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मुंबई। हर व्यक्ति की सोच कुछ अलग-अलग है। मानवी सोचता है इस धरती पर सिर्फ मेरा ही जीने का अधिकार है वह इस बात को भूल रहा है कि इस धरती पर मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी भी है। गाय को देखकर वेद पुराणों का कहना है साक्षात् परमात्मा का अवतार ही इस धरती पर आ गया है। परमात्मा महावीर कहते है पांच इन्द्रिय वाले प्रआमी तो मनुष्य की बुद्धि से भी बढ़कर है। आप मनुष्य को ही ले लो। जब चोर को पकडऩा है तब मानवी की बुद्धि काम नहीं करती। वह चोर को पकडऩे में कामयाब नहीं बनता जबकि मानव कुत्ते का सहारा लेकर चोर को पकडऩे में कामयाब बनता है। कुत्ता पंचेन्द्रिय प्राणी है। घ्राणेन्द्रिय (सुगंध) का उपयोग करके किसी भी प्रकार से चोर को पकडऩे में सफलता मिलता है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवजनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है हजारों योजना पर कुछ चीज पड़ी है सिर्फ गंध से चीटी दौड़ी चली आती है परंतु मानव गंध से पता नहीं लगा पाता है। आप सोचो ये अबोल प्राणी कितना कमाल कर दिखाते है जो काम मानवी से संभव नहीं, वह काम ये अबोल पशु-पक्षी करते है।
पूज्यश्री फरमाते है पशु-पक्षी की भाषा हमें समझ में नहीं आती तो क्या वें गूंगा हो गए। आपके सामने कोई आदमी कन्नड अथवा तमिल भाषा में बात करता है आप उसकी भाषा को समझ नहीं पा रहे हो तो क्या आप उसे गूंगा कहेंगे? नहीं। इसी तरह हम पशु की भाषा नहीं समझ पाते है इसीलिए हम पशु की भाषा नहीं समझ पाते है इसीलिए हम उनकी संवेदना का स्पर्श नहीं कर पा रहे है।
पशु-पक्षी की एक खासियत, आपने नोट की होगी। यदि किसी ने उसे रोटी का टुकड्डा डाला हो अथवा तो उसका कोई जाति भाई मर गया हो तो कौएं जैसा प्राणी भी आवाज करके अपने जाति भाईयों को इकट्ठा करता है। पूज्यश्री फरमाते है हमें हमारे ह्रदय को विसाल बनाने की जरूरत है जिस प्रकार हम इस धरती पर जी रहे है उसी प्रकार इन अबोल प्राणीओं का भी जरूर इस धरती पर जीनें का अधिकार है। ये पृथ्वी सिर्फ आप अकेले की ही नहीं है बल्कि मनु,्य के साथ पशु-पक्षी का भी इस धरती पर जीने का अधिकार है।
एक बार किसी मुस्लिम व्यक्ति से पूज्यश्री की भेंट हुई। पूज्यश्री ने उस भाई को पूछा, क्या आप मांसाहार हो? भाई साहेब ने जवाब दिया हां जी। पूज्यश्री ने फिर से दूसरा प्रश्न पूछा, क्या आप प्राणियों को काटते भी हो? तब उसने जवाब दिया पशु काटना बुरी चीज है, हम तो सिर्फ खाने का काम करते हैं काटने वाला कोई दूसरा व्यक्ति है।
कोई भी व्यक्ति जब तक मांसाहार करेगा तब तक प्राणियों को काटने का काम तो चालू ही रहेगा। पूज्यश्री फरमाते हैं  मारने वाला जितना अपराधी है उतना ही खाने वाला भी अपराधी ही है। कहते है बच्चों का हक छिनकर बाप पशु नहीं होता है इसी तरह पशुओं का सुख छीनकर कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं बन पाएगा।
योग शास्त्र में हेमचंद्राचार्य जी महाराजा ने एक सुंदर बात बताई है अहिंसाया: प्रतिष्ठायाम्, तत्संन्निधौ वैर त्याग: अहिंसा की जब प्रतिष्टा होती है तब प्राणी अपनी वैर भावना को भूल जाते है। गाया डरने का भूल जाती है सिंह मारने का भूल जाता है। सभी प्राणी एक दूसरे से वैर की भावना को भूल जाता है। सभी प्राणी ेक दूसरे से वैर की भावना को भूलकर अपने में मस्त बना रहता है। हमारी अपनी मातृभूमि को हमें एक आनंद का घर बनाना है।
जहां अहिंसा होगी वहां आनंद ही आनंद होगा। अहिंसा प्रेम है। अहिंसा विश्वास है। आप किसी पशु को लकड़ी से मारेंगे तो वह दूसरे दिन आपके पास नहीं आएगा। आप यदि उसे प्रेम देंगे विश्वास देंगे तो वह जरूर आपके पास आएगा। किसी भी प्राणी को धिक्कारने से तिरस्कार करने से उसे अपना नहीं बना सकते।
ठाणा संघ वालों का कहना है इस अहिंसा का प्रचार पूरे विश्व में होना चाहिए। हरेक व्यक्ति अहिंसा का नाश लगाते हुए अपना जीवन अहिंसक बनाना चाहिए। बस अबोल प्राणीओं को अपने जीने का हक देकर, हिंसा से बचकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।