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अहमदाबाद। मानव बहुत ही पुण्यवान है कि उसे मन नाम की शक्ति की उपलब्धि हुई है। इस शक्ति का उपयोग यदि मानव नहीं ढंग से करे तो उसे लाभ ही लाभ है। मानव अपने जीवन में किसी भी कार्य की सफलता पाता है उसके पीछे कुछ न कुछ कारण अवश्य है कारण के बिना कार्य कभी पूरा नहीं होता है। मन के पास अनंत शक्तियां है वह जिस कार्य को हाथ में लेता है उसे पूरा करके ही रहता है। मन में जब तक कुछ भी बात न बैटे तब तक कोई कार्य नहीं हो सकता। आपकी भाषा में मन का जब तक ऑर्डर न आए तब तक कोई कार्य हो नहीं सकता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है ब्रिटिशों को भारत छोड़कर जाना पड़ा इसके पीछे भी कोई कारण है। इसका श्रेय महात्मा गांधी को जाता है महात्मा गांधी का आत्म विश्व जबरदस्त था। मानव यदि कुछ कार्य ठानकर मन को ऑडर करे तो वह कार्य जरूर हो सकता है। नहीं था तब गांव के लोग मंडली बनाकर गांव-गांव नाटक दिखाते थे। एक बार गांधी जी के गांव में नाटक मंडली आई। नाटक मंडली ने सत्यवादी हरिश्चंद्र का नाटक दिखाया। गांधी जी ने एक ही बार दिखा तो उनके दिमाग में बात फीट हो गई। गांधी जी को हरिश्चंद्र की बात ऐसी जच गई कि उन्होंने इसी नाटक को सत्तरह बार देखा। एक कारण मिला कार्य हुआ गांधी जी ने अंत समय तक इस सत्य के लिए आंदोलन चलाया।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है गांधी जी के आदर्श हमारे जीवन को एक नई प्रेरणा देते है। कोई भी कार्य दृढ़ आत्मविश्वास के साथ करो। किसी कार्य को हाथ में लिया है परिवार वाले बीच में आकर विध्न डालेंगे दु:ख भी आएगा विकट परिस्थिति भी आएगी हमें दृढ़ता से कार्य पूरा करना है भयभीत होकर कार्य को अधूरा नहीं छोडऩा है। मन की लगाम हमारे हाथ में रखनी है उसके बचाये हमें नहीं चलना है।
आपने भी अपने जीवन में अनेक नाटक अच्छे बूरे दृश्य विगेरे देखे ही होंगे। उनमें से कुछ चीज तो आपको अच्छी लगी ही होगी. क्या आपने उसे अपने चलाना सिखाया? एक उपवास करने की बात आती है तो डरते हो मुझसे नहीं होगा। मन को धनवान बनाओ दरिद्री नहीं। सैनिक तैयार होकर भारत की बाडर पर जाकर खड़े होते है क्या उन्होंने अपने मन को मजबूत नहीं बनाया होगा? वे जानते है घर से निकले है वापिस आएगें कि नहीं कोई भरोसा नहीं। प्राण भी जा सकते है फिर भी दृढ़ निश्चय पहले दिमाग में बिठाओं। फिर ही कार्य की सफलता मिलेगी।
मन को मजबूत बनाने के लिए मानवी को वाचन-पठन करना होगा। पठन और स्वाध्याय में बड़ा अंतर है पठन में हम किसी अच्छी चीज को पसंद कर लेते है जबकि स्वाध्याय में जो पढ़ा है उसका पुनरावर्तन करते है परिणाम वह जिंदगी भर याद रहता है और हमारे आचरण में उसका परिणाम दिखता है। 
परमात्मा महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक उपसगं एवं कष्ट को सहन किए। कभी इन कष्टों से घबराए नहीं। मन की लगामा को बराबर अपने हाथ में पकड़कर रखी थी तभी उनके कर्मो का अंत हुआ और वे मुक्ति को पाए। अहिंसा परमो धर्म का नारा जोरजोर से पुकारते हो प्रेक्टीकल अहिंसा के लिए अपना जीवन समर्पित करो। विश्व के कल्याण के साथ आपका भी जरूर कल्याण होगा बस दृढ़ मनोबल से कार्य की सफलता पाकर आत्मा से परमात्मा बनें।