केके पाठक
हमारा देश भारत- स्वतंत्रता के पहले ही अपने देश की अस्मिता एवं पहचान बहुत हद तक खो चुका था। या हम यूं कहें कि विदेशी शासकों ने हमारे देश की अस्मिता पहचान और संस्कृति पर गहरी चोटें की थी, जिससे वह अस्त व्यस्त हो गया था। सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ उस समय इस बात पर चिंतन मनन करना चाहिए था- बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे देश की स्वतंत्रता के बाद ऐसा कुछ नहीं किया गया,और हमारे देश की जिस अस्मिता पहचान और संस्कारों पर चोट की गई थी उन्हें पुनर्जीवित किए जाने की आवश्यकता थी- यही हमारे लिए सच्ची और वास्तविक स्वतंत्रता कहलाती। किंतु बड़े दुख का विषय है कि हमारे देश की वास्तविक संस्कृति पहचान और अस्मिता वापस तो नहीं आई बल्कि देश स्वतंत्र होने के बाद हमारे देश को जबरन विदेशी संस्कृति का गुलाम बनाने की लगातार कोशिश होती रही है। जिसमें हमारे देश के लालची लल्लू पच्छू लोगों की विदेशी ताकतों के साथ लगातार सहभागिता बनी रही है जो आज भी है - जो आज भी जारी है। हमारे देश में- आज भी हमारे देश की संस्कृति अस्मिता और पहचान के विरुद्ध समय-समय पर कुछ विदेशी सोच और विदेशी ताकतों की सोच रखने वाले देशद्रोहियों द्वारा लगातार कार्यवाही करने के प्रयास किए जा रहे हैं- इस हेतु हमारे देश में हर क्षेत्र में सेंसर बोर्ड होने की आवश्यकता है, जैसे फिल्म सेंसर बोर्ड जो यह देखेगी हमारे देश की संस्कृति और अस्मिता एवं पहचान के साथ यदि कोई खिलवाड़ हो रहा है, तो यह उस सेंसर बोर्ड की पूर्ण जवाबदारी है कि वह उसे रोके ऐसे कृत्यो को कदापि छूट ना दे और उनके नापाक इरादों को वहीं पर दबा कर रख दे। वहीं पर खत्म कर दे, किंतु ऐसा यथार्थ में कुछ दिखाई नहीं दे रहा है जो बड़े शर्म और दुख की बात है। इसी प्रकार देश के हर क्षेत्र में जहां पर भी हमारे देश की संस्कृति अस्मिता व पहचान के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की जाती है,उसे कड़ाई से सेंसर बोर्ड और देश के वैधानिक कानूनों द्वारा रोके जाने की सख्त आवश्यकता है। तभी हमारे देश की वास्तविक संस्कृति अस्मिता और पहचान जिंदा रह सकेगी- जो हमारा मूल है, कहा जाता है कि जिस देश की संस्कृति अस्मिता और पहचान खत्म हो जाती है, उस देश का जल्द पतन हो जाता है, हमारे देश में आए दिन कुछ सिरफिरो द्वारा, जानबूझकर, फिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से, या अन्य गतिविधियों के माध्यम से हमारे देश की पहचान अस्मिता और संस्कृति पर चोट की जाती है। जिसे हमारे देश का सेंसर बोर्ड आंखें मूंदकर देखते रहता है, हमारे देश के सेंसर बोर्ड की नैतिक जवाबदारी होनी चाहिए कि वे ऐसे कृत्य को रोकें ताकि देश में अरफ़ा तफरी का माहौल न बनने पाए, और हमारे देश की संस्कृति अस्मिता और पहचान जीवित रहे। वह ऐसे सिरफिरे लोगों को कड़ी से कड़ी दंडात्मक कार्यवाही से गुजरना पड़े ताकि वे दोबारा ऐसा कृत्य करने की कोशिश ना करें, अभी भी कोई देरी नहीं हुई है, हमारे देश की पुरातन संस्कृति अस्मिता और पहचान को वापस फिर से जिंदा करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं जैसे हमारे जिन आस्थाओं के केंद्र पर विदेशी ताकतों ने हमला कर उन्हें ध्वस्त किया उन्हें पुनर्जीवित किया जाए जिन शहरों और जगहों के नाम विदेशी ताकतों ने जबरन बदले हैं उन्हें पुरातन नाम में वापस लाया जाए हमारी जिस संस्कृति को विदेशी ताकतों ने चौपट किया है।
उसे पुनर्जीवित किया जाए- जिसमें मुख्य रुप से हमारी शैक्षणिक पद्धति है। कहां गया है और यह पूर्णता है सत्य है कि हमारे देश की शैक्षणिक पद्धति को तहस-नहस करने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में व कायदे डिबेट हुई और उसके बाद एक सुनियोजित षड्यंत्र के साथ हमारे देश की शिक्षा पद्धति को चौपट किया गया जो आज तक जारी है धन्य है स्वतंत्र भारत और धन्य है स्वतंत्र भारत के कर्णधार इसमें हमारे देश के सभी राजनीतिक दल दोषी हैं क्योंकि इनके हाथ में ही देश की सत्ता की बागडोर होती है जिसने हमारे देश पर जितने ज्यादा दिन शासन किया वह उतना ही ज्यादा जवाबदार है अभी भी समय है हमारे देश की पुरातन शिक्षण पद्धति को वापस लाने की- शैक्षणिक पद्धति हमारे भविष्य का आईना है- यदि हमारी शैक्षणिक पद्धति हमारे देश की संस्कृति के अनुसार होगी तो हम एक देशभक्त और अपने देश की संस्कृति और अस्मिता को जिंदा रखने वाले इंसान के रूप में उभरेगे और हम एक सच्चे भारतीय बन सकेंगे। आज विदेशी शिक्षा पद्धति ने हमारे देश के युवाओं को दिग्भ्रमित कर दिया है अज्ञानता की ओर धकेल दिया है, हमारे देश में कुछ ऐसी संस्कृति को जन्म दिया है, जो हमारे देश के खिलाफ और हमारे संस्कारों के खिलाफ है। इसे तत्काल बंद किया जाना चाहिए, जैसे क़त्ल खानों का खुला होना और शराब खानों का खुला होना, सरकारों को इन्हें तुरंत बंद करना चाहिए हमारे देश की आज की एक सबसे बड़ी विडंबना है कि हमारे देश में राजनैतिक पार्टी देश की एकता और अखंडता के लिए देश की संस्कृति के लिए एकमत नहीं हो पाती, लोग अपने अपने शासन के चक्कर में अनर्गल बातें और देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ जैसे कदम उठाते रहते हैं, सबसे पहले सारे मतभेदों को भूल कर हमारे देश की समस्त राजनीतिक पार्टियों को देशहित देश की संस्कृति हित देश की अस्मिता हित और देश के भविष्य हित के लिए एकजुट होकर कदम उठाए जाने की महती आवश्यकता है। हमारे देश की हालत आज अंग्रेजों ने ऐसी कर दी है कि हम स्वतंत्रता के बाद भी कुछ कर पाने में सक्षम नहीं है, आज हमें इन्हीं बेडिय़ों से आजाद होने की नितांत आवश्यकता है। हमें पार्टीगत राजनीतिक पार्टीगत गतिविधियों को छोड़कर देश हित के मुद्दों पर देश हित में एकता दिखाने की जरूरत है। आज हमने देश में शासन करने के लिए प्रदेश में शासन करने के लिए अपने ही देश को राजनीतिक पार्टियों का अखाड़ा बना लिया है। हम एक दूसरे की बात अच्छी हो या बुरी सुनना ही नहीं चाहते केवल और केवल अपनी चलाना चाहते हैं, जो सत्ता पक्ष में है उसे कोसना भला बुरा कहना और अपने शासन आने की बारी का इंतजार करना इसके लिए शाम दंड भेद गलत सही सब कुछ करना यही हमारे देश की बर्बादी के मुख्य कारण हैं- जो हमें विदेशी ताकतें देकर गई हैं। और हम हैं कि उसी में जुटे हुए हैं। हम जागृत नहीं होना चाहते हम अपने ही देश को अखाड़ा बना कर रखे हैं हम अपनों को ही खुश रहे हैं हम अपनों से ही लड़ रहे हैं हमें अच्छाई और बुराई से कोई लेना देना नहीं है हमें तो चाहिए सिर्फ अपना शासन और अपना शासन ऐसे में कैसे चलेगा। हमें अपने देश के भविष्य, अपने देश की अस्मिता अपने देश की संस्कृति के लिए साथ मिलकर जागृत होना होगा।
जब हम अपने ही देश में एक साथ मिलेंगे तब ही तो हम बुराइयों का विरोध कर पाएंगे आज विदेशी ताकतें हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों को रोटी का टुकड़ा डालकर कुत्तों जैसा लडवाती है, और हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां उनके चुंगल में फंस कर आपस में लड़ते हैं। बड़ा दुख होता है यह देख कर कि यह हमारी कैसी स्वतंत्रता है। ना तो हमारी संस्कृति जीवित है ना ही हमारी अस्मिता जीवित है और ना ही हमारी पहचान जीवित है। हमने सब कुछ गिरवी रख दिया है और हम विदेशी संस्कृति के गुलाम हो गए हैं। हमें इससे दूर भागना होगा बचना होगा नहीं तो अंत समय निकट होगा आज हमें विदेशी ताकतों ने उल्टा सीधा संविधान परोस कर इतने टुकड़ों में बांट दिया है, कि हम आपस में ही लड़ते रहते हैं। हम इससे उबर नहीं पाते हम पहचान ही नहीं पाते कि हम किससे लड़ रहे हैं। और लोग अपना शासन चलाते रहते हैं। हमारे देश के शासन को इस बात पर विचार विमर्श करना होगा और हमारे देश की एकता अखंडता अस्मिता वह पहचान को जीवित रखने के लिए सतत प्रयास करने होंगे- कड़े कदम उठाने होंगे तभी हमारी स्वतंत्रता वास्तविक स्वतंत्रता कहलाएगी, तभी हम अपने देश की संस्कृति अस्मिता और पहचान को पुनर्जीवित कर पाएंगे और फक्र से कहेंगे कि हम भारतीय हैं हम हिंदुस्तानी हैं- जय हिंद- जय भारत।
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