केके पाठक
विश्व कल्याण के लिए हमारी मानवीय आधार पर बिना किसी जातिगत एवं धर्मगत, पंथगत हमारी सोच बिना किसी धार्मिक कट्टरता के और हमारे कृत्य ही विश्व के लिए कल्याणकारी है, हमारे देश के महान गुरुओ साधु संतों और ऋषि-मुनियों ने जो मानवता के लिए विश्व शांति और एकता के लिए अपना महानतम मंत्र विश्व को एक सूत्र में मानवता को बांधने समस्त भेदभाव से दूर जो ब्रह्म वाक्य दिए वे अपने आप में विश्व के एक महानतम संविधान है, समस्त विश्व में हमारे ऋषि मुनि और गुरुओं के इस महानतम संविधान के आगे विश्व के अपने अपने संविधानो से सर्व श्रेष्ठता लिए विश्व की मानवता को एक सूत्र में पिरोने और यह बताने की तुम सब एक हो- गुरु घासीदास जी का कथन मनखे - मनखे एक समान अर्थात सारे विश्व में मानव- मानव एक समान है।
इनमें विश्व स्तर पर समानता है किंतु अलग-अलग देशों के अपने- अपने संविधान होने और अलग-अलग देशों की कुछ सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों ने विश्व स्तर पर मानव को भेदभाव पूर्ण ढंग से अलग-अलग बांट रखा है। और वे उसमें जातिगत आधार पर धर्मगत आधार पर पंथगत के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, गुरु नानक देव जी का संपूर्ण विश्व को दिया गया ब्रह्म वाक्य- एक ही नूर से सब जग उपजा जहां मानवता विश्व स्तर की मानवता में समानता और एकता का पाठ पढ़ाते हैं फिर भी तथाकथित मानव विरोधी विश्व स्तरीय कुछ ताकतों और धर्मों को जो धार्मिक कट्टरता मैं इतने अंधे हो गए हैं, कि उन्हें मानव मानव में फर्क नजर आता है और वे उसी कट्टरता भरी निगाहों से देखते हुए मानवता को ही शर्मसार करते हैं और उन्हें अलग प्राणी मानते हैं यह बड़े दुख और बड़ी हंसी की बात है कि इतनी छोटी सी बात उनके दिमाग में नहीं बैठती कि विश्व में एक ही ईश्वर है सब उसकी ही रचना है- जीव जंतु जड़ और चेतन इसे आप किसी भी नाम से पुकारो मंजिल एक ही है।जिस मानवता के लिए यह मंत्र काम नहीं आता और वे मानवता को अलग-अलग धर्मों के अनुसार और अलग-अलग जातियों के अनुसार आपस में बांटते हैं। श्री सच्चिदानंद साईनाथ महाराज कहते हैं- कि सबका मालिक एक अर्थात एक ही ईश्वर की सब संतान है, फिर उनमें भेदभाव कैसा हमारी पुरातन और वर्तमान भारतीय संस्कृति भी यही कहती है- हमारी भारतीय संस्कृति का मूल महामंत्र है- वसुदेव कुटुंबकम अर्थात सारी वसुधा एक परिवार है जिसमें समस्त मानव और जीव जंतु शामिल हैं। हमारी भारतीय संस्कृति का दूसरा महान मूल मंत्र -सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया इस वसुधा के समस्त जीवो के सुख समृद्धि और निरोगी होने की जिसमें बात कही गई है।
अब विश्व में इससे बड़ा और कौन सा संविधान होगा, कौन सा धर्म होगा, जो सारे विश्व के मानव और जीव-जंतुओं को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता हो। ऐसी महान हमारी भारतीय संस्कृति को हमारा बारंबार नमन है, यह तो रही धर्म की बात विश्व में आपका धर्म जो भी हो मुख्य बात तो आप का कर्म है, आप किसी भी धर्म के क्यों ना हो, जैसी करनी वैसी भरनी जैसे कर्म करोगे आप वैसे प्रतिफल मिलेंगे आपको। यदि आप अच्छे कर्म करोगे तो उसके प्रतिफल भी स्वाभाविक रूप से अच्छे ही प्राप्त होंगे। अब आपको सीखना यह है कि इस विश्व में हमारे जीवन की छोटी सी आयु में कि अच्छे कर्म है क्या। हमारे द्वारा किसी को भी दुख तकलीफ ना पहुंचाई जाए यह विश्व का सबसे पहला अच्छा कर्म है। दुनिया की जो बातें हमें अच्छी नहीं लगती वैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ ना करें यह दुनिया का दूसरा सबसे अच्छा कर्म है। और भी हैं अगर आप इन पर अमल करते हो तो आप विश्व में महान हो महानतम हो- नहीं तो अगर आप के मन में ईर्ष्या- द्वेष की भावना, मारकाट- मारपीट की भावना है तो यह अधिकार आपको किसने दिया- आपका यह व्यवहार अन्य मानव व पशु पक्षियों के जीवन की साक्षात अवहेलना है। जियो और जीने दो यह जीवन का मूल मंत्र है, कहा गया है, कि हमारा भविष्य हमारे ही कर्मों पर आधारित होता है। हम जैसे कर्म करते हैं, उसके अनुसार हमारा भविष्य बनते जाता है। अपनी मानसिकता को सदैव सकारात्मक रखो- सदैव अच्छे कर्म करो। यही उच्च मानवीय मानसिकता है। इसका प्रतिफल आपको हमेशा मीठा प्राप्त होगा। यदि आपको ऐसा लगता है कि यह किसी विशेष धर्म की बातें हैं- और मेरा धर्म कुछ अलग है, तो आप छोड़ दीजिए इन बातों को आप एक सरल प्रयोग कीजिए आपका जीवन मानव जीवन है। यह तो सत्य है ना आपका शरीर है- अब वह कैसे प्राप्त हुआ यह आप जानो किंतु आप अपने शरीर पर एक साधारण सरल सा प्रयोग करें आप अपने हाथ की चमड़ी को दूसरे हाथ की चमड़ी से खींचे तो आपको दर्द होगा- यह बात यह सिद्ध करती है कि पशु पक्षियों और अन्य मानवों को भी उनके शरीर में उनकी चमड़ी खींचने से दर्द होता है। इस बात को तो आप मान गए आपको भूख लगती है और आपको प्यास लगती है। तभी आपका शरीर चलता है। इस बात को भी आप माने या नहीं माने अगर मान गए तो इसी प्रकार सभी जीव जंतुओं अन्य मानव और पशु पक्षियों के शरीर हैं। उन्हें भी भोजन और जल की आवश्यकता होती है। अब आप अपना जीवन जीने के लिए क्या किसी को मार काट कर दुख तकलीफ पहुंचाएंगे अवश्य चिंतन और मनन कीजिए। इसी प्रकार आपको जो बातें अच्छी नहीं लगती आप भली-भांति जानते हो वैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ कदापि ना करें। क्योंकि जो चीजें आपको अच्छी नहीं लगती वे दूसरों को कैसे अच्छी लगती होंगी, इस प्रकार आप जीवन में बिना किसी धर्म जाति के साधारण प्रयोग करके विश्व में अपने मानव होने का सबूत दे सकते हैं।
यही सकारात्मक माननीय मानसिकता है।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH