
केके पाठक
हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है क्या हमने अपने संविधान को ठीक से पढ़ा है। अगर नहीं तो हम कैसे कह सकते हैं कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारे देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक हमारे देश के धर्मों की कट्टरता है। हमारे देश में विभिन्न जाति और धर्म के लोग रहते हैं, जातिगत आधार पर उन्हें दी जाने वाली सुख सुविधाएं है,जो हर भारतीय के मन में एक टीस बनकर उभरती हैं। हमारे देश में गरीबों के उत्थान का पैमाना आर्थिक है या जातिगत। हमारे देश में घटित होने वाली जातिगत समस्याएं धार्मिक कट्टरता हमसे बार-बार यह पूछती है। कि क्या वास्तव में हमने हमारे देश में हो रहे जातिवाद और धार्मिक कट्टरता को अपने संविधान के द्वारा रोका गया है। क्या हमने धार्मिक कट्टरता और जातिवाद कट्टरता को रोकने के लिए अपने संविधान में कोई प्रावधान किए हैं।
हमने इन्हें रोकने के लिए कोई नियम और कानून कायदे बनाए हैं, या उसका और ज्यादा फैलाव करने की इजाजत दी है, केवल और केवल शासन पाने के लिए हम उन्हें एक वोट बैंक की तरह उपयोग करते हैं। जब तक धार्मिक कट्टरता और जातिवाद की प्रथा देश की मूल धारा से नहीं जोड़ते,तब तक हमारा देश एक विकासशील देश से एक विकसित देश और एक महान देश और एक सशक्त देश- जहां मानवीय मूल्यों की सही कदर है, सही पहचान है, जहां बिना किसी भेदभाव के देश का हर नागरिक अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें, नहीं बन सकते। हमारे देश की सच्ची उन्नति और विकास के लिए समस्त देशवासियों को देश की एक मूल धारा से जोडऩा अति आवश्यक है। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक हमारे देश में ही एक गृह युद्ध की जैसे स्थिति निर्मित होते रहेगी और हमारा देश विभिन्न वर्गों और जातियों में बटे लोगों को देश की मूल धारा में बिना जोड़ें संतुष्ट नहीं कर पायेगे। दूसरे शब्दों में यदि हम कहे तो हमारे देश में दी जाने वाली विभिन्न जातिगत और धर्मों के आधार पर सुख सुविधाएं, धार्मिक कट्टरता की प्रतिक्रिया जिसे हम स्वयं हवा दे रहे हैं, जिसे हमने स्वयं हवा दी है, जिसे हमने स्वयं बिखेरा है, ही हमारे देश को बर्बाद करती रहेगी। सबसे पहले हम इस देश के निवासी हैं, हम भारतीय हैं हमें अपने भारतीय होने पर गौरव होना चाहिए- यह देशभक्ति की प्रथम सीड़ी है। जहां पर कोई भेदभाव नहीं है- हमारी धार्मिक प्रक्रियाएं और हमारा जातिवाद इसके बाद है, सबसे पहले हम भारतीय हैं। और एक भारतीय होने के नाते देश के प्रत्येक नागरिक को उसके आर्थिक स्थिति के अनुसार सुख सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए ना कि जातिगत और धर्म के आधार पर, लगभग विश्व के सभी देश इसी अवधारणा पर चलते हैं, सिर्फ हमारे देश को छोड़कर। हमें वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठना होगा स्वतंत्रता के इतनी अवधि के बीत जाने के बाद भी हम उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं, जिस में बदलाव किए जाने की सख्त आवश्यकता है- हमारा देश जब तक इस अंग्रेजों के थोपे हुए संविधान पर चलता रहेगा तब तक शायद सुधार की संभावना बहुत ही कम होगी। हमारे देश की सभी राजनीतिक पार्टियों का यह नैतिक कर्तव्य है- कि वे देश के भविष्य के लिए एकमत होकर, हमारे देश के सुहाने भविष्य के लिए इस महानतम कार्य को अंजाम दें- कि हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार सुख सुविधाएं मिले ऐसा संविधान में प्रावधान करें- केवल और केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए देश को बर्बाद ना करें। वैसे तो हमारे संविधान में राजनीतिक दलों के गठन की कोई प्रक्रिया नहीं है, फिर भी हमारे देश में इतने सारे राजनीतिक दल गठित हैं, जो अपने शासन आने की जुगत में हर दिन गुणा भाग करते रहते हैं, और हमारी देश की जनता के साथ छल कपट भरी राजनीति कर अपनी पार्टियों को सत्ता में लाने का जुगाड़ लगाते रहते हैं, जिसके कारण हमारा पूरा देश अस्त व्यस्त है, यदि मैं गलत कह रहा हूं तो आप स्वयं सरसरी नजर देश की वर्तमान स्थिति पर डालें- हमारे देश में राजनीतिक दल बहुत हद तक हमारे ही देश को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, उनका केवल एक ही उद्देश्य है भ्रम फैलाओ,फूट डालो और राज करो- जिनकी बदौलत राजनीतिक दल सत्ता में पहुंचते हैं बाद में उन्हें ही गुलामों जैसा समझने लगते हैं। हमारे देश में प्रत्येक राजनीतिक दल अपने आप को सबसे बड़ा देशभक्त और सबसे बड़ा देश जनसेवक सिद्ध करने में लगा देता है, वह भी सिर्फ और सिर्फ सत्ता पाने के लिए,जबकि वास्तव में ऐसा कुछ होता नहीं है। हमारे देश के प्रत्येक नागरिक की देश में बराबरी की भागीदारी होनी चाहिए- किन्हीं भी कारणों से हमारे देश के नागरिकों को नीचा ना देखना पड़े- हमारे देश का प्रत्येक नागरिक गौरव के साथ यह कह सके कि यह हमारा देश है, कि यह हमारा देश है- जय हिंद जय भारत।