ललित गर्ग
रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से निर्मित किये जाने वाले हल्के लड़ाकू विमान की खरीद को मंजूरी देकर भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को तेजस्विता एवं स्वावलंबन की नयी उड़ान दी है। पिछले साल भारतीय वायु सेना ने 48 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत के इन 83 तेजस विमानों की खेप की खरीद के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसे स्वीकृति मिलना नये भारत, आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है। नरेन्द्र मोदी सरकार की आत्मनिर्भर भारत की पहल के क्रम में रक्षा मंत्रालय ने अनुकरणीय कदम उठाया है। स्वदेशी आयुध सामग्री एवं रक्षा उत्पादों के निर्माण से विदेशों से आयात पर रोक लगेगी, जो न केवल आर्थिक दृष्टि से किफायती साबित होगी बल्कि भारत दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर भी उभरेगा। यह पहल इस मायने में महत्वपूर्ण है कि भारत की गिनती दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में होती है। दूसरी ओर पाक व चीन की सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों में लगातार इजाफा हुआ है। वहीं विगत में हर बड़े रक्षा सौदों में बिचैलियों की भूमिका को लेकर जो विवाद उठते रहे हैं, उसका भी पटाक्षेप हो सकेगा। साथ ही जहां भारत में रक्षा उद्योग का विकास होगा, वहीं देश में रोजगार के अवसरों में आशातीत वृद्धि हो सकेगी, भारत का पैसा भारत में रहेगा।
रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह स्वदेशी रक्षा-उत्पादों के लिये सक्रिय है, अपनी दूरगामी सोच एवं निर्णायक क्षमता से उन्होंने तेजस के स्वदेशी विमानों की खरीद की स्वीकृति को बाजी पलटने वाला बताया। पूर्व में 40 तेजस विमानों की खरीद से पृथक है 83 तेजस विमानों की खरीद का निर्णय। इन विमानों की स्वीकृति इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भारत में निर्मित ये लड़ाकू विमान वायु सेना की कसौटी पर खरे उतरे हैं, यह एक शुभ एवं नये विश्वास का अभ्युदय है कि हम सेना की जरूरतों के लिये अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहेंगे। इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार कोशिशों एवं संकल्पों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि सधे हुए कदम से आगे बढ़ते जाये तो संभव है भविष्य में भारत हथियारों के निर्यातक देशों में भी शुमार हो जाये।
भारत में आजादी के बाद से ही सरकारी स्तर पर सेनाओं की जरूरत का सामान आयुधशालाओं में निर्मित होता रहा है, लेकिन सरकार की दोहरी नीतियों, आधुनिकीकरण के अभाव, नेताओं के स्वार्थ तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी न हो पाने के कारण हम रक्षा उत्पादों के मामले में दूसरे देशों पर ही निर्भर रहे। हमारा देश हथियारों की खरीद की दृष्टि से दूसरे देशों की निर्भरता का एक बड़ा कारण इसके लिये विदेशी कम्पनियों से मिलने वाला कमीशन भी रहा है। मोदी की पहल एवं राजनाथ सिंह की सूझबूझ एवं तत्परता से मौजूदा वक्त में रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण से सेना को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलने लगी है। इसी का परिणाम है कि राजनाथ सिंह द्वारा लिया गया 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक का निर्णय।
भारत की बड़ी विडम्बना एवं विवशता यह भी रही है कि वह उन देशों में गिना जाता रहा है, जो अपनी तमाम रक्षा सामग्री का आयात करता रहा है, इस पराधीन स्थिति से मुक्ति एवं आयातक से निर्यायक बनने की सुखद स्थिति में पहुंचने के लिये अभी बड़े एवं प्रभावी निर्णय लेन एवं उन्हें क्रियान्वित करने की जरूरत है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा की बजत होगी, बल्कि भारत की गिनती सामथ्र्यवान, विकसित एवं शक्तिसम्पन्न देशों में होने लगेगी। भारत रक्षा उत्पादों की दृष्टि से शक्तिशाली एवं आत्मनिर्भर हो सकेगा। दुनिया की एक बड़ी ताकत बनकर उभरने के लिये भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी रक्षा जरूरतों को स्वयं की पूरा करने में सक्षम बनेगा और किसी भी राजनीति आग्रह-पूर्वाग्रह एवं भ्रष्टाचार को इसकी बाधा नहीं बनने देगा। तेजस लड़ाकू विमानों का संदेश है सरकार और कर्णधारों को कि शासन संचालन में एक रात में (ओवर नाईट) ही बहुत कुछ किया जा सकता है। अन्यथा "जैसा चलता है-- चलने दो" की पूर्व के नेताओं की मानसिकता और कमजोर नीति ने रक्षा-क्षेत्र की तकलीफें बढ़ाई एवं हमें पराधीन बनाये रखा हैं। ऐसे सोच वाले व्यक्तियों को अपना राष्ट्र नहीं दिखता, उन्हें विश्व कैसे दिखता। वर्तमान सरकार का धन्यवाद है कि उन्हें देश भी दिख रहा है और विश्व भी।
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश होने के बावजूद अपने 60 प्रतिशत हथियार प्रणालियों को विदेशी बाजारों से खरीदता है, जबकि भारत की तुलना में पाकिस्तान ने अपनी हथियार प्रणालियां ज्यादा विदेशी ग्राहकों को बेची हैं। इन स्थितियों की गंभीरता को देखते हुए भारत सैन्य उत्पादों के स्वावलम्बन की ओर कदम बढ़ा रहा है तो यह देश की जरूरत भी है और उचित दिशा भी है। इसी दृष्टि से रक्षा मंत्रालय द्वारा जिन उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का निर्णय किया गया है, उनमें सामान्य वस्तुएं ही नहीं वरन सैन्य बलों की जरूरतों को पूरा करने वाली अत्याधुनिक तकनीक वाली असॉल्ट राइफलें, आर्टिलरी गन, रडार व ट्रांसपोर्ट एयरक्राप्ट एवं लड़ाकू विमान आदि रक्षा उत्पाद भी शामिल हैं। आगामी छह-सात सालों में घरेलू रक्षा उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ के अनुबंध दिये जायेंगे, जिसमें पारंपरिक पनडुब्बियां, मालवाहक विमान, क्रूज मिसाइलें व हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे। वर्तमान वित्त वर्ष में घरेलू रक्षा ?उद्योग के लिये बावन हजार करोड़ के पृथक बजट का प्रावधान किया गया है। सेना में हथियारों की आपूर्ति बाधित न हो, इसलिये इसे चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2020 से 2024 के मध्य क्रियान्वित करने की प्लानिंग है। इस रणनीति के तहत सेना व वायु सेना के लिये एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये तथा नौसेना के लिये एक लाख चालीस हजार करोड़ के उत्पाद तैयार किये जाने की योजना है।
हमें मौजूदा तथा भविष्य की रक्षा जरूरतों का गहराई से आकलन करना होगा। इसकी वजह यह भी है कि रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में तकनीकों में तेजी से बदलाव होता रहता है। सभी उत्पादों की आपूर्ति निर्धारित समय सीमा में हो और सेना की जरूरतों में किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। देश की रक्षा के मुद्दे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। इसके लिये जरूरी है कि तीनों सेनाओं और रक्षा उद्योग के मध्य बेहतर तालमेल स्थापित हो। इसके लिये कारगर तंत्र विकसित किया जाना भी जरूरी है। अभी अन्य उत्पादों के बारे में भी मंथन की जरूरत है, जिनका निर्माण देश में करके दुर्लभ विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। साथ ही यह भी जरूरी है कि देश रक्षा उत्पाद गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरे क्योंकि यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है और हमारे सैनिकों की जीवन रक्षा का भी।
सरकारी नीतियों, बजट एवं कार्ययोजनाओं की घीमी रफ्तार का ही परिणाम है कि तेजस को विकसित करने में करीब तीस वर्ष लग गये। इसी तरह रक्षा क्षेत्र की अन्य परियोजनाएं भी लेट-लतीफी एवं सरकारी उदासीनता का शिकार होती रही है। इस तरह की स्थितियों का होना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी हम सेना की सामान्य जरूरतों के साधारण उपकरण और छोटे हथियार भी देश में निर्मित करने में सक्षम नहीं हो पाये है। नि:संदेह तेजस एक कारगर एवं गुणवतापूर्ण लड़ाकू विमान साबित हो रहा है, लेकिन यह तथ्य भी हमारे ध्यान में रहना जरूरी है कि उसमें लगे कुछ उपकरण एवं तकनीक दूसरे देशों की है। हमारा अगला लक्ष्य उसे पूरी तरह स्वदेशी और साथ ही अधिक उन्नत एवं गुणवतापूर्ण बनाने का होना चाहिए। यह तभी संभव है कि हमारे विज्ञानियों और तकनीकी विशेषज्ञों को भरपूर प्रोत्साहन एवं साधन दिये जाये। यदि भारत दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होते हुए अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी छाप छोड़ सकता है और हर तरह की मिसाइलों के निर्माण में सक्षम हो सकता है तो फिर ऐसी कोई वजह नहीं कि अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री तैयार करने में पीछे रहे। वर्तमान मोदी सरकार ने जहां स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उन्नत एवं प्रोत्साहनपूर्ण नीतियों को निर्मित किया है वहीं उचित बजट का भी प्रावधान किया है। अब समय है उनके सकारात्मक नतीजें जल्दी ही सामने आये। भारत न सिर्फ आयात के विकल्प के उद्देश्य से रक्षा उत्पादों का निर्माण करे, बल्कि भारत में निर्मित रक्षा उत्पादों का निर्यात अन्य देशों को करने के लिए भी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाये।