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अहमदाबाद। हरेक मानवी को हर हाल में प्रसन्न रहना चाहिए चाहे उसके पास धन संपत्ति हो के ना हो। मानवी को अपना जीवन इस प्रकार से ट्रेन करना है कि वह हर परिस्थिति में प्रसन्नता को टिकाये रखे। कहते है जिसने अपने जीवन का ध्येय, अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हो वह हमेशा प्रसन्न ही रहता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते है हमारे पास मोक्ष का आदर्श है, वीतरागीता का लक्ष्य है, सर्वज्ञ परमात्मा की आराधना है फिर भी कितने लोग इसका लाभ नहीं उठाते है। बस, अपनी सारी जिंदगी राग द्वेष, खाने-पीने, मौज शोक में पूरा कर देते है। धर्मी आत्मा जब ऐसे लोगों से मिलकर कहता है आप जो कर रहे है वह ठीक नहीं है तो वे कहते है उपदेश मत दो आपको करना है, आप करो हमें तुम्हारे पीछे मत घिसीटो।
उच्च आदर्श वाला व्यक्ति हमेशा सुखी है। मीरा को संसार के भोग सुखों के प्रति आसक्ति नहीं थी वह तो हमेशा परमात्मा की भक्ति में तल्लीन रहा करती थी इसी तरह नरसिंह मेहता भी हमेशा परमात्मा भक्ति में मस्त रहा करते थे गांधी जी ने भी अपने जीवन का आदर्श बनाकर भारत को स्वतंत्रता बनाया था। उच्च आदर्श वह जीवन के प्रगति की निशानी है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है आप यदि अपने जीवन को शांतिमय, सुखमय बनाया चाहते हो तो अपने जीवन को क्लेश से दूर रखो क्लेश से दूर रहना भी एक साधना है। आपको यदि योग के आठ अंगो की जानकारी नहीं है तो परमात्मा भक्ति में मस्त बन जाओ। आपका सर्वस्व परमात्मा को समर्पित कर दो जो बूरा काम करता है उसका परिणाम उसे बूरा ही मिलता है इस दुनिया की झंझटमारी को छोड़ दो उससे आप सुखी रहेंगे। कहते है सुवर्ण सिद्ध पुरूष सोना छोड़कर नहीं गए आपके पूर्वजों ने भी आपके लिए हीरा-मोती-संपत्ति छोड़कर नहीं गए मानलो आपके लिए वे संपत्ति जायदादा छोड़कर जाते तो आप शांति का जीवन नहीं जी पाते। इस संपत्ति के लिए आप एक दूसरे से लड़ झघड़ते। और कभी कोई इस झघड़े से मर भी जाते।
चार मित्र इकट्ठे हुए। एक दूसरे से परामर्श करके उन्होंने चोरी का धंधा चालु किया। भाग्य से उनको चोरी के धंधे में सफलता मिली। एक दिन सभी एक जगह पर एकत्रित होकर उस चोरी के माल का बंटवारा करने का सोचा। चोरों मित्र चोरी का माल लेकर जंगल में गए। अब चारों मित्र चोरी का माल लेकर जंगल में गए। अब चारों को भूख सता रही थी उन चोरों के पास पैसे थे तो दो मित्र के मन में विचार आया चलो, बाजार से मिट्ठाई खरीदकर लाए दो मित्र धन की रक्षा हेतु जंगल में बैठे रहे दो मित्र मिट्ठाई खरीदने गए। मिट्ठाई की दुकान पर पहुंचते ही उनको विचार आया। इन लड्डू में जहर मिलाकर मेरे अन्य दो मित्र को दे हूं ताकि वे मर जाएगें तो चोरी का सारा माल हाथ लग जाएगा।
ऐसा सोचकर उन्होंने लड्डू में जहर मिलाकर वापिस लौटे इस चोर जो अन्य दो मित्र जंगल में ठहरे थे उनके मन में भी विचार आया इन दोनों को मारकर माल हड़प कर लूं। जो व्यक्ति बाजार में लड्डू लेने गए उन्हें व्यास लगी तो मित्रों ने कहां कुंए। पास में है आप वहां से पानी ले आओ। मित्र पानी लेने गए तो अन्य दो मित्र धन रक्षण हेतु जो जंगल में ठहरे थे उन्होंने उन दोनों को कुएं में धकेल दिया। अब वे दोनों खुश होकर लड्डू खाने बैठे है मगर लड्डू में जहर था तो वह शरीर में फैल गया चारों मित्र की मृत्यु हो गई। पूज्यश्री फरमाते है अर्थ (धन) वह अनर्थ का मूल है। मनुष्य का सर्वनाश करती है। धन नहीं तो मानव दु:खी है लेकिन संपत्ति होते हुए भी संपत्ति के कारण एक दूसरे को मारकर जीवन का ही अंत ला देते है ऐसी संपत्ति किस काम की? बस धन की लालसा किए बगैर परमात्मा को अपना सब कुछ समर्पण करके आत्मा से परमात्मा बनें।