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अहमदाबाद। परम मंगलकारी पूर्व के पुण्य के योग से हमें यह मानव भव मिला है। मानव भव को पाने के बाद जैन कुल की प्राप्ति होता है, वह तो हमारे लिए महामूल्यवान है। जैनधर्म मिला तो हम प्रभु भक्ति के द्वारा परमात्मा के करीब हो रहे हैं।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते हैं कि प्रभु भक्ति कैसी करनी? प्रभु भक्ति तो ऐसी करनी चाहिए कि हमें भूख-प्यास-थकावट-आराम भी याद न आए। परंतु हमारी भक्ति कुछ ओर ही है। तीन घंटे लगातार परमात्मा भक्ति में लग गए तो हाथ-पैर ऊंचे चीने हो जाते है इससे बढ़कर आप यदि चार-पांच घंटे भक्ति में जुड़ गए तो भूख सताने लगती है ओर तो ओर यदि परमात्मा भक्ति में छह-सात घंटे लग भी गए तो आपको घर की याद सताने लग जाती है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है परमात्मा भक्ति तो ऐसी करनी कि दुनिया की हरेक चीज को भूलकर परमात्मा में तल्लीन हो जाना चाहिए। नरसिंह मेहता की भक्ति वह सच्ची भक्ति कहलाती है एक बार नरसिंह मेहता परमात्मा भक्ति में मस्त थे किसी ने आकर उन्हें समाचार दिया कि तुम्हीरी पत्नी का किसी ने आकर उन्हें समाचार दिया कि तुम्हारी पत्नी का अवसान हो गया है। आपको पता है उन्होंने क्या जवाब दिया? भलुं थयुं भांगी जंजाल, सुखे भजीशुं श्रीश्रीगोपाल यानि नरसिंह मेह्ता का कहना है अच्छा हुआ कि मैं इस संसार की झूंझट से छूट गया अब से मैं परमात्मा का भजन सुख पूर्वक कर सकूंगा।
पूज्यश्री फरमाते है संसार के जितने भी संबंध है सब क्षणिक है। अभी संबंध बनाया और अभी छूट गया। एक बार किसी पति ने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा। पत्नी को उसका इस तरह से हाथ पकडऩा सुहाया नहीं। उसने अपने पति से कहा, तुम्हारा इस तरह से हाथ पकडऩे का तरीका सही नहीं है। इसे जरा बदल दो। बस,इस हाथ पकडऩे की --- को बदलने के लिए आपस में बोलना हुआ और दोनों से डाईक्र्स दे दिया। पूज्यश्री फरमाते है आनंदघनजी ने अपनी काव्य कृति मनें लिखा है ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम ओर न चाहुं रे कंत। मेरे स्वामी तो बस एक परमात्मा ही है वे ही मेरे प्रीतम है बाकी तो सभी संबंध व्यर्थ है सूठे है।
आज तक अनेक अभ आप कर चुके हो अनेक पति के साथ संबंध भी बनाये अनेक पत्नीओं के साथ भी संबंध बनाये, मगर कोई संबंध शाश्वत रहा हीं। एक भव पूरा हुआ वहां से संबंध टूटकर दूसरे भव में दूसरों के साथ जुड़ा। पूज्यश्री फरमाते है ऐसा अशाश्वत संबंध किस काम का? परमात्मा के साथ संबंध बनाओंगे वह आपमें अध्यात्म के रंगों को पैदा करेगा उसी अध्यात्म के रंग से आपको मुक्ति सुख की प्राप्ति हो सकेगी।
आप सभी को दृढ़ संकल्प करना है परमात्मा के साथ जुड़े रहोंगे तो आपमें अध्यात्म के रंग लगेंगे अध्यात्म के रंग से आपने ऐसी शक्ति पैदा होगी कि आप अपने दु:ख ही भूल जाओंगे।
पूज्यश्री फरमाते है परमात्मा का मुख हमेसा पुष्प की तरह खीला हुआ रहता है इसी प्रकार हरेक मानवी की मुख मुद्रा सदा प्रसन्न रहनी चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है--- मुख पर हंसी कितने का जीवन परिवर्तन करती है। सदा प्रसन्न रहो, मुख हंस मुखी रखो।एक प्रसंग याद आता है एक भाई साहेब अपने जीवन से अब गए। उन्होंने आपघात करने का निर्णय लिया। आपघात करने से पूर्व भाई साहेब ने मन ही मन मुख मुद्रा प्रसन्न नजर आए तो वह आपघात करने का टाल दे। भाई साहेब के नसीब का खेल देखो भाई साहेब आपघात करने के लिए अपने घर से निकले। कुछ दूर ही चले कि किसी अजनबी का सामने मिलना हुआ। उस अजनबी की मुख मुद्रा खीली हुई थी। भाई साहेब ने अजनबी की प्रसन्नता से खुश होकर आपघात को टाल दिया। उस अजनबी के पैर में पड़ा और कहने लगा आप तो साक्षात् भगवान के अवतार हो। पूज्यश्री फरमाते है हमारी मुख मुद्रा भी हमेशा खीली हुई रहनी चाहिए कोई हमें सामने मिल भी जाए आपको देखकर उनका दिल खुशीयों से झूम उठें।
कल पूर्णिमा का दिन है इसी के साथ गुरूवार एवं गुरू पुष्य नक्षत्र है। इस दिन विशेष रूप से आराधना करने से आपके मणोरथ जरूर पूर्ण होते है। बस, आराधना में जुड़कर, परमात्मा भक्ति में तल्लीन बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।