ललित गर्ग, वरिष्ठ स्तंभकार
इक्कहतर वर्षों के बाद आज हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाडिय़ों से बाहर निकलकर अपनी गौरवमय उपस्थिति का अहसास करा रहा है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर आज तक 'क्या पाया, क्या खोयाÓ के लेखे-जोखे की तरफ चला जाता है। इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होना चाहिए। कर्तव्य-पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे। और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा। क्योंकि गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, स्वार्थों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेर रखा है। हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह सही है और इसके लिए सर्वप्रथम जिस इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है, वह हमारी शासन-व्यवस्था में सर्वात्मना नजर आने लगी है। शासन व्यवस्था के साथ-साथ जनजीवन में भी अपने गणतंत्र के लिये गर्व एवं गौरव का भाव पनपना चाहिए।
एक वो समय था जब 26 जनवरी से 1 सप्ताह पहले ही दिल्ली को आतंकी खतरे की वजह से छावनी में बदल दिया जाता था और अब सुरक्षित वातावरण के चलते गणतंत्र दिवस पर राजधानी की सड़कों पर ट्रैक्टर रैली निकालने की भी अनुमति दी जा रही है। ऐसा सशक्त एवं प्रभावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारण ही संभव हुआ। कोरोना महामारी, प्राकृतिक संकट, आर्थिक अस्तव्यस्तता एवं राजनीतिक उथल-पुथल, अन्तर्राष्ट्रीय बदलाव, किसान आन्दोलन एवं काश्मीर की शांति एवं लोकतंत्र की स्थापना जैसे विविध परिदृश्यों के बीच गणतंत्र दिवस का स्वागत हम इस सोच और संकल्प के साथ करें कि अब हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं एवं बीते सत्तर वर्ष के नुकसानों की भरपाई करनी है। बीते वर्षों की कमियों एवं राजनीतिक आपदा स्थितियों पर नजर रखते हुए उनसे लगे घावों को भरने एवं नये उत्साह एवं ऊर्जा से भरकर नये जीवन को गढऩे का संकल्प लेना है। दूसरे के अस्तित्त्व को स्वीकारना, सबका विकास-सबका साथ, पर्यावरण संरक्षण, रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास एवं दूसरे के विचारों को अधिमान देना-यही शांतिप्रिय, स्वस्थ, सुशासन एवं सभ्य समाज रचना के आधारसूत्र हैं और इन्हीं आधारसूत्रों को गणतंत्र दिवस की आयोजना का संकल्पसूत्र बनाना होगा।
तीन हजार वर्षों में पांच हजार लड़ाइयां लड़ी जा चुकी हैं। एकसूत्र वाक्य है कि "मैदान से ज्यादा युद्ध तो दिमागों से लड़े जाते हैं। आज भी भारत पाकिस्तान एवं चीन की कुचालों एवं षडयंत्रों से जूझ रहा है, हमने कोरोना काल में भी इन देशों को माकुल जबाव दिया, अब और अधिक सशक्त तरीकों से इनको जबाव देना है। हमने वर्ष 2020 के संकट वर्ष में भी आशा एवं विश्वास के नये दीप जलाये हैं, प्रभु श्री राम के मन्दिर का शिलान्यास हुआ, कोरोना को परास्त करने के लिये दीपक जलाये, तालियां बजायी, विदेशों को दवाइयां एवं मेडिकल सहायता भेजी, कोरोना के कारण जीवन निर्वाह के लिये जूझ रहे पीडितों की सहायता के लिये अनूठे उपक्रम किये। यह केवल देश के नागरिकों की जागरूकता एवं वोट सही जगह डालने से ही संभव हुआ है। देश का जागरूक नागरिक आज किसान आन्दोलन के नाम पर हो रही राजनीति को भी समझ रहा है। यह किसानों के हितों का नहीं, राजनीतिक हितों का एवं देश की एकता एवं सुरक्षा को खण्डित करने का एक महाषडय़ंत्र है। हो सकता है सड़कों पर तमाशा राजनैतिक मजबूरी हो। किसान भी देश के है और नागरिक भी तो इसी भारत देश के है फिर 26 जनवरी से दुश्मनी क्यों? गणतंत्र दिवस पर निशाना क्यों? देश की आर्थिक स्थिति एवं सीमाओं की सुरक्षा अब सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि इस लड़ाई में हम साथ खड़े होकर देश को विश्व में एक बहुत सम्मानित पायदान पर लेकर जाएं। लद्दाख में तनाव का माहौल है और हमारी सशस्त्र सेनाएं विषम परिस्थितियों में भी डटकर मुकाबला कर रही है, कश्मीर में भी हमारी सेना चुनौती का सामना कर रही है। कोरोना से भी देश जूझते हुए संकटों से बाहर आया है। देश में जब भी कोई विपत्ति आई है, तब सभी जवान और किसान देश हित में एक साथ खड़े होते रहे हैं। इतिहास गवाह है कि हमारे देश के किसानों ने हर युद्ध में सशस्त्र सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया है और विजय दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है, फिर आज क्यों किसी बहकावे में आकर वे देश हित को दांव पर लगा रहे हैं?
यह कैसी राजनीति है, यह कैसा विपक्ष की जिम्मेदारियों का प्रदर्शन है, जिसमें अपनी राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के नाम पर जनता के हितों की उपेक्षा की जा रही है। केन्द्र सरकार या भाजपा में कहीं शुभ उद्देश्यों एवं जन हितों की कोई आहट भी होती है तो विपक्षी दलों एवं कांग्रेस में भूकम्प-सा आ जाता है। मजे की बात तो यह है कि इन राजनेताओं एवं राजनीतिक दलों को केन्द्र सरकार एवं भाजपा की एक भी विशेषता या अच्छाई दिखाई नहीं देती। कुछ विपक्षी नेताओं की बातें यह साबित करती हैं कि हमारे देश के विपक्ष का मानसिक स्तर कितना गिर गया है। किसानों को गुमराह करने के साथ ही स्वदेशी कोरोना वैक्सीन पर चल रही स्तरहीन राजनीति हमारे वैज्ञानिकों का अपमान है, उनके आत्मविश्वास को कमजोर करने का षडयंत्र है, उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास है। इन षडयंत्रों एवं राजनीतिक कुचालों को नाकाम करना हमारे गणतंत्र दिवस का बड़ा संकल्प होना चाहिए।
आज हमारी समस्या यह है कि हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह कर व्यक्तिगत होते जा रहे हैं। लोकतंत्र में जनता की आवाज की ठेकेदारी राजनैतिक दलों ने ले रखी है, पर ईमानदारी से यह दायित्व कोई भी दल सही रूप में नहीं निभा रहा है। "सारे ही दल एक जैसे हैं" यह सुगबुगाहट जनता के बीच बिना कान लगाए भी स्पष्ट सुनाई देती है। क्रांति तो उम्मीद की मौजूदगी में ही संभव होती है। हमारे संकल्प अभी अधूरे हैं पर उम्मीदें पुरजोश। हम एक असरदार सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्रांति की आस लगाए बैठे हैं। इसे शांतिपूर्ण तरीके से हो ही जाना चाहिए बिना किसी बाधा के। गणतंत्र दिवस का अवसर इस तरह की सार्थक शुरूआत के लिये शुभ और श्रेयस्कर है।
गणतंत्र बनने से लेकर आज तक हमने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हंै। इन पर समूचे देशवासियों को गर्व है। लेकिन साक्षरता से लेकर महिला सुरक्षा जैसे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर अभी भी बहुत काम करना बाकी है। आज देश में राष्ट्रीय एकता, सर्वधर्मसमभाव, संगठन और आपसी निष्पक्ष सहभागिता की जरूरत है। क्योंकि देश के करोड़ों गरीब उस आखिरी दिन की प्रतीक्षा में हैं जब सचमुच वे संविधान के अन्तर्गत समानता एवं सन्तुलन के अहसास को जी सकेंगे। इन विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने के साथ-साथ हमें शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करना होगा, सड़क हादसों पर काबू पाना होगा, प्रदूषण के खतरनाक होते स्तर को रोकना होगा, संसद की निष्क्रियता एवं न्यायपालिका की सुस्ती भी अहम मुद्दे हैं। बेरोजगारी का बढऩा एवं महिलाओं का शोषण भी हमारी प्रगति पर ग्रहण की तरह हैं।
देश का प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व और कर्तव्य की सीमाएं समझें। विकास की ऊंचाइयों के साथ विवेक की गहराइयां भी सुरक्षित रहें। हमारा अतीत गौरवशाली था तो भविष्य भी रचनात्मक समृद्धि का सूचक बने। बस, वर्तमान को सही शैली में, सही सोच के साथ सब मिलजुल कर जी लें तो विभक्तियां विराम पा जाएंगी। पर एक बात सदैव सत्य बनी हुई है कि कोई पाप, कोई जुर्म व कोई गलती छुपती नहीं। वह रूस जैसे लोहे के पर्दे को काटकर भी बाहर निकल आती है। वह चीन की दीवार को भी फाँद लेती है। हमारे साउथ ब्लाकों एवं नॉर्थ ब्लाकों में तो बहुत दरवाजे और खिड़कियाँ हैं। कुछ चीजों का नष्ट होना जरूरी था, अनेक चीजों को नष्ट होने से बचाने के लिए। जो नष्ट हो चुका वह कुछ कम नहीं, मगर जो नष्ट होने से बच गया वह उस बहुत से बहुत है। संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य होने के महत्व को सम्मान देने के लिये मनाया जाने वाला यह राष्ट्रीय पर्व मात्र औपचारिकता बन कर न रह जाये, इस हेतु चिन्तन अपेक्षित है।
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