहेब! एक पैसों का भी गड़बड़ हुआ नुकसान हो जाएगा धर्म में यदि नुकसान हो चला लेते हो लेकिन आपके सांसारिक मामले में नुकसान नहीं हो उसकी पूरी सतर्कता है।
युवानों! धर्म प्रेमी बंधुओं! हमारे हाथ से समय कहां निकल जाएगा हमें उसका पता ही नहीं चलेगा। बचपन से युवान, युवानी से वृद्धावस्था आ जाएगी तब तक भी यदि धर्म नहीं करोंगे तो कब करोंगे? पुण्य का भाता कब इकट्ठा करोंगे? जो मनुष्य भव इस जन्म में मिला है परभव में भी मनुष्य भव ही मिलेगा इसकी क्या गेरंटी है? इसीलिए बंधुओं सतर्क बनकर अब जो समय आपके हाथ में बचा है उस समय का पूरी तरह से उपयोग करना है। धर्म से प्रेम करोंगे धर्म आपके साथ मित्र बनकर भी परभव में साथ आएगा। बस, समय का सदुपयोग करके मानव भव को धर्म मय बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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