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केके पाठक
हमारे देश के लोकतंत्र मै उल्लेखानुसार,बहुमत के आधार पर सरकारों का बनना वा सदन में बहुमत के आधार पर बिलो का  पास होना। सर्वोपरि माना गया है अर्थात यदि बहुमत किसी बिल के समर्थन में है, तो उस बिल का पास होना सुनिश्चित है, अब रहा सवाल बिल पर चर्चा का तो जो बिल प्रस्तुत किया जाता है, उस बिल पर चर्चा का प्रावधान है, जिससे उसमें रह गई खामियों पर लोग- विभिन्न दलों के लोग अपना अच्छा बुरा विचार विमर्श प्रस्तुत कर सकें। जिससे कि वह बिल बिना किसी खामियों के सदन में पास हो जाए। व कानून बन जाए। किंतु आजकल हम देखते हैं कि राजनीतिक पार्टियां द्वेष- वस जनहित के कानूनों को अनावश्यक सदन में लटका आती हैं। क्योंकि वह विपक्ष में रहती हैं, अत: उन्हें यह लगता है, कि अगर ऐसे ही सब बिल पास होते गए तो शायद हमारे पास कोई राजनीतिक मुद्दा बाकी नहीं रहेगा। मैं किसी पार्टी विशेष की बात नहीं कर रहा हूं , सभी राजनीतिक पार्टियों का यह नैतिक कर्तव्य है- यह संवैधानिक कर्तव्य है- कि वह जनहित में कार्य करें। वर्तमान की स्थिति को देखकर नियम कानून और कायदो में बदलाव लाना नितांत आवश्यक है।
 राजनीतिक पार्टियों को सर्वहित और जनहित  की सोच रख कर कार्य करना चाहिए वोट बैंक की राजनीति के लिए लोगों में ईर्ष्या- द्वेष की भावना किसी एक पक्ष को नाराज करना और दूसरे पक्ष पर मरहम लगाना राजनीतिक पैतरेवाजी है, सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करने के लिए काले को सफेद बोलना और सफेद को काला बोलना उचित नहीं है। अपना वोट बैंक साधना लोगों में भ्रम फैलाना देशद्रोह और देश के विरुद्ध में है ऐसे कृत्यो पर, संवैधानिक कानून और नियमों के अनुसार कानून बनाए जाने की जरूरत है, जनहित के मुद्दों पर भ्रम फैलाना भ्रम की राजनीति करना, ठीक बात नहीं है। हमारा देश हमारे लिए सर्वोपरि है, फिर हमारे देश की जनता हमारे लिए सर्वोपरि है। जीत और हार अपनी जगह है पार्टियां राजनीतिक पार्टियां अपनी जगह हैं। लेकिन हमारा यह नैतिक दायित्व है, कि हम अपने देश के प्रति और देशवासियों के प्रति वफादार रहें। भले ही हम शासन में आप आए या ना आप आएं, लेकिन हम सदैव सत्य का दामन थामे रहे यही सच्ची राजनीति है, केवल इस काम को हम करेंगे, दूसरा कोई ना करने पाय यह हमारे निचले मानसिकता की सोच है। हमें सदैव अपने देशवासियों के प्रति वफादार रहने की आवश्यकता है, यदि देशवासियों में आपके गुणों को पहचानने की वास्तविक क्षमता होगी, और वह किसी बहकावे में नहीं आएंगे तो निश्चित है, कि एक दिन आपका शासन भी आएगा लेकिन क्षणिक कृत्यो द्वारा, राजनीति में उथल-पुथल मचा कर्, और उद्दंडता के द्वारा वोटरों को साधना और वोट बैंक की राजनीति करना। 
हमारे अपने देश और देशवासियों के साथ छल और कपट है। ऐसे लोगों को राजनीति से कम से कम 10 वर्षों के लिए दूर कर देना चाहिए। देश के सर्वोच्च सदन में असामाजिक तत्वों जैसे कृत्य करना अशोभनीय है अगर यही कृत्य कोई साधारण आदमी किसी सरकारी संस्थान में करता है तो उसे सस्पेंड कर दिया जाता है। और उसके विरुद्ध में इंक्वायरी होती है। सही पाए जाने पर उसे बर्खास्त भी कर दिया जाता है। इन सीमा लगने वाले सांसदों के साथ भी यही कार्यवाही किया जाना उचित होगा। हमें सच्चाई और ईमानदारी के साथ राजनीति करना है, राजनीति एक पेशा नहीं जनसेवा है, और जनसेवा हमेशा मिलजुल कर की जाती है। यहां तो राजनीतिक दल गिनती लगाते रहते हैं, कि कौन से राज्य में अब हमारी पार्टी की सरकार कैसे आएगी- केंद्रीय स्तर पर हमारे पार्टी की सरकार कैसे आएगी इसके लिए लोगों में कैसे भ्रम फैलाना है। इसके लिए लोगों को कैसे बरगलाना है। इसके लिए कौन सा ऐसा कार्य करना है जिससे लोग हमारे पक्ष में हो जाएं। यह हमारे देश के साथ-साथ हमारे देश की जनता के साथ एक बहुत बड़ा छल और कपट है। यदि आपमे क्षमता है, और अच्छाइयां हैं, तो आप निष्कपट और निश्चल भाव से चुनाव में देश के भविष्य के सुधार के लिए और देशवासियों की उन्नति के लिए अच्छी-अच्छी योजना लेकर आइए- और उन्हें पूरा करिए फिर देखिए आपको कैसे लोग नहीं चुनते। जब तक आपके मन में छल कपट और बेईमानी भरी रहेगी। आप देश और प्रदेश को एक लूट का जरिया बनाए रहेंगे। तब तक आप की हालत ऐसी ही रहेगी कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि अगर दो चोर चुनाव में खड़े हैं, तो हम किस को चुने जो कम चोर है, स्वाभाविक है हम उसी को चुनेंगे। क्योंकि जो बड़ा चोर है वह तो देश को ही बेच खायेगा। 
आज हमारे देश में निजी करण और प्राइवेटीकरण, हो रहा है, इसमें कहीं ना कहीं हमारे देश के बड़े- बड़े अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं एक कहावत है कि मैं खेत बोता था, जिसकी 70 प्रतिशत फसल चूहे खा जाते थे, इसलिए मैंने खेत ही बेच दिया, अब खरीददार जाने वह कैसे फसल ऊगायेगा और चूहो का इलाज कैसे करेगा,यही हमारे देश के उद्योगों और बड़े बड़े संस्थानों की हालत है। जहां पर काम का आउटपुट 40 से 50 परसेंट ही मिलता है। अधिकांश सरकारी उद्योग घाटों में चल रहे हैं। सरकार मजबूर है, सरकारों का कहना है- कि आप घाटा कम करो कम से कम- नो लास नो प्रॉफिट पर तो संस्थानों को लाओ नहीं तो हमारे पास और कोई चारा नहीं है, अब ऐसी स्थिति में कौन दोषी है। इसका आकलन आप स्वयं कर सकते हैं, इसमें भी बड़े पैमाने पर बड़े- बड़े अधिकारियों की धौस राजनीतिक पार्टियों से मिलीभगत और छोटे और ईमानदार कर्मचारियों पर, अत्याचार सम्मिलित है। बड़े- बड़े मोटे- मोटे अधिकारियों का सिर्फ और सिर्फ एक ही कहना है।
खाओ .... हम भी खाते हैं और तुम भी खाओ। लेकिन याद रखो अगर आवाज उठाओगे। तो हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे। लोग डर के मारे आवाज नहीं उठाते। और संस्थानों में इन क्रियाकलापों की जांच का जिम्मा भी उन्हीं चोर अधिकारियों के हाथों में होता है। जो खुद चोरी करते हैं। अब आप समझ सकते हैं। कि वह क्या रिपोर्ट सरकार को देंगे।  यह अधिकारी सरकारों को यही कहते हैं कि सर अब तो एक ही रास्ता है इन संस्थानों को प्राइवेट संस्थाओं को सौंप दिया जाए। ताकि बड़े बड़े अधिकारियों को कमीशन के रूप में मोटी रकम प्राप्त हो। और छोटे कर्मचारियों का शोषण हो लोग कहते हैं- कि धीरे-धीरे प्राइवेटीकरण से सरकारीकरण हुआ था। लेकिन अब लोग सरकारीकरण का मतलब समझ गए हैं। और लोगों ने सरकारी संस्थानों को इस स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है- कि अब फिर हम सरकारीकरण से प्राइवेटीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, अब इसमें दोषी कौन है- किसके मुर्दाबाद के नारे तुम लगा रहे हो जिन्हें मुर्दाबाद कहना चाहिए- वह तो ऐश कर रहे हैं। 
सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। लगाओ सरकार के नाम के मुर्दाबाद के नारे सरकारों को क्या फर्क पडऩा है। फिर निजीकरण होगा और मोटी- मोटी रकम बड़े- बड़े अधिकारी अंदर कर लेंगे। और शोषण कर्मचारियों का होगा जिन्हें बाहर कर दिया जाएगा, और बदले में नए-नए युवा कर्मचारियों को कम वेतन में अधिक कार्य करने वाले लोगों को लाया जाएगा। वह भी नियमित नहीं अनियमित रूप में, जब तक उनका युवा बल रहेगा। तब तक उन्होंने निचोड़ा जाएगा, बाद में उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखला दिया जाएगा। घूम फिर कर बर्बाद करने वाले हमारे ही बीच के लोग हैं। कोई सरकार किसी कारखाने को चलाने के लिए किसी सरकारी संस्थान को चलाने के लिए नहीं आती। हमारे ही लोग सरकारी संस्थानों और कारखानों को चलाते हैं। घूसखोरी, कमीशन- खोरी और कामचोरी के द्वारा इन संस्थानों को बर्बाद कर दिया जाता है। और फिर निजी करण में सौंप दिया जाता है। यह सब गलती राजनीति का ही परिणाम है। यदि बड़े- बड़े अधिकारियों पर सरकार की नकेल कसी रहे, और सरकार ईमानदारी से कार्य करें, तो कभी भी यह नहीं हो सकता कि सरकारी संस्थान घाटों में चलें, यही है जनता का जनता पर जनता द्वारा शासन- बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है आप की सच्चाई  ईमानदारी और मेहनत को बेईमानी कमीशन खोरी और कामचोरी एक झटके में बर्बाद कर देती है। लेकिन याद रखना जीत हमेशा सत्य की होती है। आप सत्य के मार्ग से मत भटकना सजा उन्हें मिलेगी जो गलत रास्तों पर चल रहे हैं। अपना रास्ता कतई मत बदलना कितनी भी मुश्किल क्यों ना आ जाए। हमेशा सत्य और ईमानदारी के रास्ते पर चलना होगी। किसी की पहुंच बहुत ऊपर तक होगी....... लेकिन सच्चाई और ईमानदारी की पहुंच सीधे परमात्मा ईश्वर के चरणों तक होती है। और दुनिया में उनसे बड़ा कोई नहीं होता। अच्छे-अच्छे उनके सामने झुकते हैं। कर्मों के अनुसार वे अच्छे- अच्छों का पसीना निकाल देते हैं। इसलिए हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर बढ़ते- चलो एक दिन तुम्हें अपनी मंजिल जरूर मिलेगी। तुम एक छोटे कर्मचारी हो या एक बड़े कर्मचारी सदैव सत्य के मार्ग पर चलो गिरती राजनीति अपने आप संभल जाएगी। गिरती राजनीति की बस एक ही दवा है लगन सच्चाई ईमानदारी और कर्मठता इन्हें अपने आचरण में उतारो, तुम्हारा उद्धार ही उद्धार है।