केके पाठक
आज हमारे देश में कुसंस्कारों का फैलाव इतना ज्यादा बढ़ गया है, कि आगे जाकर क्या होगा ? कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए जितने भी जवाबदार लोग हैं, अधिकार प्राप्त लोग हैं, सब आंखें बंद करके आस पास से निकल जाते हैं। जैसे हमारे देश में 14 वर्ष से कम के बालकों का श्रम करना वैधानिक अपराध है। लेकिन आपको पेट्रोल पंप, चाय दुकानों, होटलों, मोटर व मोटरसाइकिल, स्कूटर रिपेयरिंग की दुकानों मैं 80 से 90 प्रतिशत बाल श्रम कार्य करते मिल जाएंगे, कुछ तो बाल श्रम अधिकारियों के वाहन दुरुस्त करते भी मिल जाएंगे- लेकिन सब अपनी अपनी जगह है। गरीब बच्चे तो अपने कंधों पर बोरियां डालकर, पानी की खाली बोतलें, और पॉलीथिन व कागज के पु_े बीनते रोज नजर आते हैं, लेकिन यह सब अपनी जगह है। और बाल श्रम कानून अपनी जगह है। जैसे रेलवे स्टेशनों की चाय की क्वालिटी मैं -कभी कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। रेलवे स्टेशनों में बड़े बड़े अधिकारियों की बैठक व आना जाना होता रहता है। लेकिन उन्हें चाय की क्वालिटी में कोई खोट नजर नहीं आता। जबकि रेलवे में सफर करने वाले 99 प्रतिशत लोगों को रेलवे स्टेशनों की चाय पसंद ही नहीं आती फिर भी वे मजबूरी मैं चाय पीते हैं क्योंकि उनके पास इसका दूसरा और कोई विकल्प नहीं है। यह एक सच्चाई है। कि रेलवे स्टेशनों में चाय की क्वालिटी इतनी घटिया होती है। लेकिन चाय की क्वालिटी अपनी जगह है। और रेलवे के अधिकारियों की बैठक और आना जाना अपनी जगह है। सब चलता है- यह हमारा देश है। जहां हम हर वर्ष राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाते हैं लेकिन करते कुछ नहीं है ? सिर्फ दिवस मनाने में खर्चा करते हैं, और फिर भूल जाते हैं। यहां तक होता है कि बाल श्रम निषेध दिवस मनाने के लिए जो मंच तैयार हो रहा होता है उसमें भी 14 वर्ष से कम के बच्चे कार्य कर रहे होते हैं ? सब अपनी अपनी जगह ठीक है। बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी है और गरीबी जाति देख कर नहीं होती। या हम इसे दूसरे शब्दों में यूं कहें की गरीबी की कोई जाति नहीं होती- हमें इनके लिए बिना किसी भेदभाव के यथार्थ में कुछ किए जाने की आवश्यकता है। तभी हम बाल श्रम पर विजय पा सकते हैं। एक गरीब बालकों की आदतें लगभग सारी की सारी असामाजिक होती हैं। अधिकांश बच्चे बीड़ी, सिगरेट पीते हैं। पंचर बनाने वाले लोशन को सूँघकर उसका नशा करते हैं। शराब पीते हैं, दो-चार-दस रूपयो के लिए दूसरों के लिए शराब दुकानों से शराब लाने का कार्य करते हैं, गांजा पीते हैं, तभी तो यह आगे जाकर हमारे देश में असामाजिकता फैलाते हैं,और हमारे समाज के असामाजिक तत्व बनते हैं। यही नहीं अच्छे-अच्छे घराने के खाते- पीते घराने के 30 से 40 प्रतिशत बच्चे भी इसी प्रकार के असामाजिक कृत्य करते हैं। बीड़ी सिगरेट पीना, नशा करना, शराब पीना, क्योंकि उनको घरों से किसी भी प्रकार के कोई भी संस्कार नहीं दिए जाते। इन सब बुरी आदतों और बुरे कर्मों का मुख्य कारण इनको अच्छे संस्कार ना दिया जाना है, यदि समाज इनको अच्छे संस्कार दे तो यह भविष्य के एक अच्छे नागरिक बनकर हमारे समाज और हमारे देश के सामने आएंगे। अच्छे संस्कारों में जैसे किसी भी प्रकार के नशो से दूर रहना, पढ़ाई लिखाई करना, माताओं बहनों की इज्जत करना, अश्लीलता भरे शब्दों और कृत्यो से दूर रहना, हमें ध्यान रखना पड़ेगा की ये मोबाइल, का कैसा उपयोग कर रहे हैं। टेलीविजन में फिल्मों, विज्ञापनों में दिखाई गई अश्लीलता बुरे कृत्यो का इन पर असर ना पड़े, इसलिए इनको पहले ही समझा देना चाहिए कि यह एक मनोरंजन और नकली कृत्य है। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। इसका परिणाम हमेशा नकारात्मक और बुरा होता है। इसे कभी भी अपने जीवन में अपनाने और उतारने की कोशिश नहीं करना चाहिए। रोज सुबह उठकर माता पिता के चरण स्पर्श करना। नहा धोकर अपने इष्ट को याद करना। प्रार्थना पूजा करना। इसके बाद प्रतिदिन की दिनचर्या अनुसार अपने कार्यों को करना ही इन्हें संस्कारित करना है। यदि यह संस्कार बच्चों में आ गए तो उनके साथ- साथ हमारे देश का भविष्य भी बदल जावेगा। बच्चों को हमेशा गलत कार्यों और गलत बातों के दुष्परिणामों से अवगत कराते रहना चाहिए। और उन्हें सदैव यह सीख देते रहना चाहिए की ऐसी बातों को कभी भी अपने आचरण मैं लागू ना करें, ऐसी बातों को कभी भी स्वयं ना करें, और ना ही किसी को करने दें। तभी हमारे देश का भविष्य अच्छा बन पाएगा। सरकारों को भी चाहिए कि वह फिल्मों टेलीविजन, विज्ञापनों और मोबाइल में जो अश्लीलता दिखाई जाती है। उस पर विराम लगाएं। ताकि लोग भ्रमित ना हो, और उनका आने वाला जीवन और भविष्य बर्बाद ना हो, मोबाइल में अभी एक खेल जिसे पब्जी कहते हैं, वह बहुत प्रचलित है इसके कारण ना जाने कितने बच्चे अपनी जान गवा चुके हैं। जब तक हम अपने बच्चों को पारिवारिक, सामाजिक बुराइयों के बारे में जानकारी नहीं देंगे, तब तक वे संस्कारित नहीं हो सकते। उन्हें खेलकूद के लिए दिन भर टेलीविजन और मोबाइल दिए जाने की जरूरत नहीं है। कुछ मैदानी खेल और बाहरी आबोहवा से रूबरू कराने की भी आवश्यकता है। सरकार पब्जी जैसे खतरनाक खेलो और मोबाइल विज्ञापनों, टेलीविजन विज्ञापनों, वा फिल्मों के घटिया स्तर को माताओं बहनों के शारीरिक प्रदर्शन को दिखाए जाने से रोकने की आवश्यकता है। बच्चों को नर और नारी के शरीर के अंगों के प्राकृतिक महत्व से अवगत कराने की आवश्यकता है। ताकि उनकी मानसिकता मानव मैं नर और नारी के शरीर के अंगों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो। और उन्हें यह बताया जाए कि यह ईश्वर का दिया हुआ प्रकृति का मानव, और विश्व के सभी प्राणियों को एक प्राकृतिक उपहार है। जिसके कारण इस दुनिया और संसार का संचालन हो रहा है। हम और आप प्रकृति और परमपिता ईश्वर के इसी उपहार के परिणाम हैं। इसे मजाक और फूहड़ता का विषय ना बनाया जाए ? मजाक और फूहड़ता का विषय बना कर धन और दौलत ना कमाई जाए। लोगों के मन में भ्रम पैदा ना किया जाए। तभी हमारे देश के युवा और बच्चे संस्कारित होंगे।
सरकारों को इस फूहड़ता और विकृत फिल्मी, मोबाइल और टेलीविजन विज्ञापनों पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। तभी सभी बच्चों में प्रकृति व समाज के प्रति सकारात्मकता के भाव उत्पन्न होंगे। और भी आगे जाकर इस देश के एक अच्छे नागरिक बनेंगे कहां गया है- कि वे परम सौभाग्यशाली हैं, जिनके पास भोजन के साथ भूख है। सेज के साथ नींद है।
धन के साथ उदारता है। और विशिष्टता के साथ शिष्टता है। और यह सब सद्गुण अच्छे संस्कारों से ही उत्पन्न हो सकते हैं। बच्चे मन के सच्चे सारी जग की आंखों के तारे।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH