मुंबई। परमात्मा के इस शासन में अनेक शास्त्र हमें बताए गए हैं। इन सूत्रों में नमुत्थुण नाम का सूत्र है, जिसमें परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हुए बताते हैं परमात्मा कैसे है? अभयदयाणां। अभय देने वाले। कहते हैं किसी भी चीज की सिद्धि प्राप्त करने के लिए प्रथम सतत्व चाहिए। व्यक्ति में सतत्व कब आएगा? जब व्यक्ति के अंदर रहा हुआ डर चला जाएगा तब।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है परमात्मा से हम मुक्ति की चाहना बखते है। मुक्ति कैसे मिलेगी? शरीर से आत्मा का ध्यान धरके। शरीर का एक दिन नाश होने वाला है आत्मा का नहीं होगा। लोगों के मन में डर है मैं मर जाऊंगा। एक न एक दिन सभी को जाना ही है। आप कितना भी प्रयत्न करोंगे शरीर नाश होने वाला ही है फिर भी लोग मृत्यु से डरते है। एक कीड़ी जरा डंक लगाती है तो तुरंत आप डर जाते हो मृत्यु भी एक बार आने वाली ही है तो डरना क्या? कहते है इस डर के कारण हमारा साहस खत्म हो जाता है।
पूज्यश्री फरमाते है साहस करोंगे तभी सिद्धि मिलेगी। मन में जरा भी भय रखे बगैर सत्त्व को बढ़ाना है। मान लो, कभी अंधेरे में आपको जाना पड़ा साहस करके अपना कदम बढ़ाओं। कितने के मन में भय है अंधेरे में जाऊंगा कोई मुझे मार डालेगा तो, एक प्रकार का भय बैठ गया है इसलिए वह साहस नहीं करता। पूज्यश्री का कहना है अंधेरे में कभी आपको जाना पड़े तो सावधान जरूर बनना लेकिन मन में डर नहीं रखना। निडर बनकर प्रवेश करना।हमारी आंखों के सामने कितने व्यक्ति को हंसते खाते-पीते देखा है वहीं व्यक्ति एक मिनिट के बाद इस दुनिया को छोड़कर इसी मृत्यु की गोद में चला गया। मृत्यु आने ही वाली है तो हमें भय किस लिए रखना संभावना से डरना नहीं बल्कि परमात्मा से यहीं प्रार्थना करना है कि मृत्यु का भय कभी नहीं रहे। तथा अन्य भी किसी चीज का भय न रहे।
एक लड़की की आनलाईन पर क्लास चालु थी। पढऩे के लिए उसके पास मोबाईल नहीं था। उसकी परिस्थिति भी अच्छी नहीं थी कि मोबाईल खरीद सके। ज्यादा सोचने के कारण वह लड़की डिप्रेशन में आ गई एवं काल्पनिक भय से उसने आत्महत्या कर ली और परमात्मा को जारी हो गई।
पूज्यश्री फरमाते है दुनिया में ऐसे कितने लोग है जो निष्फलता से डरते है तो कितने विद्यार्थी ऐसे है जो परीक्षा में फैल होने से डरते है कितने लोगों को निष्फलता के बाद सफलता भी मिली है तो कितने लोगों ने प्रयत्न खूब किए परंतु निष्फलता ही पाई है फिर जाकर कभी सफल हुए है।
कोई आपकी कीर्ति करे अथवा तो निन्दा करे तो डरना नहीं। अभय बनना है। एक बाजु आप हो, दूसरी ओर दुनिया है तो अपने बलबूते पर जीकर सफलता मिलाना है। जिसे किसी बात का भय नहीं वहीं व्यक्ति अभय बनकर जीवन में सफलता पाता है।
जीवन में मृत्यु का भय-अपवाद का भय-निंदा का भय लोगों की बातों से भय-ज्ञान मिलाने से भय विगेरे अनेक भयों से दूर बनकर हमें साहस करके उन भयों का सामना करना है। निष्फलता सफलता की सीढ़ी है। हर निष्फलता हमें सफल बनने का पाठ सिखाती है। निडरता से दूर रहो, हिम्मत एवं साहस करने वाले महापुरूषों का जीवन चरित्र पढ़कर शीघ्र साहस को जुटाकर सिद्धि को प्राप्त करें।
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